इस साल भी दुनिया महामारी से तबाह रही और लोगों ने डबल मास्क पहने। लैंसेट के एक अध्ययन ने साबित किया कि कोविड-19 मुख्य रूप से हवा से फैलता है। शिकागो विश्वविद्यालय के ऊर्जा नीति संस्थान (ईपीआईसी) के अनुसार वायु प्रदूषण भारतीयों की जीवन प्रत्याशा (लाइफ एक्सपेक्टेंसी) को नौ साल तक कम कर सकता है। क्योंकि भारतीय जिन प्रदूषकों को अपनी सांस के ज़रिये फेफड़ों में लेते हैं वह दुनिया में किसी भी और जगह के मुकाबले 10 गुना खराब हैं। अध्ययन में कहा गया है कि स्वच्छ वायु नीतियां लोगों का जीवनकाल पांच साल तक बढ़ा सकती हैं।
हार्वर्ड के एक अध्ययन में कहा गया है कि विश्व में हर पांच में से एक अकाल मृत्यु जीवाश्म ईंधन के जलने से होती है। भारत में इससे सालाना लगभग 25 लाख लोग मारे जाते हैं। ग्रीनपीस और स्विस फर्म आईक्यूएयर के विश्लेषण से पता चला है कि पिछले साल वायु प्रदूषण के कारण नई दिल्ली में लगभग 54,000 लोगों की अकाल मृत्यु हुई। रिपोर्ट के अनुसार पूरे भारत में इससे 120,000 से अधिक लोग मारे गए। लैंसेट के एक अध्ययन में पाया गया कि दक्षिण एशिया में प्रति वर्ष अनुमानित 349,681 गर्भपात वायु प्रदूषण के कारण हुए।
फ्रांस की एक अदालत ने पहली बार एक ऐतिहासिक फैसले में दमे से पीड़ित एक बांग्लादेशी व्यक्ति के प्रत्यर्पण पर रोक लगाते हुए वायु प्रदूषण का हवाला दिया, जब उसके वकील ने तर्क दिया कि अभियुक्त के देश में प्रदूषण के खतरनाक स्तर के कारण उसकी अकाल मृत्यु की संभावना है। एक नए शोध से पता चला है कि उच्च-स्तर बायोमास बर्निंग के संपर्क में आने वाली किशोर लड़कियों का कद कम रह जाता है। संभावना है कि यूरोपीय कोयला संयंत्रों से होने वाले वायु प्रदूषण से लगभग 34,000 लोगों की अकाल मृत्यु हुई। उधर एक अमेरिकी शोध ने पाया कि पशुधन की खेती सहित कृषि गतिविधियों के वायु प्रदूषण से पूरे संयुक्त राज्य अमेरिका में हर साल 17,000 से अधिक मौतें होती हैं।
केंद्र ने इस साल दस लाख से अधिक आबादी वाले 42 शहरों में वायु प्रदूषण से लड़ने के लिए 2,217 करोड़ रुपये आवंटित किए। पिछले साल यह बजट ₹4,400 करोड़ था, जिसमें से अधिकांश खर्च नहीं किया गया था। ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (सीईईडब्ल्यू) के एक सर्वेक्षण में पाया गया कि छह भारतीय राज्यों में शहरी बस्तियों के 86 फीसदी घरों में एलपीजी कनेक्शन हैं, लेकिन केवल 50% ही उनका उपयोग करते हैं।
भारत ने कोयला बिजली संयंत्रों के लिए उत्सर्जन में कमी लाने की तकनीक स्थापित करने की समय सीमा तीन साल बढ़ा दी। यह समय सीमा पहले ही 5 साल बढ़ा कर 2017 से 2022 की गई थी। सरकारी जवाबदेही तय करने के लिए भारत के हरित न्यायालय, राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने वायु गुणवत्ता में सुधार लाने के कदमों की निगरानी के लिए आठ-सदस्यीय राष्ट्रीय कार्य बल का गठन किया है। केंद्र ने कुछ सबसे अधिक प्रदूषण करने वाले उद्योगों को केवल ‘नो इनक्रीस इन पॉल्यूशन लोड’ (प्रदूषण भार में कोई वृद्धि नहीं) प्रमाणपत्र देकर उनके संचालन का विस्तार करने की अनुमति दे दी। एक नए अध्ययन के अनुसार, वायु प्रदूषण से भारतीय व्यवसायों को सालाना 95 बिलियन डॉलर का नुकसान होता है।
आईक्यूएयर के अनुसार 2020 में नई दिल्ली लगातार तीसरे वर्ष दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी थी। दुनिया के 50 सबसे प्रदूषित शहरों में से 35 भारत में पाए गए। अध्ययन में पाया गया कि 2020 में प्रदूषण से नई दिल्ली में लगभग 54,000 मौतें समय से पहले हुईं।
दिल्ली सरकार की कैबिनेट ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में वायु प्रदूषण को रोकने के लिए एक रियल-टाइम स्रोत विभाजन अध्ययन को मंजूरी दी। एक स्रोत-विभाजन अध्ययन के अनुसार, दिल्ली के PM2.5 का 64 प्रतिशत हिस्सा पड़ोसी राज्यों से आता है।
संसद ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और निकटवर्ती इलाकों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन हेतु आयोग बिल, 2021 को मंजूरी दी, जिसमें पहली बार औपचारिक रूप से वायु प्रदूषण को ‘एयरशेड’ आधार पर समझा गया है, यानी राज्य की सीमाओं से परे उठकर उस पूरे क्षेत्र पर गौर किया जायेगा जिस पर मौसमी और भौगोलिक कारणों से प्रदूषक फैलते हैं।
भारत हवा में फैले जिन वायु प्रदूषकों पर निगरानी रखता है उनमें 2022 तक पीएम 2.5 से छोटे अल्ट्राफाइन पार्टिकुलेट मैटर को शामिल करने पर विचार कर रहा है। वर्तमान में भारत आठ प्रदूषकों की मॉनिटरिंग करता है, जिनमें पीएम 2.5, पीएम 10, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, ओजोन, कार्बन मोनोऑक्साइड, बेंजीन और अमोनिया शामिल हैं। वायु गुणवत्ता मानकों को बेहतर करने की तैयारी में भारत पिछले साल कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान दर्ज किए गए वायु गुणवत्ता डेटा को आधार मानेगा।
वायु प्रदूषण को कम करने के लिए भारत ने कोयले से चलने वाले कुछ ताप विद्युत संयंत्रों में बायोमास छर्रों के उपयोग को अनिवार्य कर दिया। इस बीच पराली जलाने को अपराध की श्रेणी से मुक्त कर दिया गया है। ईपीआईसी के एक अध्ययन में पाया गया कि दिल्ली में वायु प्रदूषण निकटतम बाहरी सरकारी मॉनिटरों द्वारा बताए गए स्तरों की तुलना में काफी अधिक (डब्ल्यूएचओ के स्तर से 20 गुना) था।विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने संशोधित और अधिक कड़े वैश्विक वायु गुणवत्ता दिशानिर्देश जारी करते हुए कहा कि वायु प्रदूषण पहले ज्ञात स्तरों से कम कंसंट्रेशन पर भी स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाता है। वार्षिक PM2.5 का स्तर 10 माइक्रोग्राम/घन मीटर (2005) से आधा करके 5 माइक्रोग्राम/घन मीटर कर दिया गया है, जबकि दैनिक औसत 25 माइक्रोग्राम/घन मीटर (2005) से घटाकर 15 माइक्रोग्राम/घन मीटरनिर्धारित किया गया है। इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) द्वारा जलवायु संकट पर नवीनतम रिपोर्ट में कहा गया है कि वायु प्रदूषकों की वृद्धि पूरे भारत में बदस्तूर जारी है।
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