जलवायु परिवर्तन के कारण घटी ट्रिपल-डिप ला-नीना की घटना से 2022-23 के सर्दियों के मौसम में जहां उत्तर भारत में हवा की गुणवत्ता में सुधार हुआ, वहीं प्रायद्वीपीय क्षेत्रों में प्रदूषण के स्तर में वृद्धि दर्ज की गई। साल 2020-23 के दौरान लगातार तीन सालों में ला-नीना की अनोखी ट्रिपल-डिप घटना का दुनिया भर में समुद्र और जलवायु पर भारी असर पड़ा।
एल्सेवियर जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चला है कि 2022-23 की सर्दियों के दौरान भारत के प्रायद्वीपीय शहरों में हवा की गुणवत्ता खराब हुई, लेकिन हाल के दशकों में देखे गए रुझानों के विपरीत, उत्तरी हिस्सों में हवा की गुणवत्ता में सुधार हुआ।
उत्तर भारतीय शहरों में, गाजियाबाद में प्रदूषण में 33 प्रतिशत की कमी के साथ सबसे बड़ा सुधार दर्ज किया गया, इसके बाद रोहतक (30 प्रतिशत) और नोएडा (28 प्रतिशत) का स्थान रहा। सबसे गंभीर और चारों ओर से घिरा शहर होने के कारण दिल्ली में लगभग 10 प्रतिशत का सुधार हुआ है। इसके विपरीत मुंबई में पीएम 2.5 के स्तर में 30 प्रतिशत की वृद्धि के साथ हवा की गुणवत्ता में सबसे अधिक गिरावट दर्ज की गई, इसके बाद कोयंबटूर (28 प्रतिशत), बेंगलुरु (20 प्रतिशत), चेन्नई (12 प्रतिशत) रहे।
‘खराब’ वायु गुणवत्ता वाले शहरों में आई 68% की गिरावट
देश में खराब वायु गुणवत्ता वाले शहरों की संख्या में 68 फीसदी की भारी गिरावट आई है। आंकड़ों के मुताबिक, 27 फरवरी 2024 को खराब वायु गुणवत्ता वाले शहरों की संख्या 25 दर्ज की गई थी, जो 28 फरवरी को घटकर आठ रह गई। इन शहरों में अगरतला, अंगुल, अररिया, बर्नीहाट, गुवाहाटी, कटिहार, मुजफ्फरनगर और नलबाड़ी शामिल हैं। इसी तरह देश में केवल वापी की हवा जानलेवा है, जहां वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 308 दर्ज किया गया है।
इसी तरह दिल्ली की वायु गुणवत्ता में भी सुधार दर्ज किया गया है, जहां वायु गुणवत्ता सूचकांक में 18 अंकों की गिरावट दर्ज की गई। इस सुधार को देखते हुए केंद्र सरकार ने दिल्ली-एनसीआर से वायु प्रदूषण नियंत्रण योजना के तहत लगाए गए सभी प्रतिबंधों को वापस लेने का फैसला किया है।
देश में वाराणसी की हवा सबसे ज्यादा साफ है, जहां वायु गुणवत्ता सूचकांक 22 दर्ज किया गया है। इसी तरह तुमकुरु में भी वायु गुणवत्ता सूचकांक 27 रिकॉर्ड किया गया है। कुल मिलकर देश के 23 शहरों में वायु गुणवत्ता बेहतर बनी हुई है।
प्रदूषण पर एनजीटी ने 53 शहरों से मांगा जवाब
राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) ने 53 ऐसे शहरों रिपोर्ट मांगी है जहां वायु गुणवत्ता में गिरावट देखी गई थी। रिपोर्ट में इन शहरों से प्रदूषण के सभी स्रोतों के योगदान और प्रदूषण को कम करने के लिए किए गए उपायों पर जानकारी मांगी गई है।
पिछले साल 5 दिसंबर को एनजीटी ने विभिन्न राज्यों द्वारा प्रस्तुत रिपोर्टों पर विचार करने के बाद कहा था कि उन्होंने राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) और 15वें वित्त आयोग के तहत दिए गए फंड का पूरा उपयोग नहीं किया है। 19 फरवरी को पारित एक आदेश में एनजीटी ने यह भी कहा कि रिपोर्टों के अनुसार, वायु प्रदूषण में सबसे बड़ा योगदान सड़क की धूल का है और इसे कम करने के प्रयास किए जाने चाहिए।
मामले की अगली सुनवाई 5 मई को होगी, जिसके एक हफ्ते पहले 53 शहरों को यह रिपोर्ट जमा करने का आदेश दिया गया है।
नहाने के लिए भी सुरक्षित नहीं बिहार में गंगा का पानी
बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (बीएसपीसीबी) के अनुसार बिहार से गुजरने वाली लगभग सभी प्रमुख नदियां नहाने के लिए भी उपयुक्त नहीं हैं। बीएसपीसीबी ने 27 जिलों में गंगा, सोन, कोसी, बागमती आदि नदियों के 98 बिंदुओं पर सैंपल जांच की, और पाया कि पानी में फीसल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया की अत्यधिक उपस्थिति थी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि यह प्रदूषण पटना और अन्य शहरी क्षेत्रों में गंगा सहित अन्य नदियों में अनुपचारित सीवेज और दूषित अपशिष्ट जल छोड़ने के कारण होता है। पटना के गांधी घाट पर फीसल कोलीफॉर्म की मौजूदगी निर्धारित मापदंड से 36 गुना अधिक पाई गई।
उधर राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) ने चेतावनी दी है कि अगर बिहार गंगा जल प्रदूषण पर मांगी गई जानकारी छह सप्ताह के भीतर देने में विफल रहता है तो वह राज्य के मुख्य सचिव को व्यक्तिगत रूप से पेश होने का आदेश देगा। एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव की पीठ ने 17 फरवरी की रिपोर्ट पर गौर करते हुए कहा कि राज्य के 38 में से 20 जिलों ने अधूरी और आंशिक रूप से गलत जानकारी के साथ अपनी रिपोर्ट सौंपी थी।
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