मध्य भारत के छत्तीसगढ़ में हसदेव अरण्य के जंगलों को बचाने के लिये चल रहे छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला को ‘ग्रीन नोबेल’ कहा जाने वाला गोल्डमैन पर्यावरण सम्मान दिया गया है। उन्हें मंगलवार को सेन फ्रांसिस्को में यह अवॉर्ड दिया जायेगा।
एशिया में इस बार केवल एक व्यक्ति को ही यह सम्मान दिया गया है। आलोक शुक्ला और छत्तीसगढ़ के आदिवासियों ने राज्य के सरगुजा और कोरबा ज़िले के 17,000 हेक्टेयर में फैले हसदेव अरण्य को बचाने के लिये लंबा संघर्ष किया है जिसमें 23 कोल ब्लॉक हैं।
सोमवार को गोल्डमैन पर्यावरण पुरस्कार समिति की ओर से जारी बयान में कहा गया है, “आलोक शुक्ला ने एक सफल सामुदायिक अभियान का नेतृत्व किया जिसने मध्य भारत के छत्तीसगढ़ में 445,000 एकड़ जैव विविधता से समृद्ध जंगलों को बचाया जहां 21 कोयला खदानें शुरू होनी थी। जुलाई 2022 में, सरकार ने हसदेव अरण्य में 21 प्रस्तावित कोयला खदानों को रद्द कर दिया, जिनके प्राचीन वन – जिन्हें लोकप्रिय रूप से छत्तीसगढ़ के फेफड़े के रूप में जाना जाता है – भारत में सबसे बड़े अक्षुण्ण वन क्षेत्रों में से एक हैं।”
शुक्ला और छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के प्रयासों से अक्टूबर 2022 में, छत्तीसगढ़ सरकार ने 450 वर्ग किमी के क्षेत्र में लेमरू हाथी रिजर्व को अधिसूचित किया। दस गांवों के 2,000 से अधिक ग्रामीणों के एक विशाल पैदल मार्च के बाद राज्य सरकार को लेमरू को सूचित करने के लिए दबाव डाला गया, जिसमें मांग की गई कि सरकार हसदेव अरण्य में खनन न करे।
साल 2013 में ‘आपदा का प्रभाव बढ़ाने वाले’ हाइड्रोपावर बांध को फिर से बनाने की अनुमति
केंद्र सरकार ने उत्तराखंड में हिमालय की ऊपरी पहुंच में एक जलविद्युत परियोजना के पुनर्निर्माण के लिए पर्यावरणीय मंजूरी देना शुरू कर दिया है, जो 2013 की बाढ़ के दौरान लगभग पूरी तरह से बह गई थी। इस आपदा में 6,000 से अधिक लोग मारे गए थे। हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित एक खोजी रिपोर्ट में कहा गया है कि पर्यावरण मंत्रालय ने 20 मार्च को फाटा ब्यूंग हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट (76 मेगावाट) के लिए संदर्भ की शर्तों (टीओआर) को मंजूरी दे दी, जो पर्यावरण मंजूरी की प्रक्रिया में एक शुरुआत है।
इससे पहले मंत्रालय द्वारा गठित एक विशेषज्ञ पैनल ने पाया था कि फाटा ब्यूंग परियोजना ने 2013 में बादल फटने और अचानक आई बाढ़ से मंदाकिनी नदी – जो गंगा की प्रमुख सहायक नदियों में से एक है – के प्रवाह को अवरुद्ध करके नुकसान को बढ़ा दिया था। हालांकि सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी और सेंट्रल वॉटर कमीशन ने इस बारे में अपने-अपने असहमति नोट दिये थे। सरकार ने बहुमत की राय को अदालत में रखा था।
मंत्रालय की रिपोर्ट के निष्कर्ष के बावजूद कि उच्च ऊंचाई वाली जलविद्युत परियोजनाएं पर्यावरणीय आपदाओं की क्षति को बढ़ाती हैं, विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति ने 20 मार्च को आगे बढ़कर सार्वजनिक परामर्श के साथ और सार्वजनिक सुनवाई के बिना पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन अध्ययन आयोजित करने के लिए मानक टीओआर के अनुदान के लिए फाटा ब्यूंग परियोजना की सिफारिश की।
जी-7 देशों में कोई भी हासिल करता नहीं दिख रहा 2030 के शमन (मिटिगेशन) लक्ष्य
इमीशन को कम करना शमन (मिटिगेशन) कहलाता है। क्लाइमेट एनालिस्ट नाम के एक वैश्विक जलवायु विज्ञान और नीति संस्थान का विश्लेषण बताता है कि दुनिया के सबसे ताकवर देशों के समूह (जी-7) में कोई भी अपने वर्तमान उत्सर्जनों को 2030 के लिये तय लक्ष्य तक घटाता नहीं दिखता। यह बात इटली में इटली में पर्यावरण मंत्रियों की बैठक से पहले किये गये विश्लेषण में बताई गई। जी-7 देशों ने 2030 तक सामूहिक रूप से अपने उत्सर्जनों में 40-42 प्रतिशत घटाने का लक्ष्य रखा था लेकिन वर्तमान नीतियों से यह ज़्यादा से ज़्यादा 19-33 प्रतिशत तक ही हासिल होता दिखता है।
जी-7 समूह में अमेरिका और यूके के अलावा कनाडा, जर्मनी, फ्रांस, इटली और जापान हैं जिनका विश्व अर्थव्यवस्था में 38 प्रतिशत और कुल वैश्विक इमीशन में 21 प्रतिशत हिस्सा है। रिपोर्ट कहती है कि धरती की तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री तक सीमित रखने के लिये इन देशों को 2019 के स्तर पर हो रहे इमीशन में 2030 तक 58 प्रतिशत कटौती करनी होगी।
क्लाइमेट फाइनेंस : विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की बैठकों में पर कछुआ रफ्तार से तरक्की
विश्व बैंक और आईएमएफ की वार्षिक बैठकें जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए आवश्यक खरबों डॉलर जुटाने की किसी ठोस योजना के बिना ही समाप्त हो गईं जबकि इस साल अज़रबैजान में होने वाले संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP29) में न्यू कलेक्टिव क्वांटिफाइड गोल (एनसीक्यूजी) या नए जलवायु वित्त लक्ष्य पर समझौता प्रमुख मुद्दा होगा।
एनसीक्यूजी वह नई राशि है जिसे विकसित देशों को विकासशील देशों में जलवायु कार्रवाई का समर्थन करने के लिए 2025 से हर साल जुटाना होगा। अमीर देशों से उम्मीद की जाती है कि वे हर साल 100 बिलियन अमरीकी डालर से अधिक ग्रीन क्लाइमेट फंड में देंगे। वादे के मुताबिक साल 2020 से हर साल यह राशि उन्हें देनी थी लेकिन वह इसे पूरा करने में बार-बार असफल रहे।
शनिवार को समाप्त हुई बैठकों में जी-7 और जी – 20 के वित्त मंत्रियों के बीच जलवायु और विकास उद्देश्यों को पूरा करने के लिए विकासशील देशों को वित्त प्रदान करने पर चर्चा हुई। हाल में किये गये एक विश्लेषण से पता चला है कि 2023 में विकासशील देशों में वित्तीय प्रवाह नकारात्मक हो गया है क्योंकि जिन अमीर देशों को पैसा देना था वह कर्ज़ या सेवाओं के रूप में भुगतान कर रहे हैं।
जलवायु परिवर्तन के प्रति संकटग्रस्त बीस देशों के समूह (V20) ने जलवायु-संवेदनशील देशों के लिए रियायती वित्त में वृद्धि का आह्वान किया, और G7 और उच्च उत्सर्जन वाले G21 देशों से अपील की कि वे धरती की तापमान वृद्धि 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रोकने के लिये कदम उठायें।
मछुआरों के विरोध के बावजूद महाराष्ट्र में बंदरगाह प्रोजेक्ट को हरी झंडी
महाराष्ट्र में वधावन बंदरगाह प्रोजेक्ट को केंद्रीय कैबिनेट की हरी झंडी का इंतज़ार है लेकिन मछुआरों और समुद्री जीवन का अध्ययन करने वाले शोधकर्ताओं ने इसका विरोध किया है। इनका कहना है कि इससे क्षेत्र की दुर्लभ जैव विविधता और विलुप्त हो रही समुद्री प्रजातियों पर भारी असर पड़ेगा। इस साल फऱवरी में पर्यावरण मंत्रालय ने इसे पर्यावरणीय अनुमति दी थी और अधिकारियों को विश्वास है कि अक्टूबर से वह काम शुरू कर सकेंगे।
कुल 76,220 करोड़ रुपये का प्रस्तावित बंदरगाह वधावन पोर्ट प्राइवेट लिमिटेड द्वारा बनाया जाना है, जो जवाहरलाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट (जेएनपीटी) और महाराष्ट्र मैरीटाइम बोर्ड (एमएमबी) के बीच एक संयुक्त उद्यम है। यह क्षेत्र घोल मछली और समुद्री सुनहरी (सी- गोल्ड) फिश जैसी दुर्लभ प्रजातियों के लिये जाना जाता है। ये प्रजातियां दवा बनाने के काम आती हैं और आईयूसीएन की विलुप्त होती प्रजातियों की सूची में हैं।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
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