सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र के ज्ञापनों और अधिसूचनाओं को रद्द कर दिया, जो अनिवार्य मंजूरी के बिना शुरू की गई परियोजनाओं को शुरु होने के बाद पुरानी तिथि से (पूर्वव्यापी) पर्यावरणीय मंजूरी की अनुमति देते थे। कोर्ट ने इस संबंध में जारी नोटिफिकेशन और कार्यालय ज्ञापन (ऑफिस मेमोरेंडा) को अवैध घोषित कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक, विकास पर्यावरण की कीमत पर नहीं हो सकता। विशेषज्ञों ने कहा कि यह फैसला निर्माण और खनन कार्य के लिए पर्यावरण आकलन प्रक्रिया की पवित्रता और एहतियाती सुरक्षा के सिद्धांत को पुष्ट करता है।
मार्च 2017 में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना में उद्योगों को ग्रीन क्लीयरेंस के लिए आवेदन करने के लिए “एक बार” छह महीने की अवधि प्रदान की गई थी, भले ही काम पहले ही शुरू हो चुका हो या बिना पूर्व मंजूरी प्राप्त किए अनुमत सीमा से आगे बढ़ गया हो। अधिसूचना ने उन परियोजनाओं के लिए भी दरवाजे खोल दिए थे, जिन्होंने सरकार से आवश्यक मंजूरी के बिना योजना में बदलाव किए थे। 15 मार्च, 2017 और 15 जून, 2017 के बीच, पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) अधिसूचना का उल्लंघन करने वाली 207 परियोजनाओं ने पर्यावरण मंजूरी के लिए आवेदन किया, उनमें से अधिकांश खनन और निर्माण परियोजनाएं थीं।
अधिसूचना को अवैध घोषित करते हुए, न्यायालय ने 2021 में सरकार द्वारा जारी एक कार्यालय ज्ञापन (ओएम) को भी रद्द कर दिया। इस ज्ञापन के साथ सरकार ने पूर्वव्यापी मंजूरी के अनुदान को सुव्यवस्थित करने के लिए एक मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) पेश की। इस एसओपी ने सरकार को दंड आदि की प्रक्रिया के माध्यम से उल्लंघनों को नियमित करने में सक्षम बनाया। फैसले में, न्यायालय ने कहा, “हम केंद्र सरकार को किसी भी रूप या तरीके से पूर्वव्यापी मंजूरी देने या ईआईए अधिसूचना के उल्लंघन में किए गए कार्यों को नियमित करने के लिए परिपत्र/आदेश/ओएम/अधिसूचनाएं जारी करने से रोकते हैं।”
सुप्रीम कोर्ट ने 2024 में हीट वेव से होने वाली 700 मौतों पर सरकार से जवाब मांगा
पिछले साल हीट वेव से हुई 700 मौतों को उजागर करने वाली याचिका के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने जलवायु परिवर्तन से जुड़े बढ़ते हीट वेव संकट पर केंद्र से जवाब मांगते हुए एक नोटिस जारी किया।
मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की अगुवाई वाली पीठ ने गृह मंत्रालय (एमएचए), पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) सहित प्रमुख सरकारी एजेंसियों को नोटिस जारी किए। अदालत ने उनसे दो सप्ताह के भीतर जवाब देने को कहा।
यह याचिका पर्यावरण कार्यकर्ता विक्रांत तोंगड़ ने दायर की थी, जिन्होंने गर्मी से संबंधित त्रासदियों को रोकने के लिए राष्ट्रव्यापी कार्य योजना, गर्मी की चेतावनी, प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली और 24/7 हेल्पलाइन जैसे तत्काल कदम उठाने की मांग की थी।
पंजाब के किसान हाइब्रिड धान पर प्रतिबंध के मामले में हाईकोर्ट के फैसले का इंतजार, घटता जा रहा है बुआई का समय
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने भूजल स्तर में गिरावट को रोकने के लिए हाइब्रिड धान की खेती पर प्रतिबंध लगाने के राज्य सरकार के फैसले पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।
इकॉनोमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, इस फ़ैसले से किसान निराश हैं, क्योंकि धान की पौध तैयार करने के लिए ज़रूरी आधे से ज़्यादा समय बीत चुका है। किसानों ने अख़बार से कहा कि कोर्ट को जल्द से जल्द अपना फ़ैसला सुनाना चाहिए, ताकि वे तय कर सकें कि इस मौसम में कौन सी किस्म की फ़सल लगानी है।
पंजाब ने राज्य के बिगड़ते भूजल संकट से निपटने और पर्यावरण को होने वाले नुकसान को कम करने के लिए हाइब्रिड धान और लोकप्रिय पूसा-44 किस्म की खेती पर प्रतिबंध लगा दिया है। कृषि विभाग द्वारा 7 अप्रैल, 2025 को घोषित किए गए इस फैसले से विवाद पैदा हो गया है और अब यह न्यायिक समीक्षा के अधीन है।
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