एक ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक साल 2050 तक पूरी दुनिया में जिन 200 प्रान्तों, राज्यों या क्षेत्रों को बदलते क्लाइमेट प्रभावों का सर्वाधिक खतरा होगा उनमें आधे से अधिक एशिया में हैं।
एक्सडीआई बैंचमार्क सीरीज़ की इस रिपोर्ट में चीन के बाद भारत के सबसे अधिक 9 राज्यों पर क्लाइमेट प्रभावों से तबाही होने का अंदेशा जताया गया है।
इन राज्यों में केरल, पंजाब, राजस्थान, यूपी, बिहार, तमिलनाडु, गुजरात, असम और महाराष्ट्र शामिल हैं।
एक्सडीआई की प्रवक्ता जॉर्जीना वुड्स ने कहा कि “देशों को अपने ऊपर मंडरा रहे खतरे को समझकर तेजी से ऐसी अनुकूलन योजनाएं बनाने की जरूरत है जो क्लाइमेट रेसिलिएंट कानूनों द्वारा समर्थित हों और निवेशकों को आकर्षित कर सकें”।
उन्होंने यह भी कहा कि शीर्ष 100 में शामिल सभी भारतीय राज्यों में नुकसान का सबसे बड़ा खतरा बाढ़ से है।
केंद्र ने कार्बन क्रेडिट के लिए उपलब्ध प्रौद्योगिकियों की सूची जारी की
भारत ने पेरिस समझौते के तहत अंतरराष्ट्रीय कार्बन क्रेडिट व्यापार के लिए मान्य गतिविधियों की एक सूची बनाई है।
कार्बन क्रेडिट, या कार्बन ऑफसेट, एक ऐसी व्यवस्था है जिसके तहत निवेश के माध्यम से, एक निश्चित मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड या अन्य ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करने की अनुमति खरीदी जा सकती है।
कार्बन कैप्चर और स्टोरेज जैसी गतिविधियों के अलावा, सूची में शमन गतिविधियां, जैसे संग्रहीत नवीकरणीय ऊर्जा, सौर तापीय ऊर्जा, अपतटीय पवन, हरित हाइड्रोजन और कंप्रेस्ड बायो-गैस; और वैकल्पिक सामग्री जैसे कि ग्रीन-अमोनिया आदि शामिल हैं।
यह उन क्षेत्रों की सूची है जहां भारत निवेश आकर्षित करना चाहता है। इन प्रौद्योगिकियों के माध्यम से कार्बन उत्सर्जन ऑफसेट करके निवेशक देश या कंपनी कार्बन क्रेडिट प्राप्त कर सकते हैं।
एचटी ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के हवाले से कहा कि “इस सूची की घोषणा करके, भारत ने इन उभरती प्रौद्योगिकियों में निवेश आकर्षित करने का अपना इरादा सार्वजनिक कर दिया है”।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत चाहता है कि देश/कंपनियां निवेश करके इन तकनीकों को भारत लाएं, जहां इनका स्वदेशीकरण किया जा सके। इसके बदले में संबंधित देश या कंपनी को कार्बन क्रेडिट प्रदान किए जाएंगे, जिसका उपयोग वह शमन के लिए कर सकते हैं।
यह सूची अभी तीन वर्षों के लिए लागू की गई है। इसके बाद सूची में बदलाव हो सकते हैं।
मध्यप्रदेश: आदि शंकराचार्य म्यूजियम के लिए पेड़ों की कटाई को एनजीटी ने बताया अवैध
मध्य प्रदेश के ओंकारेश्वर में नर्मदा नदी के फ्लडप्लेन में आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास, भोपाल के जरिए ‘स्टेच्यू ऑफ वननेस’ और आदि शंकराचार्य के म्यूजियम के निर्माण के लिए अवैध तरीके से पेड़ों को काटा जा रहा है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने पेड़ों के कटाव पर रोक लगा दी है।
जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि संयुक्त समिति की जांच रिपोर्ट से साफ होता है कि करीब 1,300 पेड़ काटने की अनुमति स्टेट एक्ट के तहत एसडीओ के जरिए दी गई थी।
पीठ ने पाया कि पेड़ों को काटने की अनुमति वन (संरक्षण कानून), 1980 की धारा 2 के मुताबिक पूरी तरह से अवैध है। पेड़ों को काटने के लिए केंद्र से उचित अनुमति की जरूरत है।
पीठ ने कहा कि यह भी जरूरी है कि नर्मदा के बाढ़ क्षेत्र को बचाने क लिए परियोजना का कार्य बेहद सावधानी से किया जाए। खासतौर से मक डिस्पोजल नियमों और मानकों के तहत होना चाहिए।
इसके अलावा सीवेज व सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट के नियमों का पालन भी परियोजना में किया जाना चाहिए। वहीं, पर्यटकों को यहां सिर्फ विद्युत वाहनों से ही आने की अनुमति दी जाए।
ग्रीनवाशिंग दावों पर यूके में देना होगा जुर्माना
यूनाइटेड किंगडम में अब उत्पादों को बेचने के लिए उनके एनवायरनमेंट-फ्रेंडली होने के दावों को बहुत गहन जांच का सामना करना पड़ेगा। यदि ऐसे दावे निराधार और भ्रामक पाए जाते हैं, तो प्रस्तावित नए कानूनों के तहत करोड़ों पाउंड तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
जल्द ही आनेवाले डिजिटल मार्केट, प्रतियोगिता और उपभोक्ता बिल के तहत, बड़ी कंपनियों पर उपभोक्ता कानून के उल्लंघन के लिए वैश्विक कारोबार के 10% तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। वहीं इन कानूनों का उल्लंघन करने वाले व्यक्तियों को 300,000 पाउंड तक के जुर्माने का सामना करना पड़ेगा।
वकीलों के अनुसार कम्प्टीशन एंड मार्केट्स अथॉरिटी (सीएमए) को मिलने वाली इन नई शक्तियों में निश्चित रूप से भ्रामक पर्यावरणीय दावों को शामिल किया जाएगा, जिन्हें ग्रीनवाशिंग के नाम से जाना जाता है।
सीएमए ने पिछले महीने घोषणा की थी कि वह घरेलू जरूरत की चीजों जैसे भोजन, पेय और प्रसाधन आदि के बारे में किए गए पर्यावरणीय दावों की भी जांच करेगी।
पिछले दो सालों में नियामकों ने भ्रामक दावों के लिए यूनिलीवर और हुंडई जैसे बड़े ब्रांड्स के विज्ञापन तक बैन कर दिए थे।
क्लाइमेट चुनौतियों से निपटने के लिए अमेरिका ने अजय बंगा को विश्व बैंक प्रमुख पद के लिए नामित किया
अमेरिकी सरकार ने भारतीय-अमेरिकी व्यवसायी अजय बंगा को विश्व बैंक प्रमुख के पद के लिए नामित किया है। इस नामांकन के लिए जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए फाइनेंस जुटाने में उनके अनुभव का हवाला दिया गया है।
राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा है कि मास्टरकार्ड के पूर्व एग्जीक्यूटिव बंगा के पास ‘जलवायु परिवर्तन सहित हमारे समय की सबसे जरूरी चुनौतियों से निपटने के लिए पब्लिक-प्राइवेट संसाधनों को जुटाने का महत्वपूर्ण अनुभव है’। बंगा फिलहाल जनरल अटलांटिक के जलवायु-केंद्रित फंड ‘बियॉन्डनेटजीरो’ के सलाहकार हैं। वह डॉव केमिकल्स जैसे बड़े निगमों के बोर्ड में बैठ चुके हैं और उन्होंने अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस के साथ मध्य अमेरिका के लिये नीतियों पर काम किया है।
हाल के वर्षों में विश्व बैंक वैश्विक जलवायु परिवर्तन से निपटने के प्रयासों का एक प्रमुख केंद्र बन गया है। भारत सरकार ने जी20 बैठक में भी विकासशील देशों को विकसित देशों की तुलना में सस्ता क्लाइमेट फाइनेंस मुहैया कराने पर जोर दिया है।
विश्व बैंक उन देशों को भी अधिक फंड देना चाहता है जिनपर जलवायु परिवर्तन का खतरा अधिक है। वर्तमान में किसी देश की जरूरतें सिर्फ उसकी माली हालत पर निर्धारित की जाती हैं।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
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