दिल्ली सरकार ने पड़ोसी राज्यों से भी अपील की है कि वह पटाखों की बिक्री पर रोक लगाएं। Photo: Kalli Navya/Wikimedia Commons

दिल्ली में इस साल भी बैन रहेंगे पटाखे, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कहीं और जाकर जलाएं

दिल्ली सरकार ने सर्दियों में प्रदूषण पर अंकुश लगाने की योजना के तहत इस साल भी पटाखों के निर्माण, बिक्री, भंडारण और उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है। राजधानी में इस साल भी दीवाली पर पटाखों की बिक्री और जलाने पर प्रतिबंध जारी रहेगा।

इस प्रतिबंध के विरोध में भाजपा नेता मनोज तिवारी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दायर की जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने ख़ारिज करते हुए कहा की वह इस मामले में दखल नहीं देगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दिल्ली के लोग दीवाली मनाने के दूसरे तरीके ढूंढ लें। अगर किसी को पटाखे जलाने का बहुत मन हो, तो उस राज्य में जाकर ऐसा करें, जहां रोक नहीं है।

कोर्ट ने दिल्ली पुलिस से यह भी पूछा है कि साल दर साल दिल्ली सरकार पटाखों पर जो पाबंदी लगाती है, पुलिस उसका पूरी तरह पालन क्यों नहीं करवाती है?

सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में दीवाली पर पटाखों की बिक्री और इस्तेमाल पर रोक लगा दी थी। उसके बाद से दिल्ली सरकार भी हर साल अपनी तरफ से रोक लगाती आ रही है। दिल्ली सरकार ने पड़ोसी राज्यों से भी अपील की है कि वह पटाखों की बिक्री पर रोक लगाएं।

क्लाउड सीडिंग के ज़रिए कृत्रिम बारिश पर विचार कर रही दिल्ली सरकार

सर्दियों के दौरान वायु प्रदूषण को कम करने के लिए दिल्ली सरकार क्लाउड सीडिंग तकनीक के ज़रिए कृत्रिम बारिश कराने पर भी विचार कर रही है। दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने कहा कि सरकार शहर के प्रत्येक वायु प्रदूषण हॉटस्पॉट के लिए एक अलग एक्शन प्लान तैयार कर रही है।

सरकार की यह घोषणा ‘विंटर एक्शन प्लान’ पर चर्चा के लिए 24 पर्यावरण विशेषज्ञों के साथ बैठक के बाद आई, जहां आईआईटी-कानपुर के वैज्ञानिकों ने दिल्ली में कृत्रिम बारिश कराने पर एक प्रस्तुति दी।

स्वच्छ वायु के मामले में इंदौर देश में नंबर वन: सीपीसीबी

केंद्र सरकार के स्वच्छ वायु सर्वेक्षण में इंदौर को पहला स्थान मिला है, जबकि दूसरा और तीसरा स्थान क्रमशः आगरा और ठाणे को  मिला है।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा संचालित स्वच्छ वायु सर्वेक्षण में उनकी ओर से उठाए गए कदमों के आधार पर शहरों की रैंकिंग की जाती है। यह रैंकिंग तीन श्रेणियों में की जाती है: 10 लाख से अधिक आबादी वाले शहर (47), 3-10 लाख आबादी वाले (44) और 10 लाख से कम आबादी वाले (40) शहर। प्रत्येक शहर के शहरी स्थानीय निकाय रिपोर्ट दाखिल करते हैं जिनकी एक विशेषज्ञ पैनल द्वारा जांच की जाती है और अंततः केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड रैंक प्रदान करता है।

दस लाख से अधिक जनसंख्या श्रेणी में इंदौर, आगरा और ठाणे को शामिल किया गया है। वहीं, तीन से 10 लाख तक की आबादी वाले शहर में महाराष्ट्र के अमरावती ने शीर्ष स्थान हासिल किया है। इसके बाद उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद और आंध्र प्रदेश के गुंटूर का स्थान है। तीन लाख से कम आबादी वाले शहर में हिमाचल प्रदेश का परवाणू पहले स्थान पर है। हिमाचल का काला अंब और ओडिशा का अंगुल दूसरे और तीसरे स्थान पर रहा है।

राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम का लक्ष्य 2024 तक पीएम 2.5 और पीएम 10 के स्तर में 20 से 30 प्रतिशत की कमी लाना है।

वायु प्रदूषण के कारण कमज़ोर और ठिगने बच्चे पैदा होते हैं 

एक अध्ययन के अनुसार, अपेक्षाकृत कम स्तर पर भी वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से महिलाएं कमज़ोर व ठिगने बच्चों को जन्म देती हैं। मिलान में यूरोपियन रेस्पिरेटरी सोसाइटी इंटरनेशनल कांग्रेस में प्रस्तुत एक शोध से यह भी पता चलता है कि अधिक हरे-भरे इलाकों में रहने वाली महिलाएं बड़े कद के बच्चों को जन्म देती हैं और इससे प्रदूषण के प्रभावों को कम करने में मदद मिल सकती है।

शोधकर्ताओं ने कहा कि जन्म के समय वजन का फेफड़ों के स्वास्थ्य के साथ मजबूत संबंध है। कम वजन वाले बच्चों में अस्थमा का खतरा अधिक होता है और उम्र बढ़ने के साथ क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) की दर भी अधिक होती है। उन्होंने कहा कि शिशुओं और उनके विकासशील फेफड़ों को संभावित नुकसान से बचाने के लिए वायु प्रदूषण को कम करने और कस्बों और शहरों को हरा-भरा बनाने की जरूरत है।

वायु प्रदूषण से फूलों की गंध नहीं पहचान पा रही मधुमक्खियां

एक नए शोध के मुताबिक, ओजोन प्रदूषण फूलों से निकलने वाली गंध को काफी हद तक बदल देता है, जिससे मधुमक्खियों की कुछ मीटर की दूरी से गंध पहचानने की क्षमता 90 फीसदी तक कम हो गई है। यह खुलासा यूके सेंटर फॉर इकोलॉजी एंड हाइड्रोलॉजी (यूकेसीईएच) और बर्मिंघम, रीडिंग, सरे और दक्षिणी क्वींसलैंड विश्वविद्यालयों की शोध टीम ने किया है।

जमीनी स्तर पर ओजोन आम तौर पर तब बनती है जब वाहनों और औद्योगिक प्रक्रियाओं से नाइट्रोजन ऑक्साइड उत्सर्जन सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में वनस्पति से उत्सर्जित वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों के साथ प्रतिक्रिया करती है। फूलों की गंध पर जमीनी स्तर के ओजोन के कारण बदलाव हो रहा है, जिसके कारण परागणकों को प्राकृतिक वातावरण में अपनी अहम भूमिका निभाने के लिए संघर्ष करना पड़ता है, इसका खाद्य सुरक्षा पर भारी असर पड़ने के आसार हैं।

निष्कर्षों से पता चलता है कि ओजोन का जंगली फूलों की बहुतायत और फसल की पैदावार पर बुरा प्रभाव पड़ने की आशंका है। अंतर्राष्ट्रीय शोध पहले ही स्थापित कर चुका है कि ओजोन का खाद्य उत्पादन पर बुरा प्रभाव पड़ता है क्योंकि यह पौधों की वृद्धि को नुकसान पहुंचाता है।

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