जून का महीना ऐतिहासिक रूप से गर्म रहा और दुनिया के कई हिस्सों ने हीटवेव का सामना किया।

दुनिया ने देखे इतिहास के सबसे गर्म सात दिन, यूएन प्रमुख ने कहा जलवायु परिवर्तन ‘नियंत्रण से बाहर’

ऐसे समय में जब प्रचंड गर्मी ने धरती के अधिकांश हिस्से को अपनी चपेट में ले लिया है, एक अनौपचारिक विश्लेषण के अनुसार जुलाई के पहले सात दिनों का औसत तापमान अब तक दर्ज किया सबसे गर्म तापमान रहा, जो दर्शाता है कि जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न संकट कितने खतरनाक स्तर तक पहुंच गया है।

यह आंकड़े मेन विश्वविद्यालय के क्लाइमेट रीएनालाइजर ने सैटेलाइट डेटा और कंप्यूटर सिमुलेशन की मदद से तैयार किए हैं।

इस विश्लेषण के अनुसार 6 जुलाई को धरती का औसत तापमान रिकॉर्ड 17.18 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया। और 7 जुलाई को जुलाई के पहले हफ्ते का औसत तापमान पिछले 44 सालों से दर्ज किए जा रहे किसी भी हफ्ते के तापमान से 0.04 डिग्री अधिक था। 

इन आंकड़ों के जारी होने के बाद संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा कि जलवायु परिवर्तन अब नियंत्रण से बाहर हो चुका है। उन्होंने कहा कि यदि हम इसे रोकने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाने में देरी करेंगे तो हम एक भयानक स्थिति में पहुंच जाएंगे।  

हालांकि अमेरिका के नेशनल ओशनिक एंड एटमोस्फियरिक एडमिनिस्ट्रेशन ने इस विश्लेषण को प्रामाणिकता देने से मना कर दिया, लेकिन उन्होंने भी कहा कि एल नीनो के लौटने के साथ धरती के अलग-अलग हिस्सों में गर्मी और बढ़ेगी। 

जून का महीना भी ऐतिहासिक रूप से गर्म रहा और दुनिया के कई हिस्सों ने हीटवेव का सामना किया। भारत के अलावा अमेरिका और चीन के भी कई हिस्सों में हीटवेव की तीव्रता बहुत अधिक रही। वैज्ञानिकों का भी मानना है कि जलवायु परिवर्तन का प्रभाव अभूतपूर्व है और मानव गतिविधियों से जो गर्मी बढ़ रही है उसके कारण और रिकॉर्ड तापमान देखने को मिलेंगे।

धरती की तापमान वृद्धि को सीमित रखना अब नामुमकिन, समुद्र का पारा भी रिकॉर्डतोड़ ऊंचाई पर 

पिछले महीने जब तमाम देशों के नेता इस साल के अंत में होने वाले जलवायु परिवर्तन सम्मेलन की तैयारी के लिए जुटे थे तो कई दिन तक औसत वैश्विक तापमान प्री-इंडस्ट्रियल लेवल से 1.5 डिग्री ऊपर था। यह बात यूरोपीय यूनियन की वित्तीय मदद से चलने वाले कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस ने बताई है।  धरती के तापमान में ऐसी अस्थाई वृद्धि पहले भी देखी जा चुकी है लेकिन उत्तरी गोलार्ध में पहली बार यह देखा गया है। चीन और अमेरिका दुनिया के दो सबसे बड़े कार्बन उत्सर्जन हैं। इन दो देशों के राजदूत अगले महीने मुलाकात कर रहे हैं लेकिन जहां चीन में जून में रिकॉर्डतोड़ तापमान रहा वहीं अमेरिका में हीटवेव चल रही है। 

उधर समुद्र के वैज्ञानिकों का कहना है कि धरती की तापमान वृद्धि को सीमित रखने के लिए समय चाहिए लेकिन वह अब हमारे पास नहीं बचा। जमीन के साथ साथ समुद्र के तापमान में भी रिकॉर्ड ऊंचाई दर्ज की गई है। 

बारिश ने उत्तर भारत का किया बुरा हाल, कम से कम 34 मरे 

हीटवेव के बाद मूसलधार बारिश ने भी उत्तर भारत में कई जगह लोगों को परेशान किया। नदियां उफान पर रहीं और बीते सप्ताहांत मैदानी इलाकों में जलभराव और पहाड़ों पर भूस्खलन की घटनाएं हुईं। बरसात से जुड़ी घटनाओं में कम से कम 34 लोगों की मौत हो गई। पहाड़ी राज्यों में उत्तराखंड और हिमाचल विशेष रूप से प्रभावित हुए।

हिमाचल में भारी बारिश के कारण भूस्खलन और अचानक आई बाढ़ से जनजीवन प्रभावित रहा। स्कूलों में छुट्टी कर दी गई है और सरकार ने लोगों को घरों से बाहर न निकलने की सलाह दी है। मनाली, कुल्लू, किन्नौर और चंबा में कुछ दुकानें और वाहन बाढ़ में बहते देखे गए। रावी, ब्यास, सतलुज, स्वान और चिनाब सहित सभी प्रमुख नदियां उफान पर हैं।

दिल्ली में भी यमुना नदी खतरे के निशान से ऊपर बह रही है और इसके किनारे से लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया जा रहा है। दिल्ली-एनसीआर के भी सभी स्कूलों में सोमवार को छुट्टी कर दी गई। पूरे उत्तर भारत के कई शहरों और कस्बों में सड़कें और आवासीय क्षेत्र घुटनों तक पानी में डूब गए।

आईएमडी ने कहा है कि पश्चिमी विक्षोभ और मानसूनी हवाओं के बीच संपर्क के कारण उत्तर पश्चिम भारत में भारी बारिश हो रही है।  

जलवायु परिवर्तन से यूपी में हीटवेव की संभावना दोगुना हुई 

पिछले दिनों उत्तर प्रदेश में झुलसा देने वाली गर्मी और हीटवेव के बीच हीटस्ट्रोक के कारण कई लोगों के अस्पताल में भर्ती होने और कुछ मौतों की खबरें आईं थीं। एक नए अध्ययन में पाया गया है कि जलवायु परिवर्तन से उत्तर प्रदेश में हीटवेव की संभावना दोगुना हो गई है। 

हाल के समय में दुनिया के कई देश हीटवेव की चपेट में आए हैं। और यूपी की बात करें तो यह राज्य यूरोप और अफ्रीका के कई देशों से बहुत बड़ा है। इसके आकार की तुलना यूनिटेड किंगडम और घाना जैसे देशों से की जा सकती है।

जब मैदानी इलाकों में अधिकतम तापमान कम से कम 40 डिग्री सेल्सियस, तटीय क्षेत्रों में कम से कम 37 डिग्री सेल्सियस और पहाड़ी क्षेत्रों में कम से कम 30 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है, और सामान्य से कम से कम 4.5 डिग्री सेल्सियस अधिक हो जाता है, तो हीटवेव घोषित की जाती है।

यूपी में 14 से 16 जून के बीच एक्सट्रीम हीटवेव की स्थिति बनी रही। अब, क्लाइमेट शिफ्ट इंडेक्स (सीएसआई), या जलवायु परिवर्तन सूचकांक के अध्ययन से पता चला है कि मानव गतिविधियों के कारण होने वाले जलवायु परिवर्तन ने इस घटना की संभावना को दोगुना बढ़ा दिया था।

अमेरिकी वैज्ञानिकों के समूह क्लाइमेट सेंट्रल द्वारा विकसित सीएसआई, जलवायु परिवर्तन द्वारा दैनिक तापमान में होने वाले बदलाव को मापता है। एक से ऊपर सीएसआई का मतलब है जलवायु परिवर्तन से तापमान में बदलाव हुआ है। 

सीएसआई 2 से 5 के बीच का मतलब है कि जलवायु परिवर्तन ने उन तापमानों को दो से पांच गुना अधिक संभावित बना दिया है। हीटवेव के दौरान यूपी की कुछ जगहों पर सीएसआई 3 तक पहुंच गया, यानि जलवायु परिवर्तन ने इस तापमान को 3 गुना अधिक संभावित बना दिया था। क्लाइमेट सेंट्रल के वैज्ञानिकों के अनुसार अत्यधिक तापमान के साथ उच्च आर्द्रता ने हीटवेव की तीव्रता को और बढ़ा दिया था।

ग्रे-व्हेल के शरीर में हर रोज़ पहुंच रहे माइक्रोप्लास्टिक के 2 करोड़  कण 

अपने भोजन के लिए समुद्र पर निर्भर जीवों, खासतौर से मछलियों और पक्षियों के शरीर में भारी मात्रा में प्लास्टिक जा रहा है क्योंकि हमारे समुद्र के दूरस्थ द्वीपों तक प्लास्टिक पहुंच चुका है। अमेरिका की ओरेगोन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता का अनुमान है कि ओरेगोन तट पर ग्रे व्हेल हर रोज करीब 2.1 करोड़ माइक्रोप्लास्टिक के कणों को निगल लेती है। यह बात इस मछली के मल के विश्लेषण से पता चली है। शोधकर्ताओं का कहना है कि यह कण समुद्र में तेजी से बढ़ रहे हैं और आने वाले दशकों में भी यह प्रदूषण जारी रहेगा। माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण में माइक्रो प्लास्टिक के अलावा कपड़े के रेशों जैसी सामग्री को भी गिना जाता है। 

यह अध्ययन 230 ग्रे-ह्वेल मछलियों के समूह पर आधारित था। महत्वपूर्ण बात है कि सभी समुद्री जीवों यहां तक कि उस पर निर्भर पक्षियों की भारी संख्या में मौत प्लास्टिक से हो रही है। वैज्ञानिकों का कहना है कि मछली का सेवन करने वाले इंसानों के शरीर में भी माइक्रोप्लास्टिक पहुंच रहा है।

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