फोटो: Günther Hertwig/Pixabay

कनाडा की कंपनी ने यूएन की उपेक्षा कर अमेरिका से मांगी महासागरों में खनन की अनुमति

एक कनाडाई कंपनी की अमेरिकी सब्सिडरी ने डीप सीबेड माइनिंग की अनुमति के लिए अमेरिका के राष्ट्रीय महासागरीय और वायुमंडलीय प्रशासन (एनओएए) को आवेदन भेजा है। यह पहली बार है कि अंतर्राष्ट्रीय समुद्र तल में खनन और दोहन का प्रबंधन करने वाली संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी इंटरनेशनल सीबेड अथॉरिटी (आईएसए) की उपेक्षा कर कोई ऐसा व्यावसायिक आवेदन किया गया है। आईएसए ने साफ कर दिया है कि उसकी अनुमति के बिना माइनिंग करना अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन होगा। इसलिए उम्मीद की जा रही है कि यह आवेदन एक जटिल कानूनी विवाद को जन्म देगा।

गहरे समुद्र में खनन को नियंत्रित करने के लिए अभी कोई नियम नहीं बने हैं, और वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि इससे समुद्री जीवों और जलवायु संतुलन को नुकसान पहुंचेगा। अमेरिका आईएसए का हिस्सा नहीं है, और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में मंजूरी प्रक्रिया को तेज करने का आदेश दिया था। क्लाइमेट एक्टिविस्ट और दूसरे कई देश इस कदम को खतरनाक और अवैध बताकर इसका विरोध कर रहे हैं।

जलवायु प्रतिज्ञाओं पर अमल करने में विफल एशियाई देश: रिपोर्ट

क्लाइमेट एनालिटिक्स की एक नई रिपोर्ट से पता चलता है कि आठ एशियाई देश अपनी स्वैच्छिक अंतर्राष्ट्रीय जलवायु प्रतिबद्धताओं पर मजबूत कार्रवाई नहीं कर पा रहे हैं।

यह अध्ययन जापान, इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया, थाईलैंड और वियतनाम पर केंद्रित है — यह सभी देश चार प्रमुख कॉप जलवायु प्रतिज्ञाओं में सम्मलित हैं। इन प्रतिज्ञाओं में कोयले को फेजआउट करना, नवीकरण और ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देना और मीथेन उत्सर्जन में कटौती आदि शामिल हैं। इन प्रतिज्ञाओं के बावजूद, कोयले का उपयोग अधिक हो रहा है और कई देशों को कोल पावर का विस्तार कर रहे हैं। अक्षय ऊर्जा की प्रगति धीमी है, जिसका मुख्य कारण है पुरानी बिजली ग्रिड और नियामक बाधाएं।

केवल जापान ने ऊर्जा दक्षता में उल्लेखनीय सुधार दिखाया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि चूंकि यह प्रतिज्ञाएं स्वैच्छिक हैं और इन्हें बाध्यकारी नहीं बनाया जा सकता है, इसलिए उनका प्रभाव कमजोर होता है।

सेबी ने ईएसजी रेटिंग वापस लेने के नए मानदंड जारी किए

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने कंपनियों की ईएसजी (एनवायरमेंटल, सोशल एंड गवर्नेंस) रेटिंग वापस लेने के नए नियम जारी किए हैं। ईएसजी रेटिंग एक ऐसा सूचकांक है जिसके माध्यम से पता लगाया जा सकता है कि कोई कंपनी पर्यावरण, सामाजिक और प्रशासनिक क्षेत्रों में कितना अच्छा प्रदर्शन कर रही है और जोखिमों का प्रबंधन कितनी अच्छी तरह से करती हैं।

यदि कोई कंपनी सस्टेनेबिलिटी रिपोर्ट नहीं देती है या फिर कोई रेटिंग की सदस्यता नहीं लेता है, तो रेटिंग को हटाया जा सकता है। यदि सेबी ने किसी फर्म को तीन साल या बॉन्ड की वैधता की अवधि के लिए रेट किया है, तो भी रेटिंग वापस ली जा सकती है। सेबी ईएसजी रिपोर्टिंग नियमों की समीक्षा कर रही है क्योंकि कंपनियों ने शिकायत की थी कि वर्तमान नियम बहुत सख्त हैं।

भारत ने स्थगित किया सिंधु जल समझौता, हो सकते हैं दूरगामी परिणाम

पहलगाम में 22 अप्रैल को आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के साथ 1960 में हुआ सिंधु जल समझौता स्थगित कर दिया है। विशेषज्ञों द्वारा यह आकलन किया जा रहा है कि इस निर्णय के क्या परिणाम हो सकते हैं। समझौते के तहत भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु बेसिन की छह नदियों का बंटवारा हुआ था।

आज भारत पूर्वी हिस्से की अपने अधिकार वाली नदियों का 90 प्रतिशत पानी इस्तेमाल कर रहा है और उन पर कई हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट भारत बनाए जा चुके हैं वहीं पश्चिमी नदियों पर उसकी उसकी कुछ जलविद्युत परियोजनायें चल या बन रही हैं।

यह महत्वपूर्ण है कि भारत पश्चिमी नदियों (चिनाब, झेलम और सिन्धु) पर अपनी जल संग्रह के अधिकार का पूरा दोहन नहीं कर पाया है और उसकी जलविद्युत परियोजनाओं पर भी पाकिस्तान ने कई बार सवाल खड़े किए हैं। कम पानी वाले सीजन में वूलर झील को नेविगेशनल बनाने के लिए भारत ने जो तुलबुल प्रोजेक्ट शुरू किया, वह पाकिस्तान की आपत्ति के कारण लंबे समय से अटका पड़ा है।

जानकार बताते हैं कि सिंधु के पानी को लेकर कश्मीरी अवाम के दिल में नाइंसाफी की भावना रही है क्योंकि उन्हें लगता है पश्चिमी नदियों का अधिक हिस्सा पाकिस्तान को गया और भारत के अपने राज्य कश्मीर की जरूरतों को अनदेखा किया गया। इस लिहाज से भारत पश्चिमी नदियों के दोहन के विकल्प पर गंभीरता से विचार कर सकता है।

संधि को स्थगित कर भारत जल संग्रह क्षमता को असीमित करने के साथ उन प्रोजेक्ट्स को शुरू कर सकता है जो पाकिस्तान की आपत्ति से रुके हैं जैसे तुलबुल प्रोजेक्ट। वर्तमान में झेलम की सहायक नदी पर किशनगंगा और चिनाब पर बन रहे रातले प्रोजेक्ट के निरीक्षण के पाकिस्तान के अधिकार खत्म कर सकता है और उनके अधिकारियों को वहां मुआयने के लिए जाने से रोक सकता है।

इसके अलावा भारत पाकिस्तान के साथ इन नदियों के लेकर किसी भी तरह के डाटा को साझा करना बंद कर सकता है। इससे पाकिस्तान के लिए कृषि सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण की प्लानिंग कठिन हो जाएगी।

जलवायु परिवर्तन से बढ़ सकती है क्रेडिट डिफ़ॉल्ट की संभावना: आरबीआई डीजी

आरबीआई के डिप्टी गवर्नर एम राजेश्वर राव ने कहा है कि जलवायु परिवर्तन के कारण कर्ज लेने की लागत और संपत्ति का नुकसान बढ़ेगा, जिससे कर्ज नहीं चुका पाने के मामले भी बढ़ सकते हैं। क्रेडिट समिट 2025 में बोलते हुए उन्होंने बताया कि जलवायु परिवर्तन वित्तीय संस्थानों को मुख्य रूप से इसी तरह प्रभावित करता है, क्योंकि कर्ज लेने वाले उसे चुका पाने में विफल रहते हैं। 

उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन से संपत्ति की क्षति, फसल हानि, बेरोजगारी और आजीविका की समस्याएं खड़ी होती हैं। ग्रीन टेक्नोलॉजी की ओर ट्रांज़िशन में भी क्रेडिट जोखिम रहता है क्योंकि कई तकनीकें अभी भी विकसित हो रही हैं। उन्होंने कहा कि ग्रीन फाइनेंस को बढ़ावा देते समय नियामकों को इन जोखिमों के प्रबंधन पर भी ध्यान देना चाहिए।

भारत जैसी तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के लिए जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करते हुए विकास दर बनाए रखना बड़ी चुनौती है। राव ने कहा कि क्लाइमेट फाइनेंस को तकनीकी विशेषज्ञता और क्वालिटी डेटा की जरूरत है। उन्होंने कहा कि जलवायु विज्ञान और वित्तीय मॉडलिंग के लिए अलग-अलग कौशल की आवश्यकता है,और जलवायु वैज्ञानिकों और वित्तीय विशेषज्ञों के बीच सहयोग जरूरी है।

गर्मी के चलते कर्नाटक सरकार ने मनरेगा मजदूरों को काम में दी छूट

कर्नाटक सरकार ने अप्रैल और मई के लिए कलबुर्गी और बेलगावी डिवीजनों में महात्मा गांधी रोज़गार गारंटी योजना (मनरेगा) मजदूरों के लिए काम में 30 प्रतिशत की रियायत देने की घोषणा की है। इसका मतलब है कि मजदूर 30% कम काम करके भी पूरी मजदूरी प्राप्त करते हैं। इन क्षेत्रों में अत्यधिक गर्मी की स्थिति के कारण यह निर्णय लिया गया, जिससे मजदूरों के लिए पूरे समय काम करना मुश्किल हो गया है। इस अस्थायी राहत से हजारों ग्रामीण मजदूरों को भीषण गर्मी से निपटने में मदद मिलेगी। सरकार स्थिति पर नज़र रखेगी और जरूरत पड़ने पर आगे का निर्णय करेगी।

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