उत्तराखंड: फॉरेस्ट फायर पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार को फटकारा

सुप्रीम कोर्ट ने फॉरेस्ट फायर मामले में बुधवार को केंद्र और उत्तराखंड सरकार को आड़े हाथ लिया। उच्चतम न्यायालय ने  फंडिंग की कमी और वनकर्मियों को चुनाव ड्यूटी में लगाने पर कड़े सवाल पूछे और कहा कि राज्य में हालात बहुत खराब हैं ।  उत्तराखंड में इस साल कुल 1063 आग की घटनायें हुई हैं जिसमें 1400 हेक्टेयर से अधिक जंगल आग में जल गये और 5 लोगों की मौत हुई। जस्टिस बी आर गवई, जस्टिस एसवीएन भट्टी और जस्टिस संजीव मेहता की बेंच ने तीखे सवाल पूछे और कहा कि 10 करोड़ की मांग होने पर केवल 3.15 करोड़ रुपये ही क्यों दिये है। कोर्ट ने पूछा कि वनकर्मियों को चुनाव की ड्यूटी पर क्यों लगाया गया। 

वेबसाइट न्यूज़लॉन्ड्री ने दस्तावेज़ों के आधार पर प्रकाशित ख़बर में कहा था कि वनकर्मियों की चुनाव ड्यूटी में तैनाती आग से निपटने के लिए होने वाली वार्षिक तैयारियों के आड़े आई। ज़िलाधिकारियों ने अपनी ही सरकार, चुनाव आयोग और एनजीटी के आदेशों और चेतावनियों की अनदेखी कर न केवल वनकर्मियों को बड़ी संख्या में चुनाव में लगाया बल्कि वन विभाग के वाहनों को भी चुनाव के लिए अपने कब्जे में ले लिया।  

आपदाओं के कारण भारत में 5 लाख लोग हुए विस्थापित: रिपोर्ट

भारत में 2023 में बाढ़, तूफान, भूकंप और अन्य आपदाओं के कारण पांच लाख से अधिक लोगों ने देश के भीतर ही अन्य जगहों पर पलायन किया। जिनेवा स्थित इंटरनल डिस्प्लेसमेंट मॉनिटरिंग सेंटर (आईडीएमसी) की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, 2022 के मुकाबले विस्थापन में बड़ी गिरावट आई है। साल 2022 में लगभग 25 लाख लोग आतंरिक रूप से विस्थापित हुए थे।

‘बाढ़ विस्थापन हॉटस्पॉट’ कहे जाने वाले दिल्ली शहर में 9 जुलाई, 2023 को भारी बारिश के बाद यमुना नदी उफान पर आ गई, जिससे कई स्थानीय निवासियों को उनके घरों से निकालना पड़ा। रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में 27,000 लोग विस्थापित हुए।

दक्षिण एशिया में कुल मिलाकर 2023 में लगभग 37 लाख लोग आंतरिक रूप से विस्थापित हुए, जिनमें 36 लाख आपदाओं के कारण विस्थापित हुए। यह 2018 के बाद से सबसे कम विस्थापन है। शोधकर्ताओं के अनुसार, आपदाओं के कारण विस्थापन में गिरावट के लिए आंशिक रूप से अल नीनो घटना को जिम्मेदार है, जिसके कारण मानसून के दौरान औसत से कम बारिश हुई और बड़े चक्रवात नहीं पैदा हुए।

क्लाइमेट फाइनेंस पर भिड़े अमीर और विकासशील देश

नए क्लाइमेट फाइनेंस लक्ष्यों के लिए पैसा कौन देगा, इस बात पर अमीर और विकासशील देशों के बीच मतभेद बढ़ रहे हैं। कोलंबिया के कार्टाजेना में हाल में हुई वार्ता पर नज़र रखने वाले एक स्वतंत्र गैर-लाभकारी संगठन थर्ड वर्ल्ड नेटवर्क ने यह खबर दी है।

नवंबर में दुनिया भर के नेता एक नए क्लाइमेट फाइनेंस लक्ष्य पर बातचीत करने के लिए एकत्र होंगे। फ़िलहाल यह सीमा 2025 के बाद से हर साल कम से कम 100 बिलियन डॉलर है, जिसका उद्देश्य है एनर्जी ट्रांज़िशन में विकाशसील देशों की सहायता करना।

बताया जा रहा है कि अमेरिका ने 2015 के पेरिस जलवायु समझौते के अनुच्छेद 9.3 का हवाला देते हुए कहा है कि न्यू कलेक्टिव क्वांटिफाइड गोल (एनसीक्यूजी) में ‘स्वैच्छिक’ रूप से ‘योगदान करने का विकल्प है’।

वहीं भारत ने समान विचारधारा वाले विकासशील देशों (एलएमडीसी) की ओर से बोलते हुए कहा कि क्लाइमेट फाइनेंस के लक्ष्य पेरिस सम्मेलन और समझौते के सिद्धांतों और प्रावधानों और अनुच्छेद 9 के अनुसार होना चाहिए। अनुच्छेद 9 के अंतर्गत, विकसित देशों को कहा गया है कि वह विकासशील देशों को मिटिगेशन और अडॉप्टेशन के लिए वित्तीय सहायता मुहैया कराएंगे।

यूएन बदलेगा कार्बन मार्केट, भूमि अधिग्रहण से होगा बचाव

पेरिस समझौते के तहत स्थापित किए जा रहे नए वैश्विक कार्बन मार्केट मानदंडों के अनुसार, अब कार्बन क्रेडिट डेवलपर्स को लोगों की जमीन और जल संसाधनों को हड़पने से रोका जाएगा। क्लाइमेट होम न्यूज़ ने बताया कि बॉन में हाल में संपन्न हुई बैठक में दुनिया भर के देशों और विशेषज्ञों ने संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावित अनुच्छेद 6.4 कार्बन क्रेडिटिंग व्यवस्था के लिए अपील और शिकायत प्रक्रिया को मंजूरी दे दी।      

कार्बन क्रेडिट परियोजनाओं को लागू करने से पहले और बाद में चुनौती देने की नीतियों पर इस समझौते को क्लाइमेट कार्यकर्ता एक ऐतिहासिक क्षण के रूप में देख रहे हैं। क्लाइमेट होम ने बताया कि क्लीन डेवलपमेंट मैकेनिज्म (सीडीएम) कहे जाने वाले पिछले संयुक्त राष्ट्र कार्बन मार्केट में ऐसी कोई प्रक्रिया नहीं थी। कार्बन मार्केट पर आरोप लगते रहे हैं कि उन्होंने स्थानीय लोगों और उनकी आजीविका को नुकसान पहुंचाया है, साथ ही अक्सर उत्सर्जन में कटौती का दावों पर खरे नहीं उतरे हैं।

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