चावल दुनिया की आधी से अधिक आबादी का मुख्य भोजन है। इसमें पहले से ही अन्य अनाजों की तुलना में आर्सेनिक अधिक होता है। अब एक नए अध्ययन में सामने आया है कि आर्सेनिक-दूषित पानी से इसे धोने या उबालने से स्वास्थ्य को गंभीर खतरा हो सकता है।
शेफील्ड विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट फॉर सस्टेनेबल फूड द्वारा किए गए शोध से पता चला है कि जो देश पानी में आर्सेनिक के स्तर पर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की वर्तमान सीमा का पालन नहीं करते हैं, वे दुनिया की लगभग 32 प्रतिशत आबादी के स्वास्थ्य को गंभीर खतरे में डाल रहे हैं। इनमें विशेष रूप से निम्न और मध्यम आय वाले देश शामिल हैं। चीन, बांग्लादेश, पाकिस्तान, कंबोडिया, थाईलैंड, म्यांमार और नेपाल जैसे कई एशियाई देश अभी भी पानी में अकार्बनिक आर्सेनिक के लिए डब्ल्यूएचओ की पुरानी सीमा (50 µg L-1 या पार्ट्स प्रति बिलियन) का उपयोग करते हैं, जो 1963 में निर्धारित की गई थी।
पीने, खाना पकाने या सिंचाई के लिए उपयोग किए जाने वाले पानी में मौजूद आर्सेनिक के लंबे समय तक संपर्क में रहने से शरीर के हर अंग को प्रभावित करने वाली कई स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं, जैसे कैंसर, मधुमेह और फेफड़े और हृदय संबंधी रोग आदि।
भारत में पश्चिम बंगाल, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, हरियाणा, झारखंड, कर्नाटक, पंजाब और उत्तर प्रदेश में भूजल में आर्सेनिक पाया गया है। इस डॉक्यूमेंट्री में देखा जा सकता है कि पानी में मौजूद आर्सेनिक के कारण कितनी गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।
2022 में दुनिया ने पैदा किया 62 अरब किलोग्राम ई-कचरा: यूएन
साल 2022 में दुनियाभर में 62 अरब किलोग्राम इलेक्ट्रॉनिक कचरा (ई-कचरा) पैदा हुआ। संयुक्त राष्ट्र (यूएन) द्वारा 20 मार्च, 2024 को जारी एक नई रिपोर्ट के अनुसार, 2030 में यह संख्या बढ़कर 82 अरब किलोग्राम होने का अनुमान है। ई-कचरे में हुई वृद्धि औपचारिक रीसाइक्लिंग में वृद्धि से लगभग पांच गुना अधिक है। इसके मुख्य कारण हैं तकनीकी प्रगति, उच्च खपत, मरम्मत के सीमित विकल्प, उत्पादों की घटती लाइफसाइकिल, बढ़ता इलेक्ट्रॉनिकीकरण और ई-कचरा प्रबंधन का अपर्याप्त इंफ्रास्ट्रक्चर।
रिपोर्ट में कहा गया है कि इन कारणों से औपचारिक और पर्यावरण के अनुकूल कलेक्शन और रीसाइक्लिंग में वृद्धि कम होती जा रही है।
मेघालय का बर्नीहाट देश का सबसे प्रदूषित शहर
मेघालय का बर्नीहाट एक बार फिर देश का सबसे प्रदूषित शहर बन गया है, जहां वायु गुणवत्ता सूचकांक बढ़कर 325 पर पहुंच गया है। वहीं दूसरी तरफ झांसी में हवा सबसे ज्यादा साफ है, जहां एक्यूआई 28 दर्ज किया गया है। यदि इन दोनों शहरों की वायु गुणवत्ता में तुलना करें तो बर्नीहाट की हवा झांसी से 12 गुना ज्यादा खराब है।
आंकड़ों के मुताबिक जिन शहरों में हवा खराब है, उनकी संख्या में करीब 163 फीसदी का इजाफा हुआ है। गौरतलब है कि जहां 29 मार्च को देश के आठ शहरों में वायु गुणवत्ता खराब थी, वहीं 30 मार्च को यह आंकड़ा बढ़कर 21 पर पहुंच गया। इन शहरों में अंगुल, बारबिल, बेतिया, भागलपुर, भिवानी, बिलीपाड़ा, बक्सर, ब्यासनगर, छपरा, फरीदाबाद, ग्रेटर नोएडा, किशनगंज, मुजफ्फरपुर, नयागढ़, पटना, राउरकेला, रूपनगर, सहरसा, सिवान, सुआकाती और सूरत शामिल हैं।
यदि दिल्ली की बात करें तो 30 मार्च को वायु गुणवत्ता सूचकांक में 13 अंकों का इजाफा हुआ है, जिसके बाद एक्यूआई बढ़कर 189 पर पहुंच गया है।
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