लोकसभा ने बुधवार को वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक पारित कर दिया, जिसमें देश की सीमाओं के 100 किमी के भीतर की भूमि को वन संरक्षण कानूनों के दायरे से बाहर रखने और वन क्षेत्रों में चिड़ियाघर, सफारी और इको-पर्यटन सुविधाओं की स्थापना की अनुमति देने का प्रावधान है।
इस विधेयक के अंतर्गत, कुछ प्रकार की भूमियों को वन संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों से छूट दे दी गई है, जैसे रेलवे लाइन के किनारे वाली वन भूमि, या भूमि जो बस्तियों के मार्ग से जुड़नेवाली सार्वजनिक सडकों के किनारे हो। यह फिर रेललाइन और सड़क के किनारे अधिकतम 0.10 हेक्टेयर में बनी कोई सुविधा।
छूट के अंतर्गत आने वाली वन भूमियों में अंतरराष्ट्रीय सीमाओं, नियंत्रण रेखा या वास्तविक नियंत्रण रेखा से लगी 100 किमी अंदर तक की भूमि शामिल है, जिसका उपयोग राष्ट्रीय महत्व या सुरक्षा परियोजनाओं के निर्माण के लिए प्रस्तावित है।
इससे पहले दिल्ली और 16 राज्यों में नागरिकों और क्लाइमेट एक्शन समूहों ने विधेयक के पारित होने के विरोध में प्रदर्शन किया था।
कानून के संशोधनों के खिलाफ संसदीय समिति को बहुत सारे सुझाव भी दिए गए थे लेकिन उन्हें दरकिनार कर दिया गया।
हसदेव अरण्य में नए खनन की ज़रूरत नहीं: राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दिया हलफनामा
छत्तीसगढ़ सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि हसदेव अरण्य में कोयले के लिए किसी नए आरक्षित क्षेत्र को खनन के लिए खोलने की ज़रूरत नहीं है। कोर्ट में दिए हलफनामे में राज्य सरकार ने कहा है कि हरदेव के पारसा ईस्ट और केते बसान में जो खनन हो रहा है, वहां करीब 35 करोड़ टन कोयला है और यह राजस्थान के पावर प्लांंट्स की अगले 20 सालों की ज़रूरत के लिए पर्याप्त है।
गौरतलब से है हसदेव की चालू खानों से राजस्थान के 4,300 मेगावॉट से अधिक क्षमता के पावर प्लांट्स के लिए कोयला भेजा जाता है।
हसदेव में नए खनन खोले जाने की कोशिशों के खिलाफ वहां के आदिवासी लगातार आंदोलन कर रहे हैं और सरकार के इस हलफनामे को आंदोलन के लिए एक कामयाबी के तौर पर देखा जाना चाहिए। हलफनामे में राज्य सरकार ने भारतीय वन्य संस्थान (डब्लूआईआई) की रिपोर्ट को उद्धृत कर यह भी कहा है कि हसदेव अरण्य का जंगल कटने से यहां हाथी-मानव संघर्ष बढ़ेगा।
महत्वपूर्ण है कि हसदेव अरण्य 1 लाख 70 हज़ार हेक्टेयर में फैला सघन जंगल है, जो न केवल जैव-विविधता का भंडार है बल्कि हसदेव नदी का जलागम बनाया है और इस नदी पर बने बांगो जलाशय से बहुत बड़े क्षेत्र में सिंचाई के लिए जल आपूर्ति होती है।
कूनो पार्क में नहीं थम रहा चीतों की मौत का सिलसिला
मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में चीतों की मौत का सिलसिला थम नहीं रहा है। अबतक आठ चीतों की मौत हो चुकी है। पिछले दिनों दो नर चीतों की मौत हुई और दोनों के शरीर पर चोट के निशान पाए गए थे।
इन मौतों के बाद सरकार ने मध्य प्रदेश के शीर्ष वन्यजीव अधिकारी जसबीर सिंह चौहान का तबादला कर दिया, हालांकि उनके स्थानांतरण की कोई वजह नहीं बताई गई।
चीता टास्कफोर्स के अध्यक्ष राजेश गोपाल के अनुसार चीतों की मौत रेडियो कॉलर से घाव होने के कारण हुए सेप्टीसीमिया की वजह से हुई है। जवाब में सरकार ने पहले तो इस दावे को खारिज किया, लेकिन फिर 24 जुलाई को ‘स्वास्थ्य परीक्षण’ के लिए छह चीतों के कॉलर निकाल लिए गए। इसकी वजह पूछे जाने पर मध्य प्रदेश के मुख्य वन्य जीव प्रतिपालक असीम श्रीवास्तव कि केवल उन्हीं चीतों के कॉलर निकाले गए हैं जिनकी जांच आवश्यक थी, और यह सब कुछ डॉक्टरों की देख-रेख में हो रहा है। उन्होंने कहा कि उन्हें नहीं पता है कि चीतों की मौत कॉलर की वजह से हो रही है या नहीं।
इसी बीच सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से बचे हुए चीतों को अलग-अलग स्थानों पर स्थानांतरित करने का आग्रह किया है।
शीर्ष अदालत ने अफसोस जाहिर करते हुए कहा कि इतने कम समय में चीतों की मौत चिंताजनक तस्वीर पेश करती है, साथ ही उस वातावरण की उपयुक्तता पर भी चिंता जताई जहां इन चीतों को भेजा गया है। कोर्ट ने चीतों को राजस्थान स्थानांतरित करने की सिफारिश करते हुए कहा कि केंद्र इसे प्रतिष्ठा का मुद्दा बनाने के बजाय इस पर उचित कार्रवाई करे।
नागालैंड ने सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाया
नागालैंड सरकार ने प्लास्टिक के बड़े पैमाने पर उपयोग से उत्पन्न गंभीर पर्यावरणीय और इकोलॉजिकल चुनौतियों को खत्म करने के लिए, राज्य में सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगा दिया है।
शहरी विकास विभाग नागालैंड (यूडीडी) ने कहा कि मॉड, वर्जिन या रीसाइकल्ड आदि किसी भी प्रकार के प्लास्टिक से बने बैग्स का निर्माण, आयात, भंडारण, वितरण, बिक्री और उपयोग प्रतिबंधित है। इसने प्लास्टिक की स्टिक वाले ईयरबड्स, गुब्बारों के लिए प्रयोग की जाने वाली प्लास्टिक स्टिक, प्लास्टिक के झंडे, कैंडी स्टिक, आइसक्रीम स्टिक और सजावट के लिए पॉलीस्टाइनिन (थर्मोकोल) के निर्माण, आयात, स्टॉकिंग, वितरण, बिक्री और उपयोग पर भी प्रतिबंध लगा दिया है।
प्लेट, कप, गिलास और कटलरी जैसे कांटे, चम्मच, चाकू, स्ट्रॉ और ट्रे, मिठाई के डिब्बे, निमंत्रण कार्ड और सिगरेट के पैकेट के चारों ओर फिल्म लपेटना या पैक करना, 100 माइक्रोन से कम के प्लास्टिक या पॉली-विनाइल क्लोराइड (पीवीसी) बैनर, स्टिरर को भी प्रतिबंधित किया गया है।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
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