सर्दियों के दौरान होनेवाले प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए दिल्ली सरकार ने बुधवार को एक 21-सूत्रीय ‘विंटर एक्शन प्लान’ जारी किया। इस योजना में राजधानी में बढ़ते वायु प्रदूषण के स्तर से निपटने के लिए ड्रोन का उपयोग करके प्रदूषण की रियलटाइम मॉनिटरिंग करना, विशेष टास्क फोर्स तैनात करना और कृत्रिम बारिश जैसे आपातकालीन उपायों को लागू करना शामिल है
इस विंटर एक्शन प्लान के तहत कंस्ट्रक्शन गतिविधियों के लिए 14-सूत्रीय दिशानिर्देश भी जारी किए गए हैं ताकि धूल प्रदूषण पर अंकुश लगाया जा सके।
अब 500 वर्ग मीटर से अधिक के निर्माण स्थलों को कंस्ट्रक्शन एंड डेमोलिशन पोर्टल पर पंजीकृत होना होगा, जहां पर्यावरण मानदंडों के अनुपालन की सख्ती से निगरानी की जाएगी। दिशानिर्देशों का पालन करने में विफल रहने वालों पर भारी जुर्माना लगाया जाएगा, जबकि प्रदूषण पर अंकुश लगाने के प्रयास करने वाली परियोजनाओं को ‘हरित रत्न’ पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा।
पहली बार दिल्ली में ऐसी 13 जगहों की निगरानी के लिए ड्रोन का उपयोग किया जाएगा जहां लगातार पीएम2.5 का स्तर औसत से अधिक दर्ज किया गया है।
वायु प्रदूषण से स्ट्रोक का खतरा धूम्रपान के समान: शोध
द लैंसेट न्यूरोलॉजी जर्नल में प्रकाशित एक शोध के अनुसार, दुनिया भर में स्ट्रोक और इससे संबंधित मौतों की घटनाएं काफी बढ़ रही हैं। यह वृद्धि मुख्यतः वायु प्रदूषण, बढ़ते तापमान और मेटाबोलिक कारणों से हो रही है।
ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज, इंजरीज़ एंड रिस्क फैक्टर्स स्टडी (जीबीडी) समूह के शोधकर्ताओं के अनुसार, पहली बार यह पाया गया कि पार्टिकुलेट मैटर या पीएम वायु प्रदूषण जानलेवा स्ट्रोक का उतना ही बड़ा कारण है जितना धूम्रपान।
शोधकर्ताओं ने कहा कि स्ट्रोक से प्रभावित तीन-चौथाई से अधिक लोग निम्न और मध्यम आय वाले देशों में रहते हैं।
भारत समेत दक्षिण एशियाई देशों में प्रदूषण घटा, लेकिन अभी भी जहरीली हवा में सांस ले रहे लोग
शिकागो विश्वविद्यालय के एनर्जी पॉलिसी इंस्टिट्यूट (ईपीआईसी) ने अपनी वार्षिक एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स 2024 रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट से पता चलता है कि दुनिया के सबसे प्रदूषित क्षेत्रों में रहने वाले लोग सबसे कम प्रदूषित क्षेत्रों में रहने वालों की तुलना में छह गुना अधिक प्रदूषित हवा में सांस ले रहे हैं, जिससे इन क्षेत्रों में जीवन प्रत्याशा लगभग 2.7 वर्ष कम हो गई है।
हालांकि दक्षिण एशिया में एक वर्ष में प्रदूषण में 18% की गिरावट आई है। भारत का पार्टिकुलेट प्रदूषण भी 2021 में 51.3 μg/m³ से घटकर 2022 में 41.4 μg/m³ हो गया है, जिससे देश की औसत जीवन प्रत्याशा में एक वर्ष की वृद्धि हुई है।
प्रदूषण में गिरावट के बावजूद, भारत की पूरी आबादी अभी भी ऐसे क्षेत्रों में रहती है जहां वार्षिक औसत पार्टिकुलेट प्रदूषण स्तर डब्ल्यूएचओ के दिशानिर्देशों से अधिक है। जबकि 42.6% आबादी उन क्षेत्रों में रहती है जहां प्रदूषण का स्तर भारत के राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानक 40 μg/m³ से भी अधिक है।
वैश्विक प्लास्टिक प्रदूषण: कैलिफोर्निया ने किया एक्सॉन पर मुकदमा
अमेरिका के कैलिफ़ोर्निया स्टेट और कई पर्यावरण समूहों ने एक्सॉन मोबिल पर मुकदमा दायर किया है और कंपनी पर आरोप लगाया है की वह दशकों तक ऐसे अभियान में शामिल रही है जिससे वैश्विक प्लास्टिक अपशिष्ट प्रदूषण को बढ़ावा मिला है।
न्यूयॉर्क शहर में जलवायु सप्ताह के दौरान एक कार्यक्रम में बोलते हुए कैलिफोर्निया के अटॉर्नी जनरल रॉब बोंटा ने कहा कि राज्य ने लगभग दो साल की जांच के बाद एक्सॉन पर मुकदमा दायर किया। उन्होंने कहा कि जांच में सामने आया है कि एक्सॉन जानबूझकर रीसाइक्लिंग की सीमाओं के बारे में जनता को गुमराह कर रही थी।
बोंटा के अनुसार, एक्सॉन की “एडवांस्ड रीसाइक्लिंग” तकनीक में पायरोलिसिस नामक प्रक्रिया का उपयोग करके प्लास्टिक को ईंधन में बदला जाता है जिसे रीसाइकिल करना कठिन है। उन्होंने कहा कि इस तकनीक की प्रगति बहुत धीमी है जो दर्शाता है कि एक्सॉन लोगों को गुमराह कर रही है।
जवाब में एक्सॉन ने आरोपों को निराधार बताते हुए कहा है कि उसकी तकनीक वास्तव में कारगर है।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
कार्बनकॉपी हिंदी में आपका स्वागत है।
आपको यह भी पसंद आ सकता हैं
-
भारत दुनिया का सबसे बड़ा प्लास्टिक प्रदूषक: नेचर
-
औद्योगिक प्रदूषण: सरकार ने दिया ‘विश्वास-आधारित’ नियमों का प्रस्ताव, विशेषज्ञ चिंतित
-
वायु गुणवत्ता मानक कड़े करेगी सरकार, आईआईटी कानपुर को सौंपा काम
-
सड़क की धूल के प्रबंधन में खर्च की गई एनसीएपी की 64% फंडिंग: सीएसई
-
सड़क की धूल के प्रबंधन में खर्च की गई एनसीएपी की 64% फंडिंग: सीएसई