आईआईटी मद्रास ने मोबाइल प्रदूषण मॉनिटरिंग के लिए डेटा विज्ञान और आईओटी-आधारित पद्धति विकसित की है। Photo: IIT Madras

आईआईटी के शोधकर्ताओं ने मोबाइल प्रदूषण मॉनिटरिंग के लिए विकसित की कम लागत वाली विधि

आईआईटी मद्रास के शोधकर्ताओं ने मोबाइल प्रदूषण की निगरानी के लिए कम लागत वाली विधि विकसित की है। यह डेटा साइंस, इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी) तकनीक और सार्वजनिक वाहनों पर लगे कम लागत वाले प्रदूषण सेंसर का उपयोग उच्च स्थानिक और लौकिक रिज़ॉल्यूशन पर गतिशील रूप से वायु गुणवत्ता की निगरानी  करता है। 

कम लागत वाले वायु गुणवत्ता सेंसर वाहनों पर लगा कर शोधकर्ताओं ने स्थानिक वायु गुणवत्ता डेटा एकत्र करने में सक्षम नेटवर्क बनाया है। यह एक संदर्भ निगरानी स्टेशन की कीमत पर उच्च रिज़ॉल्यूशन पर पूरे शहर की मैपिंग करने में सक्षम है। इस प्रोजेक्ट का नाम “कटरू” है   जिसका अर्थ तमिल में “वायु” है।  इसका उद्देश्य अखिल भारतीय हाइपर-स्थानीय वायु गुणवत्ता मानचित्र प्राप्त करना, भारतीय नागरिकों के लिए जोखिम आकलन करना और नीति के लिए डेटा-संचालित समाधान उत्पन्न करना है।  

दक्षिण भारत में हैदराबाद सबसे ज़्यादा प्रदूषित शहर : ग्रीनपीस 

ग्रीनपीस इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, हैदराबाद दक्षिण भारत के अन्य शहरों में सबसे अधिक वायु प्रदूषित शहर है। इसमें पीएम 2.5 का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित सुरक्षित स्तर से 8.2 गुना अधिक खतरनाक स्तर पर है।  रिपोर्ट कहती है कि वार्षिक औसत पीएम 2.5 सांध्रता स्तर हैदराबाद में 40.91 ug/m3 है, जबकि बेंगलुरु में 29.01 ug/m3 और चेन्नई में 23.81 ug/m3  है। 

हैदराबाद में वार्षिक औसत PM 2.5 स्तर वास्तव में कोच्चि के 24.11 ug/m3 से 41% अधिक और बेंगलुरु के 29.01 ug/m3 से 29% अधिक है। जब औसत PM10 प्रदूषक स्तर की बात आती है, तो हैदराबाद में 57.84 ug/m3 दर्ज किया गया। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह सुरक्षित स्तर जो की 15 ug/m3 है, उस से 3.9 गुना है। 

पीएम2.5 जैसे छोटे वायु प्रदूषण कणों पर हो सकते हैं वायरस सवार 

चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज (सीएएस) के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में किए गए एक अध्ययन के अनुसार, वायु प्रदूषण वायरस को फेफड़ों और अन्य अंगों में गहराई तक ले जाकर वायरल संक्रमण की गंभीरता को बढ़ा सकता है। शोधकर्ताओं ने देखा कि कण-जनित वायरस चूहों की श्वसन प्रणाली में गहराई तक जा सकते हैं और यकृत, प्लीहा और गुर्दे जैसे अधिक दूर के अंगों तक पहुंच सकते हैं।

जबकि टीम ने जानवरों के प्रयोगों में घटना का अवलोकन किया, यह मनुष्यों पर भी लागू हो सकता है क्योंकि जिस रास्ते से जानवर रोगजनक सूक्ष्मजीवों से संक्रमित होते हैं, वे मनुष्यों के समान होते हैं। परिणाम बताते हैं कि वायु प्रदूषण कण जनित विषाणु रक्त-वायु अवरोध को तोड़ने में सक्षम हैं और रक्त परिसंचरण के माध्यम से अन्य अंगों में फैल जाते हैं।

कोविड-19 के रोगियों पर वायु प्रदूषण का बुरा असर 

दो नई रिसर्च के अनुसार वायु प्रदूषण के संपर्क में आने वाले लोगों ने कोविड-19 का अनुभव किया जैसे कि अपनी उम्र से वे 10 साल बड़े थे। यह दो शोध बेल्जियम और डेनमार्क में हुए। द गार्डियन में छपी एक रिपोर्ट ने बताया की बीमार होने से पहले जो लोग गंदी हवा के संपर्क में आये थे उन्हें अस्पताल में चार दिन ज़्यादा बिताने पड़े और वायु प्रदुषण के कारण बिमारी का उन पर इस तरह असर पड़ा जिस प्रकार उनसे 10 वर्षों वरिष्ठ इंसान पर पड़ता। 

बेल्जियम के अध्ययन से यह भी पता चला है कि रोगियों के रक्त में वायु प्रदूषण के स्तर के अनुसार उनके गहन देखभाल उपचार की आवश्यकता में 36% की हुई। डेनमार्क में अध्ययन से पता चला है कि वायु प्रदूषण के एक्सपोज़र के कारण कोविद -19 से मृत्यु के जोखिम में 23% की वृद्धि हुई। दोनों अध्ययनों में, वायु प्रदूषण का स्तर कानूनी यूरोपीय संघ के मानकों से नीचे था।

+ posts

दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
कार्बनकॉपी हिंदी में आपका स्वागत है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.