बुधवार को केंद्रीय कैबिनेट ने कोल-गैसीकरण के लिए 8,500 करोड़ रुपए की प्रोत्साहन योजना को मंज़ूरी दे दी। इस टेक्नोलॉजी को सफल प्रयोग से प्राकृतिक गैस, अमोनिया और मेथनॉल के आयात पर भारत की निर्भरता घटेगी। सरकार का लक्ष्य है कि 2030 तक 100 मिलियन टन कोयले का गैसीकरण किया जाए।
कोयला-गैसीकरण की प्रक्रिया में कोयले पर नियंत्रित मात्रा में भाप, कार्बन डाइ ऑक्साइड, हवा और ऑक्सीजन की प्रतिक्रिया द्वारा लिक्विड फ्यूल बनाया जाता है जिसे सिन्गैस या सिंथिसिस गैस कहा जाता है। इसका प्रयोग ईंधन के रूप में किया जाता है और इससे मेथनॉल का उत्पादन भी होता है। कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) और गैस अथॉरिटी (गेल) के साझा उपक्रम द्वारा यह प्रोजेक्ट शुरू होगा। कोयले से अमोनियम नाइट्रेट के उत्पादन के लिये कोल इंडिया बीएचईएल के साथ मिलकर प्लांट लगाएगा।
कोल इंडिया के दो नए बिजलीघर मध्यप्रदेश और ओडिशा में
बिजली उत्पादन में कोल इंडिया के प्रस्ताव को कैबिनेट ने हरी झंडी दे दी। कोल इंडिया 22,000 करोड़ रूपये के निवेश द्वारा अपनी सहयोगी कंपनियों के साथ यह पावर प्लांट लगाएगी जो खदानों से सटे (कोलमाइन पिटहेड पर) होंगे। इनमें 660 मेगावॉट का एक प्लांट मध्यप्रदेश के अमरकंटक में होगा जो साउथ ईस्टर्न कोल फील्ड लिमिटेड (एसईसीएल) और मध्य प्रदेश पावर जेनरेशन कंपनी लिमिटेड के बीच संयुक्त उपक्रम (जेवी) होगा। कैबिनेट ने इसके लिये 823 करोड़ रुपये के बाज़ार निवेश की मंज़ूरी दी है। इसके अलावा महानदी कोलफील्ड लिमिटेड (एमसीएल) भी 1600 मेगावॉट का प्लांट ओडिशा के सिन्धुदुर्ग में लगाया जायेगा। जिसके लिये कैबिनेट ने 4,784 करोड़ के बाज़ार निवेश को मंज़ूरी दी है।
विशेषज्ञों के मुताबिक बिजली की बढ़ती खपत को देखते हुए सरकार ने कोल इंडिया के इन बिजलीघरों को अनुमति दी है। आईसीआरए में उपाध्यक्ष विक्रम वी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, “सरकार का मानना है कि भारत को 2030 तक करीब 80 गीगावॉट अतिरिक्त तापबिजली की ज़रूरत होगी और अभी निर्माणाधीन थर्मल प्लांट 30 गीगावॉट की ज़रूरतों को पूरा करेंगे और बाकी 7 गीगावॉट प्राइवेट सेक्टर के प्लांट से आने की संभावना है। इसलिए इस अतिरिक्त क्षमता के लिए परियोजनाओं को अभी बनाने और शुरुआत करने की ज़रूरत है।”
यूरोपियन यूनियन का जीवाश्म ईंधन CO2 उत्सर्जन 60 साल के सबसे कम स्तर पर
यूरोपियन यूनियन के जीवाश्म ईंधन से CO2 उत्सर्जन में पिछले साल (2023 में) 2022 के मुकाबले 8% की गिरावट हुई। पिछले 60 साल में यूरोपीयन यूनियन के यह उत्सर्जन सबसे कम स्तर पर आ गए। कार्बन डाइ ऑक्साइड उत्सर्जन में साल 2020 में हुई रिकॉड गिरावट (जब कोरोना महामारी के बाद कारखाने और उड़ाने बन्द कर दी गई थीं) के बाद हुई यह सबसे तेज़ गिरावट है।
सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (सीआरईए) के विश्लेषण से यह बात पता चली है। विश्लेषकों का कहना है कि इमीशन 60 के दशक में पहुंच गये हैं लेकिन अभी भी इनके कम होने की रफ्तार बहुत धीमी है। चूंकि इमीशन में गिरावट के बावजूद अर्थव्यवस्था 3 गुना हो गई है तो इससे यह उम्मीद है कि आर्थिक तरक्की से समझौता किए बिना क्लाइमेट चेंज से लड़ा जा सकता है।
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