एशिया और अफ्रीका के प्रवासी मज़दूर नवंबर दिसंबर में दुबई में होने वाले 28 वें जलवायु परिवर्तन महासम्मेलन (कॉप-28) के लिए चिलचिलाती धूप में काम कर रहे हैं। फेयर स्कवेयर नाम के मानवाधिकार संगठन ने मज़दूरों के बयान और वीडियो प्रमाण इकट्ठे किए हैं जिनमें पाया गया कि कम से कम तीन जगहों में एक दर्जन से अधिक मज़दूर सितंबर के महीने में 42 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान में बाहर काम कर रहे थे। कम से कम दो दिन ऐसे थे जबकि मिड-डे बैन (जिसमें यूएई के श्रम क़ानूनों के तहत कड़ी धूप में काम करवाने पर पाबंदी है) के वक़्त मज़दूर दोपहर में बाहर काम कर रहे थे। पूरी दुनिया में हर साल 50 लाख लोगों की मौत अत्यधिक गर्मी या ठंड के कारण होती है और क्लाइमेट चेंज प्रभावों के बढ़ने के कारण हीट स्ट्रोक से प्रभावितों और मरने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इन मज़दूरों ने माना कि कड़ी धूप में काम करने से वह बीमार महसूस करते हैं लेकिन दैनिक मज़दूरी के लिए यह सब करना पड़ता है। यूएई में काम करने वाले 90% मज़दूर और कर्मचारी प्रवासी हैं और यहां की राजधानी दुबई दुनिया के सबसे घनी आबादी वाले शहरों में है।
वैश्विक जलवायु घटनाओं के बीच गहराता रिश्ता
धरती पर एक दूसरे से हज़ारों किलोमीटर दूर स्थित भौगोलिक क्षेत्रों के बीच मौसमी घटनाओं और जलवायु का संबंध मज़बूत होता जा रहा है। इसे क्लाइमेट टेलीकनेक्शन कहा जाता है। केओस इंटरडिसिप्लिनेरी जर्नल ऑफ नॉन लीनियर साइंस में प्रकाशित एक शोधपत्र में यह बात सामने आई है। टेलीकनेक्शन इस बात को परिभाषित करता है कि कैसे दुनिया के एक हिस्से में जंगलों में आग या बाढ़ जैसी घटना हज़ारों किलोमीटर दूर किसी दूसरे क्षेत्र में प्रभाव डालती है।
वैज्ञानिकों ने टेलीकम्युनिकेशन की तीव्रता, वितरण और विकास को समझने के लिये क्लाइमेट नेटवर्कों का विश्लेषण किया है। ताज़ा अध्ययन में 1948 से लेकर 2021 तक के 74 साल की समयावधि का अध्ययन किया गया है। इनमें पहले 37 साल में टेलीकनेक्शन की जो तीव्रता थी वह दूसरे 37 सालों में एकरूप गति से बढ़ती पाई गई है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह जलवायु परिवर्तन, मानव गतिविधियों और दूसरे कारकों का मिलाजुला असर हो सकता है।
अंधाधुंध भू-जल दोहन से भारी संकट के मुहाने पर भारत
गंगा के मैदानी इलाकों में कई हिस्से ऐसे हैं जो पहले ही भू-जल दोहन के मामले में ‘टिपिंग पॉइंट’ पार कर चुके हैं और पूरे दक्षिण-पश्चिम भारत में 2025 तक भू-जल की भारी कमी हो सकती है। यह बात संयुक्त राष्ट्र की ताज़ा रिपोर्ट में कही गई है। प्राकृतिक संसाधनों में पानी ही है जिसका सबसे अधिक दोहन होता है। पीने और रोज़मर्रा की ज़रूरतों के अलावा कृषि, ताप बिजलीघरों, निर्माण क्षेत्र, पेय पदार्थ और शराब उत्पादन व अन्य उद्योगों में पानी का भरपूर प्रयोग होता है।
बढ़ती जनसंख्या, उपभोगी जीवनशैली के कारण अंधाधुंध दोहन के कारण जहां जलस्तर गिर रहा है वहीं जलवायु परिवर्तन प्रभाव हालात को और कठिन बना रहे हैं। ग्राउंड वॉटर को रिचार्ज करने वाले जलभृत (एक्वफायर) भी तेज़ी से खत्म हो रहे हैं।
साल 2022 में कटे 66 लाख हेक्टेयर से अधिक जंगल
दुनिया के तमाम देशों द्वार वनों के रूप में कार्बन सिंक को बढ़ावा देने के वादे के बावजूद साल 2022 में 66 लाख हेक्टेयर जंगल काट दिए गए। यह जानकारी फॉरेस्ट डिक्लेरेशन असेसमेंट की 2023 की रिपोर्ट में सामने आई है। साल 2022 में स्विटज़रलैंड के क्षेत्रफल के डेढ़ गुना ज़मीन पर उगे जंगलों को काट दिया गया। महत्वपूर्ण है कि दुनिया की तमाम सरकारों ने ग्लोसगो में 2021 में हुए जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में इन जंगलों को 2030 तक बचाने का वचन दिया था। लेकिन महत्वपूर्ण है कि 2021 के मुकाबले 2022 में जंगलों के कटने की रफ्तार 4 प्रतिशत बढ़ गई। जंगल समुद्र के बाद धरती पर दूसरा सबसे बड़ा कार्बन सिंक और जैव विविधता का भंडार हैं और नदियों का जलागम क्षेत्र तैयार करते हैं लेकिन धरती से हर घंटे 13 हेक्टेयर जंगल साफ हो रहे हैं।
उधर जंगलों की बढ़ती आग ने दुनिया के सबसे समृद्ध अमेज़न फॉरेस्ट पर संकट बढ़ा दिया है। साल 2023 की पहली छमाही में पिछले साल के मुकाबले यहां आग की घटनाओं में 10% वृद्धि हुई। यहां 2007 के बाद से इस साल सबसे अधिक आग की घटनाएं दर्ज की गई है। जानकारों का कहना है कि पिछले साल के मुकाबले इस साल जनवरी से जुलाई के बीच जंगलों के कटान का ग्राफ 42% गिरा है लेकिन आग की घटनाओं के कारण यह प्रगति मिट्टी में मिल सकती है।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
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