सुप्रीम कोर्ट ने 2023 में सरकार द्वारा वन संरक्षण अधिनियम (एफसीए) में किए गए संशोधनों पर रोक लगाते हुए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से कहा है कि वह उसके 1996 में दिए गए आदेश में वर्णित ‘वन’ की परिभाषा का पालन करें।
वन संरक्षण अधिनियम, 1980 में पिछले साल किए गए संशोधनों के खिलाफ दायर याचिकाओं में कहा गया था कि 2023 के संशोधन ने वन की परिभाषा को ‘काफ़ी हद तक कमजोर’ कर दिया है, अधिनियम के दायरे को सीमित कर दिया है और इसके कारण कथित तौर पर 1.97 लाख वर्ग किमी भूमि वन क्षेत्र से बाहर हो गई है।
इसलिए, सर्वोच्च न्यायालय ने एक अंतरिम आदेश जारी किया और देश में वनों की पहचान करने के अपने 1996 के फैसले पर वापस जाने का आदेश दिया। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि वनों की सामान्य परिभाषा पर वापस जाना काफी नहीं है और ‘डीम्ड फॉरेस्ट’ के अर्थ को समझने के लिए देश के इकोलॉजिकल सिस्टम को देखते हुए कुछ व्यापक मापदंडों को परिभाषित किया जाना चाहिए।
अफ्रीका की जीडीपी में जलवायु परिवर्तन से होगी 7.1% की कटौती
जलवायु परिवर्तन के प्रभाव वैश्विक अर्थव्यवस्था पर असर डाल रहे हैं और गरीब देश इससे बड़े स्तर पर प्रभावित हो रहे हैं। अब सेंटर फॉर ग्लोबल डेवलपमेंट स्टडी बताती है कि आने वाले दशकों में अफ्रीका महाद्वीप में क्लाइमेट चेंज के प्रभावों से 20 करोड़ लोग भुखमरी का शिकार होंगे, कृषि से राजस्व 30% तक गिरेगा और कुल जीडीपी में 7.1% की गिरावट हो जाएगी। आने वाले दशकों में विकासशील देशों के सामाजिक-आर्थिक जीवन पर प्रभाव की पड़ताल करती यह रिपोर्ट बताती है कि अगर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर काबू नहीं किया गया तो विकासशील देशों खासतौर से अफ्रीका महाद्वीप पर खराब असर होगा और पिछले कुछ दशकों में हुई प्रगति के लाभ मिट जाएंगे।
हिमाचल, उत्तराखंड जैसा न हो लद्दाख का हाल, इसलिए आमरण अनशन करेंगे सोनम वांगचुक
क्लाइमेट एक्टिविस्ट सोनम वांगचुक ने कहा है कि यदि लद्दाख को राज्य का दर्जा देने की मांग पर सिविल सोसाइटी और सरकार के बीच चल रही बातचीत बेनतीजा रहती है तो वह आमरण अनशन करेंगे।
उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार “औद्योगिक लॉबी के दबाव” में है और इसलिए लद्दाख को संवैधानिक अधिकार नहीं देना चाहती है। वांगचुक ने कहा कि “ये लॉबी लद्दाख का शोषण करना चाहती है, जैसा उन्होंने हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में किया है, जहां स्थानीय लोग अब इसकी कीमत चुका रहे हैं।”
उन्होंने कहा कि यह एक मिथक है कि संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने से लद्दाख का विकास बाधित होगा।
इससे स्थानीय लोगों को विकास में हिस्सेदारी मिलेगी। इससे सुनिश्चित होगा कि सभी परियोजनाओं और लद्दाख के प्रबंधन में मूलनिवासी जनजातीय लोगों की राय ली जाए। वर्तमान में उपराज्यपाल जिसे चाहें, खनन और उद्योग की अनुमति दे सकते हैं। इसी बात से लद्दाखी लोग सबसे ज्यादा डरते हैं,” उन्होंने कहा।
चीतों को बसाने के लिए दो अभयारण्यों का दौरा करेगी अफ्रीकी टीम
अफ्रीकी और नामीबियाई विशेषज्ञों की एक टीम जल्द ही मध्य प्रदेश के गांधी सागर और नौरादेही अभयारण्यों का दौरा करेगी और चीतों को इन स्थानों पर बसाने के लिए सर्वेक्षण करेगी। पर्यावरण मंत्री भूपेन्द्र यादव ने मध्य प्रदेश के कूनो पार्क में प्रोजेक्ट चीता की समीक्षा के दौरान यह जानकारी दी।
उन्होंने कहा कि इस समय में आठ शावकों समेत 21 चीते कूनो में हैं। यादव ने कहा कि प्रोजेक्ट चीता के तहत कुल 10 वन क्षेत्रों का चयन किया गया था, जिनमें से तीन मध्य प्रदेश में हैं। अफ्रीकी विशेषज्ञों की एक टीम जल्द ही गांधीसागर और नौरादेही अभयारण्यों में जाएगी और सर्वेक्षण करने के बाद चीतों को इन स्थानों पर स्थानांतरित किया जाएगा।
भूपेन्द्र यादव ने कहा कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के अनुरोध पर राज्य में हाथी संरक्षण परियोजना भी शुरू की जाएगी, जिसके तहत एक केंद्रीय टीम एमपी का दौरा करेगी और असम और केरल के अनुभवों के आधार पर अध्ययन करेगी और एमपी सरकार को एक रिपोर्ट सौंपेगी।
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