नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (एनसीएपी) को लॉन्च हुए पांच साल बीत चुके हैं, और इसके प्रदर्शन को लेकर कई तरह के विश्लेषण सामने आ रहे हैं।
कार्यक्रम के लॉन्च के वक्त यह लक्ष्य रखा गया था कि 2024 तक भारत के करीब सवा सौ शहरों में प्रदूषण का स्तर (2017 के स्तर के मुकाबले) 20-30 प्रतिशत कम किया जाएगा। बाद में इस टाइमलाइन और लक्ष्य को बदलकर 131 शहरों में 2017 के प्रदूषण के स्तर से 20-40 प्रतिशत कर दिया गया और लक्ष्य प्राप्ति की सीमा 2026 के अंत तक कर दी गई है।
अब ताज़ा विश्लेषणों में देश के ज्यादातर शहरों में कोई उत्साहजनक सुधार नहीं दिखा है।
पहला विश्लेषण क्लाइमेट ट्रेंड्स और रेस्पायरर लिविंस साइंसेज़ ने किया है। इस अध्ययन में इन 131 शहरों में मौजूद केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग स्टेशनों के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है।
पीएम 2.5 को लेकर जिन 49 शहरों के डाटा पूरे 5 साल उपलब्ध रहे उनमें से 27 में प्रदूषण के स्तर में कुछ सुधार दिखता है। इसी तरह पीएम 10 को लेकर 46 शहरों के डाटा उपलब्ध थे वहां 24 में सुधार दिखा है। वाराणसी, आगरा और जोधपुर उन शहरों में हैं जहां 2019 के मुकाबले 2023 में प्रदूषण स्तर में अच्छी गिरावट दर्ज की गई है। वाराणसी में पीएम 2.5 के स्तर में 72 प्रतिशत और पीएम 10 में 69 प्रतिशत की गिरावट हुई है।
दिल्ली और पटना देश के सबसे प्रदूषित शहरों में रहे। हालांकि दिल्ली में प्रदूषण के औसत स्तर में 2019 के मुकाबले कुछ गिरावट दर्ज की गई लेकिन मुंबई, नवी मुंबई, उज्जैन, जयपुर और पुणे में प्रदूषण स्तर बढ़े।
दूसरा विश्लेषण सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (क्रिया) ने किया है, जिसके अनुसार पिछले साल 37 शहरों में प्रदूषण का स्तर एनसीएपी के तहत निर्धारित लक्ष्य से नीचे दर्ज किया गया।
रिपोर्ट में परिवेशी पीएम10 स्तरों के आधार पर असम और मेघालय सीमा पर स्थित बर्नीहाट को भारत का सबसे प्रदूषित शहर बताया गया है। इसके बाद बेगूसराय (बिहार), ग्रेटर नोएडा (उत्तर प्रदेश), श्रीगंगानगर (राजस्थान), छपरा (बिहार), पटना (बिहार), हनुमानगढ़ (राजस्थान), दिल्ली, भिवाड़ी (राजस्थान), और फ़रीदाबाद (हरियाणा) शीर्ष 10 की सूची में हैं।
इन विश्लेषणों के आधार पर कहा जा सकता है कि कुछ प्रगति जरूर हुई है, लेकिन अधिकांश शहरों में वायु प्रदूषण का स्तर राष्ट्रीय मानकों और अंतर्राष्ट्रीय दिशानिर्देशों से अधिक है। सबसे कम प्रदूषित शहरों में भी प्रदूषण का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की सुरक्षित सीमा से ऊपर है, जो दिखाता है कि अधिक कड़े नियामक ढांचे की जरूरत है।
दिल्ली-एनसीआर में फिर से लगाए गए ग्रैप-3 प्रतिबंध
वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) ने रविवार को दिल्ली और एनसीआर में ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (जीआरएपी) के तीसरे चरण के तहत प्रतिबंधों को फिर से लागू कर दिया, क्योंकि राष्ट्रीय राजधानी और एनसीआर में वायु गुणवत्ता फिर से गंभीर श्रेणी में पहुंच गई है।
इन प्रतिबंधों के तहत सभी गैर-जरूरी निर्माण कार्यों और बीएस-III पेट्रोल और बीएस-IV डीजल वाहनों के परिचालन पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।
सीएक्यूएम को आशंका है कि वायु गुणवत्ता की स्थिति लंबे समय तक ‘गंभीर’ बनी रह सकती है, और आगे की गिरावट को रोकने के लिए तुरंत जीआरएपी चरण-III को लागू करने का निर्णय लिया गया है।
हालांकि राष्ट्रीय सुरक्षा या रक्षा से संबंधित निर्माण कार्य, राष्ट्रीय महत्व की परियोजनाएं, स्वास्थ्य सेवा, रेलवे, मेट्रो रेल, हवाई अड्डे, अंतर-राज्य बस टर्मिनल, राजमार्ग, सड़कें, फ्लाईओवर, ओवरब्रिज, बिजली ट्रांसमिशन, पाइपलाइन, स्वच्छता और जल आपूर्ति आदि से जुड़े निर्माण पर प्रतिबंध नहीं है।
देश में वायु गुणवत्ता मॉनिटरिंग स्टेशनों की संख्या बढ़ाने पर जोर
सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (क्रिया) द्वारा किए गए नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (एनसीएपी) के विश्लेषण में कहा गया है कि देश में मैनुअल वायु गुणवत्ता मॉनिटरिंग नेटवर्क की प्रगति धीमी है, और 2024 तक नियोजित 1,500 स्टेशनों के मुकाबले दिसंबर 2023 तक केवल 931 स्टेशन स्थापित किए गए हैं।
रिपोर्ट में यह भी पाया गया है कि कार्यक्रम में किसी दंडात्मक प्रकिया का प्रावधान न होने के कारण महत्वपूर्ण कार्रवाई नहीं हो पा रही। 118 नए शहर, जो अभी तक एनसीएपी का हिस्सा नहीं हैं, वहां पीएम10 का स्तर राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक (एनएएक्यूएस) से अधिक दर्ज किया गया।
क्रिया के दक्षिण एशिया विश्लेषक सुनील दहिया ने कहा कि “खतरनाक प्रदूषण स्तर दर्ज करने वाले शहरों की सूची में गैर-एनसीएपी शहरों बड़ी संख्या में उपस्थिति दर्शाती है कि वायु गुणवत्ता संबंधी समस्याएं कितनी व्यापक हैं। हालिया डेटा के आधार पर एनसीएपी की सूची की समीक्षा करके नए शहरों को उसमें शामिल किया जाना चाहिए और ऐसे सभी शहरों को उत्सर्जन में कटौती के वार्षिक लक्ष्य प्रदान किए जाने चाहिए।”
क्लाइमेट ट्रेंड्स द्वारा किए गए विश्लेषण में भी कहा गया है कि सरकार ने एनसीएपी शहरों में कई नए वायु गुणवत्ता मॉनिटरिंग स्टेशन स्थापित किए हैं, लेकिन किसी शहर के भीड़-भाड़ वाले स्थानों में दो मॉनिटरों का औसत डेटा शहर भर में फैले पांच स्टेशनों के औसत डेटा की तुलना में वायु गुणवत्ता की एक अलग तस्वीर प्रदान कर सकता है।
उदाहरण के तौर पर उज्जैन, जहां प्रदूषण का स्तर 46% से अधिक बढ़ा है, वहां पर केवल एक मॉनिटरिंग स्टेशन है जो पूरे समय काम करता रहता है।
इससे पहले सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि देश की 47% जनता वायु गुणवत्ता मॉनिटरिंग नेटवर्क के बाहर है।
एक लीटर की बोतल में नेनो-प्लास्टिक के करीब ढाई लाख महीन कण
जानकार चेतावनी देते रहे हैं कि बोतलबंद पानी के प्रयोग से माइक्रोप्लास्टिक मानव शरीर में जा रहा है जो कई बीमारियों का कारण बनता है। अब एक नई रिसर्च बताती है कि पानी से भरी एक लीटर की बोतल में नेनो-प्लास्टिक के 2,40,000 कण हो सकते हैं। प्रतिष्ठित रिसर्च जर्नल नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज (PNAS) में सोमवार को प्रकाशित रिसर्च बताती है अब तक शरीर में पहुंच रहे ऐसे नेनो-प्लास्टिक (जो कि एक माइक्रोमीटर लंबाई के बराबर या हमारे बाल के सत्तरवें हिस्से के बराबर व्यास के होते हैं) कणों के बारे में लोग अनजान ही रहे हैं।
नेनो-प्लास्टिक माइक्रोप्लास्टिक के मुकाबले अधिक नुकसानदेह होते हैं। नेनो-प्लास्टिक का पता चलने के बाद अब रिसर्च बता रही है कि बोतलबंद पानी में अब तक ज्ञात स्तर से 100 गुना अधिक प्लास्टिक होता है क्योंकि पहले केवल 1 से 5000 माइक्रोमीटर के कणों के बारे में ही पता लगाया गया था। दुनिया में हर साल करीब 450 मिलियन टन प्लास्टिक का उत्पादन होता है और यह खुद नष्ट नहीं होता बल्कि छोटे रूपों में टूटकर पर्यावरण में सैकड़ों साल तक बना रहता है।
इंदौर में अनुपचारित पानी छोड़ने के कारण फैक्ट्रियों पर कार्रवाई
तालाबों, नालों और नदियों में अनुपचारित (अनट्रीटेड) प्रदूषित जल छोड़ने के कारण इंदौर स्थानीय प्रशासन ने 11 फैक्ट्रियों की बिजली काट दी है और उन्हें सील कर दिया गया। स्थानीय प्रशासन, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और ज़िला औद्योगिक केंद्र के अधिकारियों की टीम ने संयुक्त कार्रवाई में यह कदम उठाया। प्रशासन ने इन फैक्ट्री मालिकों पर दंड लगाते हुये उन्हें कारखानों से निकलने वाले पानी के ट्रीटमेंट की उचित व्यवस्था करने को कहा है।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
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