इस साल दिल्ली ने तीन वर्षों में सबसे गर्म और सबसे प्रदूषित अप्रैल का अनुभव किया। अप्रैल 2025 में औसत अधिकतम तापमान 39 डिग्री सेल्सियस रहा, जो सामान्य से 2.5 डिग्री सेल्सियस से ऊपर था। साथ ही 7 से 9 अप्रैल तक लगातार तीन दिन हीटवेव चली। वहीं बारिश भी कम हुई, सामान्य 16.3 मिमी के मुकाबले केवल 0.7 मिमी वर्षा दर्ज की गई।
बारिश की कमी और शुष्क हवाओं के चलते दिल्ली में वायु गुणवत्ता खराब हो गई; औसत वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यू आई) 211 था, जो 2022 के बाद से सबसे अधिक था। इस साल अप्रैल में 20 ‘खराब’ वायु गुणवत्ता वाले दिन थे, जबकि अप्रैल 2024 में सात ऐसे दिन दर्ज किए गए थे। हालांकि मई के शुरुआती दिनों में बारिश और तेज हवाओं के कारण थोड़ी राहत मिल सकती है, लेकिन फिलहाल दिल्ली में येलो अलर्ट जारी है।
सभी प्रमुख महानगरों में पीएम10 तय सीमा से अधिक: शोध
दिल्ली-स्थित क्लाइमेट-टेक स्टार्टअप ‘रेस्पाइर लिविंग साइंसेज’ ने एक अध्ययन में खुलासा किया है कि भारतीय शहरों में हवा किस कदर जहरीली हो चुकी है। वायु गुणवत्ता को लेकर किए इस चार-वर्षीय अध्ययन से पता चला है कि मॉनिटर किए गए सभी 11 महानगरों में पीएम10 का स्तर 2021 से 2024 के बीच लगातार राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानकों से अधिक था। हालांकि इस दौरान कई नीतिगत प्रयास किए गए, इसके बावजूद प्रदूषण का स्तर लगातार अधिक बना रहा।
प्रदूषण में मौजूद महीन कणों को पीएम10 कहा जाता है। यह ऐसे कण होते हैं जिनका आकार 10 माइक्रोमीटर से बड़ा नहीं होता। ये कण हवा में आसानी से घुल जाते हैं और सांस के जरिए शरीर में प्रवेश कर फेफड़ों को गंभीर नुकसान पहुंचा सकते हैं।
इस दौरान उत्तर भारत की स्थिति सबसे गंभीर पाई गई, जहां दिल्ली, पटना, लखनऊ और चंडीगढ़ जैसे शहरों में पीएम10 का स्तर विशेष रूप से बेहद खतरनाक रहा। हैरानी की बात है कि पारम्परिक रूप से बेहतर माने जाने वाले शहर भी मानकों को पूरा करने में विफल रहे।
कृत्रिम प्रकाश से होनेवाले प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए भारत में कोई नियम नहीं: सीपीसीबी
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल (एनजीटी) में एक सुनवाई के दौरान बताया कि भारत में कृत्रिम रोशनी से होने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए कोई कानून नहीं है। यह मामला पंचतत्त्व फाउंडेशन ने दायर किया गया था, जिसने एनजीटी के समक्ष ऐसे अध्ययन प्रस्तुत किए जिनमें कहा गया था कि रात में कृत्रिम रौशनी से पौधों, जानवरों और मनुष्यों की स्लीप साइकिल को नुकसान पहुंचता है।
सीपीसीबी ने स्वीकार किया कि वर्तमान कानून वायु, जल और अपशिष्ट प्रदूषण से संबंधित हैं, लेकिन कृत्रिम रोशनी से होने वाले प्रदूषण को लेकर कोई कानून नहीं है। जुलाई 2023 में एनजीटी ने कहा था कि कृत्रिम रोशनी से होनेवाले प्रदूषण के सभी आयामों को समझने के लिए विस्तृत अध्ययन की आवश्यकता है। मामले में अब संबंधित सरकारी मंत्रालयों की प्रतिक्रियाओं का इंतजार है।
निर्माण स्थलों पर प्रदूषण संकेतक लगाने के लिए हाई कोर्ट ने बीएमसी को दिए 6 सप्ताह
बॉम्बे हाई कोर्ट ने बृहन्मुम्बई महानगरपालिका (बीएमसी) को सक्रिय निर्माण स्थलों पर प्रदूषण संकेतक स्थापित करने के लिए छह सप्ताह का समय दिया है। ऐसा नहीं करने पर अदालत ने सख्त कार्रवाई की चेतावनी दी है।
इससे पहले, कोर्ट ने फरवरी तक ऐसा करने का आदेश दिया था, लेकिन अधिकांश निर्माण स्थलों पर अभी भी यह उपकरण नहीं लगे हैं। बीएमसी ने कहा कि वह इस दिशा में कदम उठा रही है और सेंट्रल मॉनिटरिंग के लिए आईआईटी विशेषज्ञों से परामर्श कर रही है। अदालत ने जोर दिया कि आदेशों के अनुपालन में कोई देरी नहीं होनी चाहिए।
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