इस साल के अंत में यूएई में होने वाले जलवायु परिवर्तन महासम्मेलन (कॉप-28) से पहले दिल्ली में हुए जी-20 सम्मेलन में जहां दुनिया के बड़े विकसित और विकासशील देशों ने अक्षय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना बढ़ाने का लक्ष्य रखा है, वहीं यह भी माना है कि पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए निवेश और क्लाइमेट फाइनेंस को अरबों से खरबों डॉलर तक बढ़ाने की आवश्यकता है।
लेकिन जी-20 घोषणापत्र में प्रदूषणकारी जीवाश्म ईंधन, जैसे तेल और गैस आदि को चरणबद्ध तरीके से समाप्त (फेजआउट) करने पर कोई प्रतिबद्धता नहीं जताई गई है। हालांकि इसमें कोयला फेजडाउन के प्रयास तेज करने का ज़िक्र अवश्य है, लेकिन उसकी भाषा पिछले साल इंडोनेशिया के बाली में हुए समझौते जैसी ही है।
घोषणापत्र में यह स्वीकार किया गया है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव दुनिया भर में देखे जा रहे हैं, विशेष रूप से अल्प विकसित देशों (एलडीसी) और लघु द्वीपीय विकासशील राज्यों (एसआईडीएस) में। पेरिस समझौते के तहत ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लक्ष्य की प्राप्ति के प्रयास तेज करने की प्रतिबद्धता जताते हुए जी-20 देशों ने माना कि ऐसा करने के लिए वैश्विक उत्सर्जन को 2019 के स्तर के मुकाबले 2030 तक 43% घटाना होगा। साथ ही इस बात पर चिंता व्यक्त की कि मौजूदा प्रयास और क्लाइमेट एक्शन इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए पर्याप्त नहीं हैं।
समूह ने विभिन्न राष्ट्रीय परिस्थितियों के अनुरूप, सदी के मध्य तक या उसके आसपास नेट जीरो उत्सर्जन प्राप्त करने की प्रतिबद्धता दोहराई। लेकिन यह नेट ज़ीरो लक्ष्य हासिल करना जीवाश्म ईंधन के प्रयोग में भारी कटौती के बिना संभव नहीं है। आईआईएसडी की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2022 में ही जी-20 देशों ने जीवाश्म ईंधन पर 1.4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के बराबर निवेश किया।
एनर्जी ट्रांजिशन और अक्षय ऊर्जा पर ज़ोर
घोषणापत्र में कहा गया है कि जस्ट ट्रांजिशन से देशों की रोज़गार और आजीविका की स्थिति में सुधार हो सकता है और अर्थव्यवस्था मजबूत हो सकती है। जी-20 देशों ने कहा है कि वह स्वच्छ, टिकाऊ, न्यायसंगत, किफायती और समावेशी ऊर्जा बदलाव में तेजी लाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
साल 2030 तक अक्षय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना बढ़ाने की प्रतिबद्धता को एक महत्वपूर्ण प्रगति के रूप में देखा जा रहा है क्योंकि जुलाई में हुई जी-20 के जलवायु और ऊर्जा मंत्रियों की बैठक में इस पर सहमति नहीं बन पाई थी। हालांकि, जानकारों का मानना है कि सभी प्रकार के जीवाश्म-ईंधन फेजआउट पर कोई निर्णय लिये बिना यह घोषणा भारत के लिए निराशाजनक है क्योंकि भारत की 70% बिजली का उत्पादन कोयला बिजलीघरों से होता है। सम्मेलन में कोयले के अंधाधुंध प्रयोग को फेज़डाउन करने की बात कही गई है लेकिन जीवाश्म ईंधन शब्द के प्रयोग से बचा गया है जिसमें ऑइल और गैस भी शामिल होते हैं। माना जा रहा है कि सऊदी अरब के प्रभाव के चलते जीवश्म ईंधन फेजआउट/फेज डाउन को घोषणापत्र में शामिल नहीं किया गया।
हालांकि, पिट्सबर्ग में 2009 में किए गए वादे को दोहराया गया है जिसके अंतर्गत फिजूलखर्ची को बढ़ावा देने वाली अप्रभावी जीवाश्म ईंधन सब्सिडियों को खत्म किया जाएगा या उन्हें तर्कसंगत बनाया जाएगा। एक रिपोर्ट के अनुसार 2022 में जी-20 देशों ने जीवाश्म ईंधन सब्सिडियों पर 1 ट्रिलियन डॉलर खर्च किए थे।
क्लाइमेट फाइनेंस
घोषणापत्र में कहा गया है कि विकासशील देशों को 2030 से पहले अपनी राष्ट्रीय जलवायु योजनाओं को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए 5.9 ट्रिलियन डॉलर की आवश्यकता होगी। यदि विकासशील देशों को 2050 तक नेट जीरो उत्सर्जन हासिल करना है तो उन्हें 2030 तक स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के लिए सालाना लगभग 4 ट्रिलियन डॉलर की आवश्यकता होगी। इसके लिए निवेश और क्लाइमेट फाइनेंस में पर्याप्त वृद्धि करने की बात की गई है।
विकसित देशों ने संयुक्त रूप से साल 2020 से 2025 तक सालाना 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर जुटाने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई। उन्होंने उम्मीद जताई है कि 2023 में पहली बार यह लक्ष्य पूरा होगा।
जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील विकासशील देशों की सहायता के लिए कॉप27 में लॉस एंड डैमेज फंड को मंजूरी दी गई थी। घोषणापत्र में इस निर्णय को सफलतापूर्वक लागू करने की दिशा में काम करने की बात की गई है।
वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन
जी-20 देशों ने शून्य और निम्न-उत्सर्जन विकास में जैव ईंधन, यानी बायोफ्यूल को महत्वपूर्ण बताते हुए और एक वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन (ग्लोबल बायोफ्यूल अलायंस) की स्थापना का उल्लेख किया।
शिखर सम्मलेन के पहले दिन भारत ने वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन की शुरुआत की और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जी-20 देशों से इस पहल में शामिल होने और वैश्विक स्तर पर पेट्रोल के साथ इथेनॉल मिश्रण को 20 प्रतिशत तक ले जाने का आग्रह किया।
भारत के अलावा अर्जेंटीना, बांग्लादेश, ब्राजील, इटली, मॉरीशस, दक्षिण अफ्रीका, संयुक्त अरब अमीरात और अमेरिका इस पहल में शामिल हुए, जबकि कनाडा और सिंगापुर इस गठबंधन के पर्यवेक्षक देश हैं।
इकोसिस्टम की बहाली और वन संरक्षण
घोषणापत्र में 2030 तक नष्ट हुए पारिस्थितिक तंत्रों (इकोसिस्टम) में से कम से कम 30% को बहाल करने और भूमि क्षरण रोकने के प्रयासों को बढ़ाने की प्रतिबद्धता व्यक्त की गई है। साथ ही स्वैच्छिक आधार पर 2040 तक भूमि क्षरण को 50% तक कम करने के लक्ष्य का समर्थन किया गया है।
स्थानीय समुदायों की सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए, वनों की सुरक्षा, संरक्षण और स्थायी प्रबंधन और वनों की कटाई रोकने के प्रयासों को बढ़ाने की बात भी की गई है और कहा गया है कि जी-20 देश भेदभावपूर्ण हरित आर्थिक नीतियों से बचेंगे। ऐसे में यह उल्लेख करना आवश्यक है कि भारत ने हाल ही में वन संरक्षण कानून में संशोधन किया है, जिसके तहत कुछ प्रकार की वन भूमियों को गैर-वानिकी उद्देश्यों के लिए उपयोग करना आसान हो गया है। कथित रूप से स्थानीय समुदायों के अधिकार कम करने के लिए भी पर्यावरण एक्टिविस्ट्स ने इन संशोधनों की आलोचना की है।
इसके अलावा घोषणापत्र में प्लास्टिक प्रदूषण ख़त्म करने और जलवायु आपदाओं की पूर्व सूचना प्रणालियां सुदृढ़ करने की बात भी कही गई है।
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