इस साल के अंत में जलवायु परिवर्तन महासम्मेलन (COP-29) अज़रबेज़ान में होना है और मेज़बान देश ने जीवाश्म ईंधन में निवेश के अपने इरादे ज़ाहिर कर दिये हैं। राष्ट्रपति इल्हम अलीयेव ने कहा है कि तेल और गैस के प्रचुर संसाधन “ईश्वर का दिया उपहार” हैं और वो यूरोप की मांग को पूरा करने के लिये गैस उत्पादन में निवेश जारी रखेंगे। अलीयेव ने बात बर्लिन में हुए पीटर्सबर्ग क्लाइमेट सम्मेलन में कही। अलीयेव ने प्राकृतिक गैस का उत्पादन बढ़ाने के लिये यूरोप के साथ हुए करार को रेखांकित किया। यह करार रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण रूस से यूरोप को तेल-गैस की सप्लाई में कमी की भरपाई के लिये किया गया है।
इससे पहले पिछले साल हुए जलवायु परिवर्तन सम्मेलन की मेज़बानी संयुक्त अरब अमीरात ने की थी और वहां की सबसे बड़ी तेल और गैस कंपनी के सीईओ अल जबेर सम्मेलन के अध्यक्ष थे। तब भी तेल कंपनियों के जमावड़े के कारण बड़ा विवाद हुआ था। पिछले कुछ समय से जलवायु परिवर्तन सम्मेलनों में तेल कंपनियों का दबदबा बढ़ता जा रहा है। हालांकि जीवाश्न ईंधन का व्यापार करने वाले यह देश ग्रीन एनर्ज़ी में अपने निवेश को बढ़ाचढ़ा कर दिखाते हैं। जैसे अज़रबेज़ान के राष्ट्रपति ने भी कहा है उनका देश 2027 तक 2 गीगावॉट ग्रीन एनर्जी के संयंत्र लगायेगा।
जीवाश्म ईंधन सेक्टर पर बाइडेन ने लगाये कड़े नियम
अमेरिका ने गुरुवार को बड़े स्तर पर नए नियमों की घोषणा की, जिसके तहत कोयले से चलने वाले संयंत्रों को अपने लगभग सभी कार्बन उत्सर्जन को खत्म करना होगा या पूरी तरह से बंद करने के लिए प्रतिबद्ध होना होगा, जो कि जलवायु संकट का सामना करने के लिए राष्ट्रपति जो बाइडेन के एजेंडे का मुख्य आधार है। हालांकि कुछ पर्यावरण संगठनों और कार्यकर्ताओं ने इस कदम को “गेमचेंजर” बताते हुए इसका स्वागत किया है। लेकिन ये नियम 2032 से प्रभावी होंगे और इसके प्रावधानों को लेकर सवाल बने हुये हैं।
इनमें यह अनिवार्य होगा कि नए, उच्च क्षमता वाले गैस से चलने वाले संयंत्र अपने कार्बन डाइऑक्साइड उत्पादन को उसी मात्रा में – 90 प्रतिशत – कम कर देंगे। यह एक ऐसा लक्ष्य है जिसके लिए कार्बन कैप्चर तकनीक की आवश्यकता होगी। यह तकनीक अभी विवादों में है और इसकी विश्वसनीयता को लेकर संदेह है। जानकार मानते हैं कि अगले राष्ट्रपति चुनावों में डोनाल्ड ट्रम्प से कड़ी चुनौती का सामना कर रहे जो बाइडेन ने युवा और प्रगतिशील मतदाताओं को अपने पक्ष में लाने के लिये यह दांव खेला है।
प्लास्टिक प्रदूषण के खिलाफ संधि को कमज़ोर करने के लिये जुटे दुनिया भर के जीवाश्म ईंधन लॉबीकर्ता
सेंटर फॉर इंटरनेशनल इन्वारेंमेंटल लॉ (CIEL) का विश्लेषण बताता है कि जीवाश्म ईंधन और रसायन उद्योग से जुड़े 196 लॉबीकर्ताओं ने ओटावा (कनाडा) में प्लास्टिक प्रदूषण निरोधक वैश्विक संधि से जुड़े विमर्श के लिये पंजीकरण कराया है। पिछले साल नवंबर में जब संधि के लिये वार्ता हुई थी तो जीवाश्म ईंधन कंपनियों के 143 लॉबीकर्ता मौजूद थे। इस बार का यह आंकड़ा इनकी संख्या में 37% की वृद्धि दिखाता है। यह संख्या यूरोपीय यूनियन के प्रतिनिधिमंडल में शामिल नुमाइंदों की संख्या से अधिक है।
पहाड़ों से लेकर समुद्र तक फैला प्लास्टिक आज मानवता के लिये सबसे बड़े ख़तरों में से एक है। साल 2022 में सभी देश राजी हुये थे कि 2024 के अंत तक इसे लेकर एक संधि हो जायेगी। लेकिन प्लास्टिक निर्माण के लिये जीवाश्म ईंधन का प्रयोग होता है और प्लास्टिक का उत्पादन कम करने वाली कोई भी संधि इन कंपनियों के हितों के खिलाफ है। ओटावा में वार्ता के बाद वार्ता का आखिरी दौर इस साल दक्षिण कोरिया में होना है। जीवाश्म ईंधन कंपनियां इस तर्क को आगे बढ़ा रहे हैं प्लास्टिक की समस्या प्लास्टिक उत्पादन से नहीं बल्कि कचरे का सही प्रबंधन न होने के कारण है।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
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