वन संरक्षण कानून (1980) में संशोधन के लिए प्रस्तावित बिल की जांच के लिए बनी संसदीय कमेटी ने इसे हरी झंडी दे दी है और संभावना है कि इसी सत्र में यह संशोधन विधेयक संसद में लाया जाएगा। जहां एक ओर जानकारों ने वन संरक्षण कानून में प्रस्तावित संशोधनों पर चिंता जताई है, वहीं सरकार का कहना है कि प्रस्तावित बदलावों से किसी भी तरह वन संरक्षण के लिए बने सेफगार्ड कमज़ोर नहीं होंगे।
सरकार का कहना है कि इन संशोधनों के ज़रिए वह वन संरक्षण कानून में “अनिश्चितता” हटाना और स्पष्टता लाना चाहती है लेकिन विशेषज्ञों का कहना है बदलावों से केंद्र सरकार को वन भूमि को गैर वानिकी उद्देश्यों के लिए प्रयोग करने के ज़्यादा अधिकार मिल जायेंगे। इन संशोधनों के बाद 1996 के गोडावर्मन केस (जिसमें उन वन क्षेत्र को भी संरक्षित करने के प्रावधान दिए गए जो सरकारी कागज़ों में वन के तौर पर दर्ज नहीं है) में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिया गया आदेश कमज़ोर होगा। किसी प्रोजेक्ट में पेड़ कटाने के मुआवज़े के तौर पर वृक्षारोपण के लिए वन भूमि हस्तांतरित की जा सकेगी और अंतर्राष्ट्रीय सीमा के 100 किलोमीटर के दायरे में हाइवे, जलविद्युत प्रोजेक्ट या किसी अन्य प्रोजेक्ट के लिए फॉरेस्ट क्लीयरेंस की ज़रूरत नहीं होगी।
शिपिंग उद्योग के ताज़ा लक्ष्य 1.5 डिग्री हासिल करने की दिशा से दूर
शिपिंग उद्योग का नियमन करने वाले अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (इंटरनेशनल मैरीटाइम ऑर्गेनाइजेशन या आईएमओ) ने तय किया है कि पानी के जहाजों से होने वाले उत्सर्जन में कटौती कर “वर्ष 2050 तक या उसके आसपास” नेट ज़ीरो उत्सर्जन हासिल करने की कोशिश होगी। विशेषज्ञों का कहना है कि यह लक्ष्य धरती की तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री तक सीमित रखने के लिए नाकाफ़ी हैं। आईपीसीसी रिपोर्ट के मुताबिक समुद्री व्यापार से होने वाला उत्सर्जन कुल इमीशन के 3% के बराबर है।
लंदन में हुई इस बैठक को जलवायु परिवर्तन पर नियंत्रण के प्रयासों के लिए काफी अहम माना गया लेकिन इसमें वर्ष 2030 तक समुद्री व्यापार से होने वाले उत्सर्जन में (2008 के मुकाबले) कम से कम 20% कटौती करने और 30% की कोशिश का लक्ष्य रखा गया जबकि वैज्ञानिकों की गणना के मुताबिक ग्लोबल वॉर्मिंग के वर्तमान हालात को देखते हुए यह इमीशन 2030 तक 45% प्रतिशत कम होने चाहिए।
राज्यों और जिलों में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का अध्ययन करेगी सरकार
देश के विभिन्न राज्यों और जिलों में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का आकलन करने के लिए सरकार एक अध्ययन शुरू करने वाली है। हिंदुस्तान टाइम्स ने पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सूत्रों के हवाले से बताया कि इस अध्ययन में राज्यों और जिलों में जलवायु परिवर्तन और माइक्रॉक्लाइमेट के व्यवहार के प्रभाव का आकलन किया जाएगा।
मौसम विभाग के महानिदेशक डॉ एम महापात्रा के अनुसार, पिछले कुछ दशकों में देश के विभिन्न हिस्सों में मौसम के मिजाज में बदलाव आया है। उदाहरण के लिए, मानसून के दौरान पूर्वोत्तर के कुछ हिस्सों में वर्षा कम हो रही है, जबकि उत्तर-पश्चिम भारत के कुछ हिस्सों में अधिक तीव्र मानसूनी बारिश देखी जा रही है, लेकिन सूखे दिनों की संख्या भी बढ़ रही है।
इस अध्ययन के जरिए सरकार यह समझने की कोशिश करेगी कि पिछले कुछ वर्षों में जिलों के भीतर तापमान और वर्षा के पैटर्न में कैसे उतार-चढ़ाव हो रहा है। यह रिपोर्ट 2027 तक जारी होने की उम्मीद है।
ग्लोबल वार्मिंग से बढ़ रही है महिलाओं के विरुद्ध घरेलू हिंसा: शोध
एक नए अध्ययन में पाया गया है कि बढ़ते तापमान के कारण भारत, पाकिस्तान और नेपाल में महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा में वृद्धि हो रही है। जेएएमए साइकिएट्री जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन में 2010 से 2018 तक के आंकड़ों का विश्लेषण करके पाया गया कि औसत वार्षिक तापमान में एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने पर शारीरिक और यौन घरेलू हिंसा की घटनाओं में 6.3 प्रतिशत से अधिक की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई।
शोध का अनुमान है कि इस सदी के अंत तक घरेलू हिंसा 21 प्रतिशत तक बढ़ जाएगी। हालांकि, यदि जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग में योगदान देने वाले उत्सर्जन पर अंकुश लगाने के लिए कदम उठाए जाते हैं, तो हिंसा में “मामूली वृद्धि” होगी, शोधकर्ताओं ने कहा।
विश्व बैंक ने भारत में ऊर्जा बदलाव के लिए मंजूर किए 1.5 बिलियन डॉलर
विश्व बैंक के कार्यकारी निदेशक मंडल ने भारत में निम्न-कार्बन ऊर्जा के विकास में तेजी लाने के लिए 1.5 बिलियन डॉलर के फाइनेंस को मंजूरी दी है।
विश्व बैंक ने एक बयान में कहा है कि इससे भारत को नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ाने और हरित हाइड्रोजन विकसित करने में मदद मिलेगी। साथ ही निम्न-कार्बन ऊर्जा निवेश के लिए क्लाइमेट फाइनेंस मुहैया करने में भी मदद मिलेगी।
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