इस साल के अंत में यूएई में होने वाले जलवायु परिवर्तन महासम्मेलन (कॉप-28) से पहले दिल्ली में हुए जी-20 सम्मेलन में जहां दुनिया के बड़े विकसित और विकासशील देशों ने अक्षय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना बढ़ाने का लक्ष्य रखा है, वहीं प्रदूषणकारी जीवाश्म ईंधन, जैसे तेल और गैस आदि को चरणबद्ध तरीके से समाप्त (फेजआउट) करने पर कोई प्रतिबद्धता नहीं जताई गई है। हालांकि इसमें कोयला फेजडाउन के प्रयास तेज करने का ज़िक्र अवश्य है, लेकिन उसकी भाषा पिछले साल इंडोनेशिया के बाली में हुए समझौते जैसी ही है।
जी-20 देशों ने विभिन्न राष्ट्रीय परिस्थितियों के अनुरूप, सदी के मध्य तक या उसके आसपास नेट जीरो उत्सर्जन प्राप्त करने की प्रतिबद्धता दोहराई। लेकिन यह नेट ज़ीरो लक्ष्य हासिल करना जीवाश्म ईंधन के प्रयोग में भारी कटौती के बिना संभव नहीं है।
जानकारों का मानना है कि सभी प्रकार के जीवाश्म-ईंधन फेजआउट पर कोई निर्णय लिए बिना यह घोषणा भारत के लिए निराशाजनक है क्योंकि भारत की 70% बिजली का उत्पादन कोयला बिजलीघरों से होता है। सम्मेलन में कोयले के अंधाधुंध प्रयोग को फेज़डाउन करने की बात कही गई है लेकिन जीवाश्म ईंधन शब्द के प्रयोग से बचा गया है जिसमें ऑइल और गैस भी शामिल होते हैं। माना जा रहा है कि सऊदी अरब के प्रभाव के चलते जीवश्म ईंधन फेजआउट/फेज डाउन को घोषणापत्र में शामिल नहीं किया गया।
हालांकि, पिट्सबर्ग में 2009 में किए गए वादे को दोहराया गया है जिसके अंतर्गत फिजूलखर्ची को बढ़ावा देने वाली अप्रभावी जीवाश्म ईंधन सब्सिडियों को खत्म किया जाएगा।
कोल फेजआउट बना भारत और अमीर देशों के बीच समझौते का रोड़ा
लगभग एक साल जी-7 समूह के विकसित और अमीर देशों ने घोषणा की थी कि वह उभरती हुई अर्थव्ययस्थाओं को जीवाश्म ईंधन का प्रयोग बंद करने में सहायता करने के लिए कुछ समझौते करने जा रहे हैं। इन समझौतों पर इंडोनेशिया, वियतनाम और भारत से बातचीत चल रही थी।
तब से, इंडोनेशिया और वियतनाम ने तो ‘जस्ट एनर्जी ट्रांजिशन पार्टनरशिप’ (जेईटीपी) पर हस्ताक्षर किए हैं, लेकिन भारत ने नहीं। मामले की जानकारी रखने वाले विशेषज्ञों का कहना है कि निकट भविष्य में भारत से ऐसी किसी डील की उम्मीद नहीं है।
उनका कहना है कि जेईटीपी में कोयले को फेजआउट करने पर जोर दिया गया है, जबकि भारत के ऊर्जा उत्पादन में कोयले की भूमिका सबसे अधिक है। इस सौदे में जस्ट ट्रांजिशन के लिए मिलने वाला फाइनेंस भी अपेक्षाकृत कम है। जानकारों के अनुसार भारत का यह भी मानना है कि जेईटीपी विकसित देशों द्वारा 100 बिलियन डॉलर के वादे से ध्यान भटकाने का एक तरीका है।
उनके अनुसार इस सौदे के केंद्र में यदि कोल फेजआउट न होकर नवीकरणीय ऊर्जा का विस्तार हो या कोयले के प्रभावों को ऑफसेट करने के तरीकों पर बात हो तो भारत इसके बारे में सोच सकता है।
जीवाश्म ईंधन की मांग चरम पर पहुंचने की भविष्यवाणी के लिए आईए पर बरसा ओपेक
जीवाश्म ईंधन की मांग इस दशक के अंत से पहले चरम पर पहुंचने की भविष्वाणी के लिए तेल उत्पादक समूह ओपेक ने आईईए की तीखी आलोचना की है। ओपेक ने इस तरह के पूर्वानुमान को “बेहद जोखिम भरा, अव्यावहारिक और विचारधारा से प्रेरित” बताया।
आईए. यानि अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी ने कहा था कि दुनिया में अब जीवाश्म ईंधन युग के “अंत की शुरुआत” हो रही है।
फाइनेंशियल टाइम्स में प्रकाशित एक लेख में, आईईए के कार्यकारी निदेशक फतिह बिरोल ने कहा कि कोयला, तेल और गैस की मांग 2030 से पहले चरम पर होगी, और जलवायु नीतियों के प्रभावी होने के बाद जीवाश्म ईंधन की खपत में गिरावट होगी।
जवाब में ओपेक के महासचिव हैथम अल-घैस ने कहा कि यदि ऐसा हुआ तो “ऊर्जा की मांग को लेकर अभूतपूर्व पैमाने पर उथल-पुथल हो सकती है, जिसके दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं और अरबों लोगों के लिए गंभीर परिणाम होंगे”।
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