भारत के अक्षय ऊर्जा लक्ष्य बढ़ती मांग के अनुरूप नहीं

भारत का लक्ष्य 2030 तक 500 गीगावाट अक्षय ऊर्जा क्षमता प्राप्त करना है। हालांकि, हालिया अध्ययनों से पता चलता है कि यह आवश्यकता से लगभग 12% कम हो सकता है। आर्थिक विकास, बढ़ती गर्मी और इलेक्ट्रिक वाहनों के कारण बिजली की मांग तेजी से बढ़ रही है। 

भारत में वार्षिक बिजली की मांग 2030 तक दोगुनी हो सकती है, विशेष रूप से एयर कंडीशनर के बढ़ते उपयोग, इलेक्ट्रिक वाहन एडॉप्शन और औद्योगिक विकास के कारण। काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वॉटर (सीईईडब्ल्यू) के एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि भारत को 2030 अनुमानित मांग को पूरा करने के लिए 569-640 गीगावाट अक्षय ऊर्जा की आवश्यकता होगी, जो कि वर्तमान लक्ष्य से 12% -28% अधिक क्षमता है।

सौर और पवन ऊर्जा की परिवर्तनशीलता, ग्रिड स्थिरता की चुनौतियों और सौर ऊर्जा पर हद से अधिक निर्भरता की समस्याओं से भी विशेषज्ञ आगाह करते हैं

भविष्य में ऊर्जा की जरूरतों को पूरा करने के लिए भारत को अपने ऊर्जा मिश्रण में विविधता लानी होगी, ग्रिड इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ाना होगा और एनर्जी स्टोरेज सिस्टम में सुधार करना होगा। इन उपायों के बिना, भारत को ऊर्जा की मांग और आपूर्ति में अंतर को पाटने के लिए जीवाश्म ईंधन पर निर्भर रहना होगा।

आईएसटीएस छूट की समाप्ति से खटाई में पड़ सकता है भारत का अक्षय ऊर्जा लक्ष्य

भारत की अक्षय ऊर्जा कंपनियों ने केंद्र सरकार से इंटरस्टेट ट्रांसमिशन सिस्टम (आईएसटीएस) शुल्क में छूट की अवधि बढ़ाने की मांग की है। वर्तमान में यह छूट 30 जून 2025 को समाप्त हो रही है। आईएसटीएस शुल्क एक राज्य से दूसरे राज्य में पावर ग्रिड के माध्यम बिजली भेजने पर लागू होते हैं।

शुल्क में छूट से वाणिज्यिक और औद्योगिक उपयोगकर्ताओं को कम लागत पर नवीकरणीय बिजली खरीदने में आसानी होती है। इससे बड़े उद्योगों के लिए नवीकरणीय ऊर्जा अधिक आकर्षक और सस्ती होती है। इसलिए यह 2030 तक गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता को 500 गीगावाट करने के भारत के लक्ष्य का भी समर्थन करती है। छूट की समाप्ति पर नवीकरणीय बिजली उल्लेखनीय रूप से महंगी हो जाएगी और परियोजनाओं को इसका लाभ नहीं मिलेगा। मेरकॉम का कहना है इससे भारत के 500 गीगावाट लक्ष्य की प्राप्ति में देरी हो सकती है।

एशियाई देशों से निर्यातित सौर पैनलों पर 3,521% तक टैरिफ लगा सकता है अमेरिका

अमेरिका कंबोडिया, थाईलैंड, मलेशिया और वियतनाम जैसे देशों से सौर पैनलों के आयात पर 3,521% तक टैरिफ लगा सकता है। हाल ही में अमेरिकी प्रशासन को शिकायतें मिली थीं कि चीन इन देशों के ज़रिए अमेरिका में सस्ते सौर पैनलों का निर्यात कर रहा है और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लगाए गए भारी टैरिफ से बच रहा है।

इन शिकायतों पर अमेरिका ने एक जांच भी की थी जिसके बाद यह कदम उठाने की योजना बनाई गई है। इस मामले में अंतिम निर्णय जून में लिए जाने की उम्मीद है। अलग-अलग देशों और कंपनियों पर टैरिफ अलग-अलग हो सकते हैं। कंबोडिया के कुछ सौर उपकरण निर्यातकों को 3,521 प्रतिशत के उच्चतम शुल्क का सामना करना पड़ सकता है, वहीं चीनी कंपनी जिंको सोलर द्वारा मलेशिया में बने उत्पादों पर सबसे कम 41% टैरिफ लगाया जा सकता है।

Website | + posts

दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
कार्बनकॉपी हिंदी में आपका स्वागत है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.