अरब सागर में उठे चक्रवात के कारण हुई मॉनसून में देरी।

चक्रवाती हालात के कारण केरल में हफ्ते भर की देरी से पहुंचा मॉनसून

मौसम विभाग ने गुरुवार को अंततः मानसून के केरल के तट पर पहुंचने की घोषणा की। 

इस साल मानसून एक हफ्ते की देरी से आया है। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना ​​है कि मानसून की शुरुआत में देरी चिंता का विषय नहीं है, क्योंकि यह पहली बार नहीं हो रहा है और उम्मीद है कि अगले 2-3 सप्ताह में बारिश इस कमी की भरपाई कर देगी।

सामान्य तौर पर 1 जून तक मॉनसून केरल पहुंच जाता है और उत्तर की ओर बढ़ते हुए वह 15 जून तक लगभग पूरे देश में फैल जाता है। लेकिन अरब सागर में चक्रवाती तूफान ‘बिपारजॉय’ के कारण मंगलवार को एक दबाव का क्षेत्र बन गया जिसकी वजह से मॉनसून की शुरुआत के लिए ज़रूरी क्लाउड कवर (बादलों का जमाव) कम रहा। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि चक्रवात का मानसून की तीव्रता पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा।

हीटवेव से राहत देने के अलावा भारत की अर्थव्यवस्था के लिए भी मॉनसून बहुत महत्वपूर्ण है। भारत में 51% क्षेत्रफल में लगी फसल (जो कि देश के कुल उत्पादन का 40% है) बारिश से सिंचित होती है। भले ही देश की जीडीपी में कृषि का योगदान करीब 16% ही हो लेकिन कुल आबादी का 47% अब भी खेती में ही लगा है। 

डब्ल्यूएमओ के इतिहास में पहली बार एक महिला सेक्रेटरी जनरल, भारत के महापात्र को तीसरा उपाध्यक्ष चुना गया 

विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) के 150 साल के इतिहास में पहली बार किसी महिला को सेक्रेटरी जनरल चुना गया है। अर्जेंटीना के मौसम विभाग की निदेशक प्रोफेसर सेलेस्ते साउलो को पिछले हफ्ते जेनेवा में हुई बैठक में दो-तिहाई बहुमत से डब्ल्यूएमओ का सेक्रेटरी जनरल चुना गया। प्रोफेसर साउलो वर्तमान सेक्रेटरी जनरल फिनलैंड के पिटैरी टालस की जगह लेंगी और 1 जनवरी 2024 से कार्यभार संभालेंगी। 

इसी बैठक में भारत के मौसम विभाग के निदेशक मृत्युंजय महापात्रा को भी 3 में से एक उपाध्यक्ष चुना गया। महापात्र को अगले 4 साल के लिये इस पद पर चुना गया है। इस पद के मतदान में शामिल कुछ 148 देशों में से 113 देशों ने उनके  पक्ष में वोट दिया। 

जलवायु संकट के कारण अंटार्कटिका में सबमरीन भूस्खलन की आशंका, बड़ी सुनामी का ख़तरा

जलवायु परिवर्तन अंटार्कटिका महाद्वीप में समुद्र के भीतर बड़े भूस्खलन (सबमरीन लैंडस्लाइड) का कारण बन सकता है जिस वजह से इस क्षेत्र में विध्वंसक सुनामी आने का ख़तरा है और इसके वैश्विक दुष्परिणाम हो सकते हैं।  यह बात साइंस जर्नल नेचर कम्युनिकेशन में प्रकाशित एक रिसर्च में कही गई है। सबमरीन लैंडस्लाइड समुद्र के भीतर बड़ी मात्रा में तलछट (रेत, गाद और मिट्टी इत्यादि) के खिसकने की घटना को कहा जाता है और इनका व्यापक सामाजिक-आर्थिक प्रभाव हो सकता है। 

करीब 25 साल पहले 1998 में पापुआ न्यू गिनी के पास एक सबमरीन लैंडस्लाइड होने से ज़बरदस्त सुनामी आई थी और 2200 लोगों की मौत हो गई थी। वैज्ञानिक चेतावनी दे रहे हैं कि ग्लोबल वॉर्मिंग और रिकॉर्ड तोड़ तापमान की स्थिति में ऐसी घटनायें और बढ़ सकती हैं और अंटार्कटिका क्षेत्र में सुनामी आ सकती है। 

धरती के अस्तित्व के लिए ज़रूरी 8 में 7 लक्ष्मण रेखाएं पार 

अर्थ कमीशन (जो कि पर्यावरण विशेषज्ञों और समाज विज्ञानियों का समूह है और जिसके 5 अतिरिक्त विशेषज्ञ कार्य समूह हैं) की ताज़ा रिपोर्ट में कहा गया है विभिन्न प्रजातियों के अस्तित्व के लिए और धरती के बचे रहने के लिए ज़रूरी 8 में 7 लक्ष्मण रेखाएं पार हो गईं हैं। अर्थ कमीशन की यह रिपोर्ट नेचर साइंस जर्नल में ऐसे वक़्त में प्रकाशित हुई है जब जर्मनी के बॉन शहर में दुनिया के सभी देश महत्वपूर्ण क्लाइमेट वार्ता के लिए इकट्ठा हुए हैं। 

क्लाइमेट विज्ञान की भाषा में इन आठ लक्ष्मण रेखाओं को अर्थ सिस्टन बाउंड्री या ईएसबी कहा जाता है। इन सीमाओं में सुरक्षित और सामान्य जलवायु की तापमान सीमा, सर्फेस वॉटर (नदी, तालाब इत्यादि), भू-जल, नाइट्रोजन, फास्फोरस और एरोसॉल का स्तर और सुरक्षित लेकिन असामान्य जलवायु की तापमान सीमा शामिल हैं। सुरक्षित लेकिन सामान्य जलवायु के लिए अधिकतम तापमान वृद्धि 1 डिग्री है जबकि धरती की तापमान वृद्धि 1.2 डिग्री हो चुकी है और यह लक्ष्मण रेखा मानव तोड़ चुका है। इसी तरह बाकी पैमानों पर भी सुरक्षित स्तर का उल्लंघन हो चुका है केवल सुरक्षित लेकिन असामान्य जलवायु (जिसकी सीमा 1.5 डिग्री तापमान वृद्धि है) ही एक पैरामीटर है जिसका उल्लंघन नहीं हुआ है। 

भौगोलिक रूप से देखा जाए तो इनमें से कई लक्ष्मण रेखाओं का उल्लंघन बड़ा व्यापक है। वैज्ञानियों ने अपनी रिसर्च में कहा है कि इन आठ अर्थ सिस्टम बाउंड्री में से दो या तीन का उल्लंघन धरती के 52% हिस्से में हुआ है और दुनिया की कुल 86% आबादी पर उसका प्रभाव है। वैज्ञानिकों द्वारा उपलब्ध कराए गए नक्शे से पता चलता है कि भारत उन देशों में है जहां क्लाइमेट से जुड़ी इन रेड लाइंस का सबसे अधिक उल्लंघन हुआ है। संवेदनशील हिमालय के निचले क्षेत्र में 5 सीमाओं को तोड़ा गया है। इस बारे में विस्तार से जानने के लिये यह रिपोर्ट भी पढ़ सकते हैं। 

दक्षिणी यूक्रेन की सीमा पर बांध नष्ट, हज़ारों लोगों के जीवन पर संकट

मंगलवार को दक्षिण यूक्रेन की सीमा पर हमले में एक महत्वपूर्ण बांध नष्ट हो गया और इससे निकले पानी के तेज़ बहाव के कारण हज़ारों लोगों की ज़िन्दगी ख़तरे में आ गई। रूस और यूक्रेन ने एक दूसरे पर यह बांध नष्ट करने का आरोप लगाया है। न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक यह तुरंत स्पष्ट नहीं हो सका कि काखोवका बांध और जल विद्युत संयंत्र को नष्ट करने के लिये कौन ज़िम्मेदार है। बांध का सैलाब गाद, मिट्टी और पेड़ों के साथ आगे बढ़ा और इस कारण यूक्रेन और रूस के क़ब्ज़े वाले हिस्से में मिलाकर कुल 40,000 लोगों पर संकट खड़ा हो गया है। जानकारों ने चेतावनी दी है कि इस घटना के बाद लंबे समय तक इसके पर्यावरणीय दुष्प्रभाव देखे जाएंगे। 

कवक सोखता है जीवाश्म ईंधन से उत्सर्जित कार्बन 

पिछले कम से कम 45 करोड़ वर्षों से माइकोराइज़ल फंगी यानी कवक पौधों को ज़रूरी पोषण देकर धरती पर जीवन बनाये रखने में उपयोगी रहा है। पिछले कुछ सालों में वैज्ञानिकों ने यह पता लगाया है कि ज़मीन पर उगी तकरीबन सभी वनस्पतियों के साथ सहजीवी संबंध बनाने के अलावा कवक मृदा पारिस्थितिकी (मिट्टी) में कार्बन जमा करने में भी बड़ी भूमिका अदा करते हैं।   

करंट बायोलॉजी नाम के साइंस जर्नल में प्रकाशित शोध में कहा गया है कि जीवाश्म ईंधन (तेल, गैस इत्यादि) से उत्सर्जित कुल कार्बन का 36% धरती पर उगे पौधों में जमा होता है और यह माइकोराइज़ल कवक के कारण संभव है। एकत्रित कार्बन की यह मात्रा सालाना 13.12 गीगाटन CO2 के बराबर होती है। धरती पर 70 से 90 प्रतिशत पौधों के माइकोराइज़ल फंगी के साथ सहजीवी रिश्ते होते हैं इसलिये यह माना गया है कि इस नेटवर्क द्वारा बड़ी मात्रा में कार्बन मिट्टी में जमा होता है।

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