आने वाले तीन महीनों में भीषण गर्मी पड़ने के आसार हैं जो लोगों की सेहत को प्रभावित कर सकती है।

इस साल भी पड़ेगी भीषण गर्मी, लू के थपेड़े फसलों पर डालेंगे बुरा असर

पिछले दो सालों की रिकॉर्ड तोड़ गर्मी के बाद, मौसम विभाग ने बताया है कि अधिकतम औसत तापमान के हिसाब से इस बार की फरवरी बीते 122 सालों में सबसे अधिक गर्म रही है। विभाग ने इस साल मार्च से ही हीटवेव की चेतावनी जारी कर दी है। 

आने वाले तीन महीनों में भीषण गर्मी पड़ने से लोगों के स्वास्थ्य के साथ-साथ फसलों पर भी बुरा प्रभाव पड़ेगा और किसानों की परेशानियां बढ़ेंगी। मौसम विभाग की मानें तो इस साल की गर्मी पिछले दो सालों से भी अधिक रह सकती है। तापमान में इस असामान्य वृद्धि के बीच, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक परामर्श जारी किया है, जिसमें हीटवेव से बचाव के उपाय बताए गए हैं।

देश के अलग-अलग राज्यों में फरवरी का अधिकतम तापमान लगातार सामान्य से ऊपर रहा और पिछले दो सालों की तरह गर्मी की शुरुआत से ही हीटवेव जैसे हालात पैदा हो गए। गुजरात, राजस्थान, कोंकण, गोवा और तटीय कर्नाटक में 13 फरवरी के बाद से अधिकतम तापमान सामान्य से चार से नौ डिग्री अधिक बना रहा।

मौसम विभाग का अनुमान है कि दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में आने वाले दिनों में गर्मी तेजी से बढ़ेगी। इनमें से कुछ राज्यों में 18 फरवरी के बाद से अधिकतम तापमान सामान्य से पांच से नौ डिग्री सेल्सियस अधिक है। 

हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में भी अधिकतम तापमान सामान्य से पांच से ग्यारह डिग्री सेल्सियस तक ऊपर जा सकता है। उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और राजस्थान में फरवरी 100 फीसदी सूखी रही है जिस कारण तापमान तेजी से बढ़ रहा है। 

विभाग के अनुसार इस बढ़े हुए तापमान का बुरा असर गेहूं और दूसरी फसलों पर पड़ रहा है।  

किसानों पर मंडराता संकट: साल 2021 में अगस्त के सूखे ने कई किसानों की फसल बर्बाद की वहीं 2022 की शुरुआत में हुई भारी बारिश और शीतलहर ने खड़ी फसलों को बहुत नुकसान पहुंचाया। अप्रैल-मई 2022 में कटाई के समय भीषण गर्मी की वजह से बड़े पैमाने पर गेहूं की फसल का नुकसान हुआ। 2022 का मानसून भी 2021 की तरह रहा, कहीं भारी तो कहीं बेहद कम बारिश हुई और फिर फसलों का भारी नुकसान हुआ।

इसलिए एक बार फिर किसानों की उम्मीदें 2023 की रबी फसल पर टिक गई हैं। लेकिन इस साल भी उन्हें झटका लग रहा है

फरवरी के इस असामान्य उच्च तापमान से पिछले साल की तरह, बल्कि उससे भी ज्यादा, गेहूं की फसल को नुकसान पहुंचेगा। वहीं मौसम विभाग ने खरीफ की फसल को लेकर भी चेतावनी जारी कर दी है। अल नीनो जुलाई तक 2023 में प्रवेश करेगा, जिससे आमतौर पर भारत में कमजोर मानसून और अत्यधिक गर्मी होती है। इसलिए किसान खरीफ की फसल से भी उम्मीद नहीं लगा सकते हैं।

साफ़ है कि किसानों की परेशानी इस साल भी जारी रहेगी।

वहीं केंद्र सरकार ने गेहूं की फसल को हीटवेव से होने वाले खतरों से निपटने के लिए एक पैनल बनाने का फैसला किया है

तापमान वृद्धि 1.5 डिग्री तक सीमित करने के लिये चाहिये भारी बदलाव 

जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) के कार्यकारी सचिव साइमन स्टील ने कहा है कि धरती की तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री तक सीमित करने का लक्ष्य अभी भी असंभव नहीं है लेकिन  इसके लिये सभी देशों को अपनी ऊर्जा नीति और प्रयोग में भारी बदलाव करने होंगे। दिल्ली स्थित द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टिट्यूट (टैरी) द्वारा आयोजित वर्ल्ड सस्टेनेबल डेवलपमेंट समिटि में स्टील ने कहा कि यह लक्ष्य पाने की उम्मीद अभी जीवित है लेकिन विज्ञान बताता है कि हमें इस रास्ते पर बने रहने के लिये क्या करना होगा। स्टील ने कहा कि समय बहुत तेज़ी से निकला जा रहा है। 

स्टील ने कहा कि पेरिस सन्धि के तहत हालात के वैश्विक मूल्यांकन और जांच (ग्लोबल स्टॉकटेक)   की व्यवस्था है और इसका इस्तेमाल सुधार और तेज़ी से कदम उठाने के लिये होना चाहिये। हिन्दुस्तान टाइम्स कि रिपोर्ट के मुताबिक हालांकि बाद में स्टील ने यह भी कहा कि दुनिया 2.5 डिग्री की तापमान वृद्धि की ओर बढ़ रही है। 

“खोने के लिये समय नहीं बचा”, पूर्व यूएन महासचिव द्वारा क्लाइमेट फाइनेंस पर देरी की आलोचना 

संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव बान की मून ने क्लाइमेट फाइनेंस में ढुलमुल रवैये और देरी की आलोचना की है और कहा है कि क्लाइमेट प्रभावों को देखते हुये स्पष्ट है कि हमारे पास खोने के लिये ज़रा भी समय नहीं बचा है। कोरियाई डिप्लोमेट मून 2007 से लेकर 2016 तक संयुक्त राष्ट्र के महासचिव रहे जब जलवायु परिवर्तन के अहम बाली सम्मेलन, कोपेनहेगन समिट और एतिहासिक पेरिस सन्धि पर दस्तखत किये गये। बून का स्पष्ट कहना है कि जलवायु परिवर्तन के विनाश से धरती को बचाने के लिये लाखों करोड़ डॉलर का वित्तीय सहयोग चाहिये। उन्होंने अमीर देशों से अपील की है कई वर्षों की विफलता के बाद अब उन्हें विकासशील देशों से किये वादे को पूरा करना चाहिये। 

जोशीमठ का बढ़ता संकट, धंसाव बढ़ा, लोग चिन्तित  

उत्तराखंड के जोशीमठ में पिछले साल दिसबंर से आई भू-धंसाव और भवनों में दरारों की शिकायतें बढ़ती जा रही हैं। श्रीदेव सुमन यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञों की टीम द्वारा किये गये एक ग्राउंड सर्वे के मुताबिक यहां 2 फीट चौड़ी और आधा किलोमीटर लम्बी दरारें पाई गईं हैं। जोशीमठ में अनाज गोदाम में भी दरारें आने के बाद अब उसे शहर से हटाकर तपोवन या पीपलकोटी  में से किसी जगह ले जाने की योजना है। यह दोनों ही जगहें जोशीमठ से 15 किलोमीटर की दूरी पर हैं। इस भंडार से यहां आसपास के 50 गांवों को अनाज सप्लाई होता है। इस बीच सरकार ने एक मुआवज़ा नीति जारी की है जिससे जोशीमठ के लोग खुश नहीं है और अपने साथ धोखा बता रहे हैं। 

प्लास्टिक संधि पर उलझे देश, प्रयोग घटाएं या करें रीसाइक्लिंग

प्लास्टिक प्रदूषण को खत्म करने का तरीका क्या हो इस पर वार्ता से पहले दुनिया के देश बंटे हुए हैं। 

पिछले साल मार्च 2022 में संयुक्त राष्ट्र में यह तय हुआ था कि प्लास्टिक प्रदूषण को खत्म करने के लिए सभी देशों के बीच एक संधि की (प्लास्टिक ट्रीटी) जाए जो 2024 तक क्रियान्वित हो।

इसी संधि की तैयारियों के लिए मई में दुनिया के सभी देश बैठक कर रहे हैं, लेकिन अपने भेजे प्रस्तावों में जहां यूरोपीय और अफ्रीकी देशों ने प्लास्टिक के उत्पादन को कम करने की बात कही है, वहीं अमेरिका और सउदी अरब ने रीसाइकलिंग और कचरा निस्तारण का सुझाव दिया है।

यानि जहां एक ओर प्लास्टिक कम पैदा किए जाने की रणनीति है, वहीं दूसरी ओर सुझाव है कि ज़मीन और समुद्र को इसके प्रदूषण से बचाने के उपाय ढूंढे जाएं।

प्लास्टिक बनाने के लिए तेल और गैस का इस्तेमाल होता है, इसलिए विश्व के कुल कार्बन इमीशन में इसका 3% हिस्सा है। अगर प्लास्टिक एक देश होता तो चीन, अमेरिका और भारत के बाद वह दुनिया का चौथा सबसे बड़ा उत्सर्जक होता।
प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने के लिए भारत ने साल 2022 तक सिंगल यूज़ प्लास्टिक का इस्तेमाल बन्द करने का ऐलान किया था लेकिन यह लक्ष्य अभी हासिल नहीं हुआ है।

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