नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानी एनजीटी ने राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) को निर्देश दिया है कि वह उधमपुर से बानिहाल के बीच हाइवे के चौड़ीकरण प्रोजेक्ट से पर्यावरण को होने वाली क्षति की भरपाई के लिये 129 करोड़ रुपये की रकम अलग से रखे। कई रिपोर्ट सामने आयी हैं जिनसे पता चलता है कि सड़क कार्य का मलबा चिनाब और तवी नदी में फेंक दिया जा रहा है क्योंकि कोई व्यवस्थित मलबा निस्तारण ज़ोन (मक डम्पिंग यार्ड) नहीं बनाया गया। ग्रीन ट्रिब्यूनल ने पॉल्यूटर पेज़ (प्रदूषण करने वाला भरपाई करे) के सिद्धांत पर यह फैसला सुनाया है लेकिन जानकार कहते हैं कि पर्यावरण को होने वाली ऐसी क्षति अपूर्णीय है।
दिल्ली-एनसीआर के पावर प्लांट प्रदूषण की प्रभावी मॉनीटरिंग नहीं कर रहे: सीएसई रिपोर्ट
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र के बिजलीघर और उद्योग अपने उत्सर्जनों को मॉनीटर तक नहीं कर रहे हैं जबकि राजधानी और उससे लगे इलाकों में प्रदूषण का स्तर “सीवियर” यानी बहुत हानिकारक – ए क्यू आई 400 से ऊपर – है। दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वायरेंमेंट (सीएसई) की रिपोर्ट में इमीशन डाटा में गड़बड़ियां पाई गईं हैं।
साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर के पावर प्लांट्स और उद्योगों को उत्सर्जन पर लगातार निगरानी के लिये उपकरण (सीईएमएस) लगाने को कहा था और कहा था कि इसका डाटा ऑनलाइन शेयर होना चाहिये लेकिन दिल्ली से लगे उत्तर प्रदेश के पास सीईएमएस डाटा प्रकाशित करने का कोई पोर्टल तक नहीं है। पंजाब एनसीआर में शामिल अपने चार ताप बिजलीघरों में से केवल दो का डाटा सार्वजनिक करता है जबकि हरियाणा पांच में से केवल दो बिजलीघरों का।
रिपोर्ट कहती है कि दिल्ली-एनसीआर के 11 में से 4 बिजलीघरों का डाटा सवालों में है। राजीव गांधी और गुरु हर गोविन्द नाम से बने बिजलीघरों को बन्द कर दिया गया लेकिन ठप्प होने के बाद भी वहां से सल्फर और नाइट्रस ऑक्साइड का इमीशन दिख रहा है। सीईएमएस के जो आंकड़े जनता के आगे रखे जाते हैं वह तात्कालिक डाटा हैं और पिछले लम्बे समय के आंकड़े इसमें नहीं मिलते।
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