फोटो: Wikimedia Commons

भारत के ‘टाइगर मैन’ वाल्मीक थापर का निधन

दशकों तक भारत में बाघों के संरक्षण की मुहिम में प्रमुख भूमिका निभाने वाले वाल्मीक थापर शनिवार को नई दिल्ली में निधन हो गया। वह 73 वर्ष के थे और लगभग एक साल से कैंसर की बीमारी से जूझ रहे थे।

लगभग पांच दशकों तक भारत में वन्यजीवन संरक्षण के लिए कार्य करने वाले थापर रणथंभौर से अपनी गहरे जुड़ाव के लिए जाने जाते थे। थापर ने वाइल्डलाइफ पर लगभग 30 किताबें लिखीं या संपादित की थीं, जिनमें प्रमुख हैं लैंड ऑफ़ द टाइगर: अ नैचुरल हिस्ट्री ऑफ़ द इंडियन सबकॉन्टिनेंट और टाइगर फायर: 500 इयर्स ऑफ़ द टाइगर इन इंडिया। उन्होंने कई प्रसिद्ध फिल्मों की प्रस्तुति और सह-निर्माण भी किया था। साल 1997 में आई उनकी सीरीज़ लैंड ऑफ़ द टाइगर काफी लोकप्रिय हुई। इसके अलावा 2024 में आई डॉक्यूमेंट्री माइ टाइगर फैमिली में उन्होंने रणथंभौर नेशनल पार्क में बाघों को देखने के अपने 50 साल के अनुभव को साझा किया था।

बाघों के संरक्षण की उनकी यात्रा 1976 में तब शुरू हुई जब वे रणथंभौर के तत्कालीन निदेशक फतेह सिंह राठौड़ से मिले। 

हिंदुस्तान टाइम्स में जयश्री नंदी के लेख के अनुसार, थापर “इनवॉयलेट स्पेसेज़” में दृढ़ विश्वास रखते थे, यानि ऐसे संरक्षित क्षेत्र जहां मानव हस्तक्षेप बिलकुल न हो। वे ज़ोर देते थे कि बाघों का अस्तित्व ऐसे क्षेत्रों पर निर्भर करता है। 2005 में टाइगर टास्क फोर्स को दिए गए अपने डिसेंट नोट में उन्होंने लिखा: “कम से कम एक क्षेत्र विशेष को उसकी प्राकृतिक अवस्था में केवल बाघों के लिए सुरक्षित रूप से प्रबंधित करना आवश्यक है… बाघों के हित में इस सिद्धांत को लागू किया जाए।” हालांकि आदिवासियों और स्थानीय समुदायों के लिए संघर्ष करने वाले फॉरेस्ट राइट्स एक्टिविस्ट उनके इन विचारों के विरोध में थे। 

थापर ने वर्षों तक फील्ड पर रहकर बाघों के व्यवहार का निकट से अध्ययन किया और स्थानीय समुदायों के साथ मिलकर कार्य किया। उन्होंने रणथंभौर फाउंडेशन की स्थापना की और संरक्षण प्रयासों को सहायता देने के लिए महिलाओं के सहकारी समूहों और सस्टेनेबल आजीविका जैसी पहलों का समर्थन किया।

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