रिसर्च ने पाया है कि कोयला उद्योग में सबसे अधिक रोज़गार चीन और भारत में कम होंगे।

कोयला क्षेत्र में 10 लाख से अधिक नौकरियों पर होगी चोट

अमेरिका स्थित थिंक टैंक ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर (जीईएम) )का अनुमान है कि साफ ऊर्जा की ओर बढ़ते हुए 2050 तक कोयला क्षेत्र में 10 लाख से अधिक नौकरियां कम होंगी भले ही देश कोयले के प्रयोग को और फेज़ आउट न भी करें। इसलिये उन समुदायों को भरपूर सहयोग करना होगा जिनका रोज़गार कोयले से जुड़ा है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत और चीन में कोयला क्षेत्र में काम कर रहे सबसे अधिक लोगों की नौकरी खत्म होगी। जीईएम का कहना है कि अगर धरती की तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री तक रोकने के लिये कोयला फेज़ आउट की योजनाओं को लागू किया गया तो खदानों में वर्तमान क्षमता के 10% के बराबर श्रमिकों की ही ज़रूरत रह जायेगी। 

भारत के करीब 40% ज़िलों की अर्थव्यवस्था किसी न किसी रूप में कोयले से जुड़ी है और अप्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से आज करीब 36 लाख लोग कोयला क्षेत्र में काम कर रहे हैं।  इस कारण साफ ऊर्जा की ओर बढ़ते हुए जस्ट ट्रांजिशन यानी न्यायपूर्ण परिवर्तन की बड़ी ज़रूरत है। इस बारे में अधिक जानकारी के लिए आप कॉर्बनकॉपी की इस पॉडकास्ट सीरीज़ को सुन सकते हैं। 

चीन के बाद रूस ने किया जीवाश्म ईंधन फेजआउट का विरोध

रूस ने चेतावनी दी है कि वह कॉप28 के दौरान जीवाश्म ईंधन का प्रयोग कम करने के किसी भी वैश्विक समझौते का विरोध करेगा

गौरतलब है कुछ समय पहले चीन ने भी कहा था कि जीवाश्म ईंधन को फेजआउट करना व्यावहारिक नहीं होगा। रूस और चीन के इस रुख के साथ ही इस साल जलवायु महासम्मेलन के दौरान जीवाश्म ईंधन फेजआउट पर एक समझौते की उम्मीद बहुत कम है।

अमेरिका और यूरोपीय संघ के देश चाहते हैं कि कॉप28 के पहले जीवाश्म ईंधन फेजआउट का एक टाइमलाइन बनाया जाए। हालांकि रूस ने संयुक्त राष्ट्र में दिए एक वक्तव्य में कहा है, “हम ऐसे किसी भी प्रावधान या स्थिति का विरोध करते हैं जो किसी भी तरह से भेदभाव करता है या किसी विशिष्ट ऊर्जा स्रोत या जीवाश्म ईंधन को फेजआउट करने का आह्वान करता है।”

2030 तक बंद हो जीवाश्म ईंधन एक्सप्लोरेशन: यूएन रिपोर्ट

साल 2030 तक जीवाश्म ईंधन का एक्सप्लोरेशन, यानी खनन अथवा निष्कर्षण के लिए तेल, कोयले और गैस की खोज बंद हो जानी चाहिए, आगामी जलवायु सम्मलेन से पहले संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी रिपोर्ट में यह प्रस्ताव किया गया है। यूएन की ग्लोबल स्टॉकटेक सिंथेसिस रिपोर्ट में यह भी प्रस्तावित है कि 2030 तक गरीब देशों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से बचाने के लिए दी जाने वाली सहायता 200 बिलियन डॉलर से बढ़ाकर हर साल 400 बिलियन डॉलर कर दी जाए।

रिपोर्ट में कहा गया है कि विभिन्न देश 2015 के पेरिस जलवायु समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने से अभी भी “बहुत दूर” हैं, और ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए बहुत अधिक कार्रवाई की जरूरत है।

यह रिपोर्ट दुबई में नवंबर के अंत में शुरू होने वाले कॉप28 सम्मेलन में चर्चाओं का आधार बनेगी।

पोप फ्रांसिस ने जीवाश्म ईंधन कंपनियों को ग्रीनवॉशिंग के लिए लताड़ा

पोप फ्रांसिस ने जलवायु परिवर्तन के खिलाफ अबतक का सबसे कड़ा रुख अपनाते हुए जीवाश्म ईंधन कंपनियों को फटकार लगाई है, और दुनियाभर के देशों से तुरंत अक्षय ऊर्जा में ट्रांज़िशन करने के लिए कहा है।

“लॉडेट डीयम” या “ईश्वर की स्तुति” नामक दस्तावेज़ में, पोप ने नई जीवाश्म ईंधन परियोजनाओं को ग्रीनवॉश करने के लिए तेल और गैस कंपनियों की आलोचना की और कहा कि जलवायु संकट से निपटने के लिए पश्चिमी देशों को और अधिक महत्वाकांक्षी प्रयास करने चाहिए। उन्होंने कहा कि “यदि वैश्विक तापमान में एक डिग्री के दसवें हिस्से की वृद्धि भी रोकी जाती है तो इससे कई लोगों की पीड़ा कम होगी”।

पोप फ्रांसिस ने कहा कि “जीवाश्म ईंधन का प्रयोग बंद करके साफ़ ऊर्जा की ओर ट्रांज़िशन की गति पर्याप्त नहीं है”।

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