ऊर्जा बदलाव में सामाजिक भागीदारी

कार्बन कॉपी हिंदी के विशेष पॉडकास्ट सीरीज ऊर्जा बदलाव के पहले एपिसोड में हमने समझा कि जस्ट ट्रांजिशन क्या है, यह कैसे और किन देशों में शुरु हुआ और भारत में इसका भविष्य क्या है।

इस दूसरे एपिसोड में हृदयेश जोशी विशेषज्ञों से चर्चा कर रहे हैं उन लोगों के भविष्य पर जो जीवाश्म ईंधन से समृद्ध इलाकों में रहते हैं। भारत के एनर्जी प्रोफाइल के हिसाब से इस बातचीत में जीवाश्म ईंधन से मतलब कोयला ही माना जाए, तो कोयला खनन क्षेत्रों में रह रहे लोगों पर इस एनर्ज़ी ट्रांजिशन या ऊर्जा बदलाव मुहिम क्या असर होगा, यहां के बाशिंदों की ज़िन्दगी के सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय पहलू कैसे कोयले से जुड़े हैं। और आगे का रोडमैप कैसा बनना चाहिए।

जो दो मेहमान इसमें शमिल हो रहे हैं वह हैं समाज विज्ञानी और इकोनोमिक हिस्टोरियन रोहित चन्द्रा, जो आईआईटी दिल्ली के स्कूल ऑफ पब्लिक पॉलिसी में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं और इस पर काम कर रहे हैं कि भारत की कोयला पट्टी में एनर्जी ट्रांजिशन कैसे हो रहा है, विशेष रूप से पीएसयू यानि सरकारी उपक्रमों की भूमिका से संबंधित। 

दूसरे मेहमान हैं एक्टिविस्ट गुलाब चन्द्र प्रजापति, जो झारखण्ड के बोकारो में रहते हैं। प्रजापति कोयला क्षेत्र में लोगों के विस्थापन को लेकर काम करते रहे हैं और जस्ट ट्रांजिशन का विषय इससे जुड़ा हुआ  है।

बातों को सही परिप्रेक्ष्य में समझने के लिए कुछ महत्वपूर्ण आंकड़े जान लेना जरूरी है।

नेशनल फाउंडेशन ऑफ इंडिया की एक स्टडी बताती है कि कोयला, खनन, ट्रांसपोर्ट और पावर जैसे सेक्टरों को जोड़ दें तो 13 मिलियन, यानि सवा करोड़ से अधिक लोग इनपर निर्भर हैं।   

एक दूसरी स्टडी कहती है कि करीब 40 प्रतिशत,  यानि 280 जिले ऐसे हैं जिनकी निर्भरता कोयले पर है। 

आंकड़ों के मुताबिक, साल 2022 में कोल इंडिया ने 2.48 लाख लोगों को रोज़गार दिया। 

भारत सरकार का कहना है कि 50 लाख लोग सीधे तौर पर कोयले पर निर्भर हैं और इसीलिए भारत जी-20 में एक जस्ट एनर्जी ट्रांजिशन की पैरवी ज़ोरशोर से कर रहा है।

सुनिए इस कड़ी का दूसरा पॉडकास्ट।

इस पॉडकास्ट का प्रोडक्शन मयंक अग्रवाल के साथ हृदयेश जोशी ने किया है। एडिटिंग  और मिक्सिंग की है तेजस दयानंद सागर ने  और आर्टवर्क श्रद्धा मंडले का है। 

इस पॉडकास्ट को कार्बनकॉपी की हिन्दी और अंग्रेज़ी वेबसाइट्स के अलावा स्पोटिफाइ, एप्पल और गूगल जैसे पॉडकास्ट प्लेटफॉर्म्स पर सुना जा सकता है।

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दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
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