नेशनल फाउंडेशन फॉर इंडिया (एनएफआई) के एक नए अध्ययन में चेतावनी दी गई है कि कोयले से साफ ऊर्जा की ओर बदलाव का सबसे अधिक असर वंचित समुदाय के लोगों पर पड़ना तय है इसलिए इस कदम को उठाते समय सरकार को इन समुदायों का विशेष ध्यान रखना होगा। भारत में बिजली उत्पादन का करीब 75 प्रतिशत अब भी कोयले से ही होता है और कोयला खदानों को बंद करने से पहले इस कारोबार में लगे अकुशल मज़दूरों बसाने की बड़ी चुनौती है।
एनएफआई की ताजा रिपोर्ट “एट द क्रॉसरोड: मार्जिनिलाइज्ड कम्युनिटिज़ एंड जस्ट ट्रांजिशन डायलिमा” में देश के तीन कोयला प्रचुर राज्यों छत्तीसगढ़, झारखंड और ओडिशा में सर्वे किया गया। इन राज्यों के दो ज़िलों जहां कोयला प्रचुर मात्रा में पाया जाता है, वहां 1,209 परिवारों में से 41.5 प्रतिशत अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में आते हैं, जबकि 17 प्रतिशत अनुसूचित जाति (एससी) और 23 प्रतिशत परिवार अनुसूचित जनजाति (एसटी) वर्ग में आते हैं।
अध्ययन में पाया गया है कि इस आबादी का एक बड़ा हिस्सा कम शिक्षित या अशिक्षित है और उनके पास आजीविका के वैकल्पिक स्रोत शुरू करने के लिए खेती योग्य भूमि नहीं है। यह निष्कर्ष दर्शाते हैं कि कोल ट्रांज़िशन (कोयले का प्रयोग धीरे-धीरे समाप्त करने) की प्रक्रिया के दौरान उन्हें कोई नया कौशल सिखाना या पुनः प्रशिक्षित करना कितना चुनौतीपूर्ण कार्य है। भारत ने 2015 में हुए एतिहासिक पेरिस समझौते में जस्ट ट्रांजिशन नीति को अपनाया था और 2021 में यह वादा किया है कि 2070 तक देश नेट ज़ीरो इमीशन स्तर को हासिल कर लेगा।
रिपोर्ट में पाया गया है कि जातिगत असमानताओं के कारण विभिन्न समुदायों के बीच संसाधनों और अवसरों की उपलब्धता में बड़ा अंतर है, जिस कारण एनर्जी ट्रांज़िशन की प्रक्रिया प्रभावित हो रही है। कोयला क्षेत्रों में कार्यबल का एक बड़ा हिस्सा हाशिए पर रहने वाले समुदायों से आता है। इन समुदायों में ज्यादातर परिवार ऐसे हैं जिनकी शिक्षा केवल प्राथमिक स्तर तक हुई है या जो बिल्कुल भी शिक्षित नहीं है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि एनर्जी ट्रांज़िशन से यह समुदाय अधिक प्रभवित होंगे इसलिए इन्हें आजीविका के वैकल्पिक अवसर प्रदान करना बहुत जरूरी है। कोल फेजडाउन के कारण यह समुदाय अपनी आजीविका का एकमात्र स्रोत खो सकते हैं, जिससे शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं तक उनकी पहुंच और सीमित हो जाएगी। अध्ययन से यह भी स्पष्ट होता है कि कोयला और कोयला-संबद्ध जिलों में पिछड़ी जातियों के कामगार सामान्य जाति के कामगारों की तुलना में कम कमाते हैं।
रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि इस असमानता को दूर करने के लिए कोयला खनन क्षेत्रों के इंफ्रास्ट्रक्चर और कनेक्टिविटी में सुधार किया जाना चाहिए ताकि वहां आर्थिक विकास हो सके। इन क्षेत्रों में गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सुविधाओं और शैक्षणिक संस्थानों को भी बढ़ावा देना चाहिए। आजीविका के अवसर प्रदान करने के लिए वैकल्पिक उद्योगों में निवेश को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। व्यक्तियों और व्यवसायों के लिए फाइनेंस और क्रेडिट तक पहुंच में सुधार किया जाना चाहिए। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि नीति निर्माताओं को विभिन्न समुदायों के हितों को ध्यान में रखते हुए, उनके लिए विशेष नीतियां बनानी चाहिए।
कर्नाटक: संदुर के जंगलों में खनन को मंज़ूरी न मिलने से 1 लाख पेड़ बचेंगे
साउथ फर्स्ट की रिपोर्ट के अनुसार, कर्नाटक सरकार द्वारा कुद्रेमुख आयरन ओर कंपनी लिमिटेड (केआईओसीएल) को खनन की मंजूरी से इनकार करने के बाद संदुर में देवदारी पहाड़ियों के पास स्वामीमलाई में लगभग 402 हेक्टेयर अछूता जंगल कटने से बच गया।
सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार में वन मंत्री ईश्वर खंड्रे ने केंद्रीय इस्पात और भारी उद्योग मंत्री एचडी कुमारस्वामी द्वारा 18 जून को केआईओसीएल को वनभूमि को उसकी प्राकृतिक अवस्था में पट्टे पर देने के लिए केंद्र की मंजूरी के बाद स्पष्टीकरण जारी किया।
पर्यावरणविदों, कार्यकर्ताओं और राज्य वन विभाग के हंगामे के बाद, केंद्र ने कहा कि यह 2017 में लिए गए निर्णय के तहत हो रहा था और बताया कि राज्य सरकार ने परियोजना को मंजूरी दे दी थी। विज्ञप्ति में कहा गया है कि शिकायतें प्राप्त हुई थीं कि केआईओसीएल कुद्रेमुख राष्ट्रीय उद्यान में अतीत में खनन चूक/वन अधिनियम के उल्लंघन के लिए केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति के निर्देशों को निर्धारित समय सीमा के भीतर पूरी तरह से लागू करने में विफल रहा है।
जैव विविधता फाइनेंस: अमीर देशों को 2025 से विकासशील देशों को प्रति वर्ष 20 अरब डॉलर प्रदान करने का लक्ष्य पूरा करना होगा
एक नई रिपोर्ट में बताया गया है कि अमीर देश, मुख्य रूप से जापान, यूनाइटेड किंगडम, इटली, कनाडा, कोरिया और स्पेन, विकासशील देशों को 2025 तक जैव विविधता वित्त में प्रति वर्ष 20 बिलियन डॉलर प्रदान करने की प्रतिबद्धता को पूरा करने में विफल रहे। यह लक्ष्य कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैव विविधता ढांचे या जैव विविधता योजना का हिस्सा है जिसे 2022 में जैविक विविधता सम्मेलन (सीओपी16) के पक्षकारों के 16वें सम्मेलन में अपनाया गया था।
एक अमेरिकी गैर लाभकारी संगठन कैंपेन फॉर नेचर द्वारा तैयार की गई इस रिपोर्ट में कहा गया है कि विकसित देशों को अधिक भुगतान करने की आवश्यकता है क्योंकि 28 विकसित देशों में से केवल दो ही 20 बिलियन डॉलर का अपना उचित हिस्सा दे रहे हैं, उनमें से अधिकांश को धरती पर जैव विविधता को हो रही हानि रोकने और उलटने में मदद करने के लिए कम से कम अपने वित्त पोषण को दोगुना करने की आवश्यकता है।.
रिपोर्ट में देशों की जैव विविधता पर ऐतिहासिक प्रभाव, उनकी भुगतान करने की क्षमता और जनसंख्या के आकार को ध्यान में रखते हुए गणना की गई कि उन्हें कितना भुगतान करना चाहिए। नॉर्वे और स्वीडन अपने उचित हिस्से से अधिक प्रदान करने वाले एकमात्र देश थे, जर्मनी और फ्रांस क्रमशः 99% और 92% प्रदान कर रहे हैं, और ऑस्ट्रेलिया अपने उचित हिस्से का 74% प्रदान कर रहा था। सबसे बड़ा अंतर जापान, यूनाइटेड किंगडम, इटली, कनाडा, कोरिया और स्पेन में था। कुल मिलाकर, वे कुल कमी का 71% हिस्सा हैं।
77% भारतीय चाहते हैं मजबूत क्लाइमेट एक्शन
एक नए सर्वे में पता चला है कि 77 प्रतिशत भारतीय मजबूत क्लाइमेट एक्शन के पक्ष में हैं, और 33 प्रतिशत ने हाल ही में चरम मौसम की घटनाओं का अनुभव किया है।
ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय और जियोपोल के सहयोग से संयुक्त राष्ट्र डेवलपमेंट प्रोग्राम (यूएनडीपी) द्वारा किए गए पीपल्स क्लाइमेट वोट 2024 सर्वेक्षण में 77 देशों के 75,000 से अधिक लोगों से प्रतिक्रियाएं ली गईं, जो वैश्विक आबादी के 87 प्रतिशत प्रतिनिधित्व करते हैं।
सर्वे में पाया गया कि अमेरिका और रूस में 66 प्रतिशत, जर्मनी में 67 प्रतिशत, चीन में 73 प्रतिशत, दक्षिण अफ्रीका और भारत में 77 प्रतिशत, ब्राजील में 85 प्रतिशत, ईरान में 88 प्रतिशत और इटली में 93 प्रतिशत लोग मजबूत क्लाइमेट एक्शन चाहते हैं। दुनिया भर में 72 प्रतिशत लोग जीवाश्म ईंधन का प्रयोग तेजी से कम करने का समर्थन करते हैं।
सर्वेक्षण से पता चलता है कि जलवायु संबंधी चिंता व्यापक है, 56 प्रतिशत लोग नियमित रूप से जलवायु परिवर्तन के बारे में सोचते हैं, और पिछले वर्ष की तुलना में 53 प्रतिशत लोग इसके बारे में अधिक चिंतित हैं। यह चिंता अल्प-विकसित देशों (एलडीसी) और लघु द्वीपीय विकासशील देशों (एसआईडीएस) में विशेष रूप से अधिक है।
कोल इंडिया ने 23 बंद पड़ी खदानें निजी कंपनियों को आवंटित कीं
कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) ने अपनी बंद और ठप पड़ीं भूमिगत खदानों से कोयला निकालने के लिए ऐसी 23 खानों को राजस्व-भागीदारी के आधार पर निजी कंपनियों को आवंटित करने की घोषणा की है। कंपनी ने यह जानकारी देते हुए कहा कि इन खदानों की अधिकतम क्षमता सालाना 3.41 करोड़ टन की है। इसमें से कुल निकालने योग्य कोयला भंडार 63.5 करोड़ टन है।
कोल इंडिया ने न्यूनतम राजस्व भागीदारी चार प्रतिशत पर तय की है। अनुबंध की अवधि 25 साल की होगी। जिन निजी कंपनियों को यह खदानें आवंटित की गई हैं उनके नाम का खुलासा नहीं किया गया है।
कोल इंडिया के अधिकारियों ने कहा कि 11 अन्य खदानों के लिए भी बोली प्रक्रिया चल रही है। इससे पहले, सीआईएल ने कुल 34 बंद पड़ी खदानों की पहचान की थी, जहां अच्छी गुणवत्ता वाले कोयले के भंडार हैं, लेकिन सीआईएल के लिए वहां खनन करना वित्तीय रूप से व्यवहार्य नहीं हो सकता है।
तीस्ता नदी के संरक्षण पर भारत और बांग्लादेश के बीच समझौता
भारत और बांग्लादेश ने तीस्ता नदी के जल के संरक्षण और प्रबंधन के लिए मेगा परियोजना के समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। पिछले हफ्ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के बीच वार्ता के दौरान इस समझौते को अंतिम रूप दिया गया।
इस समझौते के तहत भारत बांग्लादेश में तीस्ता नदी के संरक्षण पर बातचीत करने के लिए एक तकनीकी टीम भेजेगा। यह निर्णय महत्वपूर्ण है क्योंकि नई दिल्ली की आपत्तियों के बावजूद, चीन इस एक अरब डॉलर की परियोजना पर नज़रें गड़ाए था। इस समझौते पर विदेश सचिव विनय क्वात्रा ने कहा कि साझा जल संसाधनों का प्रबंधन एक महत्वपूर्ण और संवेदनशील मामला है।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
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