भारत ने यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (यूएनएफसीसीसी) से मांग की है कि 2025 से अमीर देशों को हर साल “कम से कम” 1 ट्रिलियन डॉलर (लगभग 8.2 लाख करोड़ रुपए) क्लाइमेट फाइनेंस के रूप में विकासशील देशों को मुहैया कराने चाहिए, जिससे ग्लोबल वार्मिंग की चुनौतियों से निपटने के लिए जरूरी कदम उठाए जा सकें।
हालांकि यह मांग मौजूदा 100 बिलियन डॉलर की प्रतिबद्धता से कहीं ज्यादा है, फिर भी यह दिल्ली में हुए जी20 सम्मेलन के घोषणापत्र के अनुरूप है। अमीर देश अभी तक 2009 में कॉप15 के दौरान किए गए वायदे के अनुरूप हर साल 100 बिलियन डॉलर का क्लाइमेट फाइनेंस प्रदान करने में असमर्थ रहे हैं। भारत ने अपने प्रस्ताव में उन्हें इस अधूरे वायदे की भी याद दिलाई है।
आंकड़ों के मुताबिक़ भारत को यदि 2030 तक अपने क्लाइमेट लक्ष्यों को पूरा करना तो उसे लगभग 10 ट्रिलियन डॉलर के निवेश की जरूरत है। 2020 में भारत को प्राप्त 44 बिलियन डॉलर के क्लाइमेट फाइनेंस का 80 प्रतिशत हिस्सा घरेलू स्रोतों से प्राप्त हुआ। जबकि इसका 40% प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पब्लिक फाइनेंस से मिला था। विकसित देशों के अधूरे वायदों के कारण अंतर्राष्ट्रीय फाइनेंस रुका हुआ है।
उधर प्राइवेट फाइनेंस की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए सरकार ने पिछले साल ग्रीन बांड योजना शुरू की थी। लेकिन इसमें भी सुधार की जरूरत है, साथ ही प्राइवेट फाइनेंस बढ़ाने के और तरीके भी तलाश करने होंगें।
दिल्ली हाईकोर्ट ने पेड़ों की कटाई के लिए एसओपी बनाने का दिया निर्देश
दिल्ली उच्च न्यायालय ने निर्देश दिया है कि जिन इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं के लिए पेड़ों की कटाई आवश्यक होती है उनके लिए एक स्टैण्डर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (एसओपी) बनाया जाना चाहिए, जिसमें वन विभाग की भी सहभागिता होनी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि पेड़ों को काटने की अनुमति अंतिम विकल्प होना चाहिए।
कोर्ट ने दिल्ली सरकार के अधिकारियों से यह एसओपी बनाने के लिए कहा है, जिसके तहत किसी भी निजी निर्माण के लिए पेड़ों को काटने से पहले इसकी अनुमति लेनी होगी। इस प्रक्रिया के अंतर्गत संबंधित अधिकारी निर्माण स्थल पर जाकर मुआयना करेंगे कि क्या पेड़ों को किसी तरह बचाया जा सकता है। इस प्रक्रिया में वन विभाग भी शामिल होना चाहिए, जो पेड़ों को सुरक्षित करने पर अपनी राय देगा।
मामले की सुनवाई अब 18 मार्च को होगी।
गरीब देशों में ग्रामीण महिलाओं पर होगा जलवायु परवर्तन का बुरा असर, संयुक्त राष्ट्र की चेतावनी
मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र ने एक रिपोर्ट में चेतावनी दी कि गरीब देशों में खेतों और घरेलू काम में पिसने वाली ग्रामीण महिलाओं के परिवार पर जलवायु परिवर्तन का अधिक प्रभाव पड़ता है। जब ये महिलायें जीविका के लिये वैकल्पिक साधन ढूंढती हैं तो इन्हें भेदभाव का सामना करना पड़ता है।
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (FAO) की नई रिपोर्ट में कहा गया है कि पुरुष प्रधान परिवारों की तुलना में महिला प्रधान परिवारों की आय में गर्मी के दौरान 8 प्रतिशत और बाढ़ में 3 प्रतिशत अधिक क्षति होती है। एफएओ के मुताबिक गर्मी में तनाव के कारण यह असमानता 83 डॉलर प्रति व्यक्ति तक बढ़ जाती है और बाढ़ की वजह से यह अंतर 35 अमेरिकी डॉलर प्रति व्यक्ति हो जाता है।
सिडबी ने हासिल की पहली ग्रीन क्लाइमेट फंड परियोजना
भारतीय लधु उद्योग विकास बैंक (सिडबी) ने कहा है कि उसने अपनी पहली परियोजना अवाना सस्टेनेबिलिटी फंड (एएसएफ) के लिए ग्रीन क्लाइमेट फंड (जीसीएफ) की मंजूरी हासिल कर ली है। एएसएफ 120 मिलियन डॉलर का फंड है जिसमें जीसीएफ 24.5 मिलियन डॉलर का निवेश करेगा।
अवाना सस्टेनेबिलिटी फंड के द्वारा उन नई कंपनियों में निवेश किया जाएगा जो प्रौद्योगिकी और तकनीक की मदद से क्लाइमेट चेंज से निपटने, पर्यावरण संरक्षण और सस्टेनेबल डेवलपमेंट आदि में अपना योगदान देंगीं।
यह सिडबी द्वारा संचालित पहली परियोजना है, जिसका देश के जलवायु लक्ष्यों पर बड़ा प्रभाव पड़ने की उम्मीद है।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
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