दिल्ली में पटाखों पर लगा प्रतिबंध बेअसर रहा और इस साल दिवाली के बाद राष्ट्रीय राजधानी में प्रदूषण का स्तर पिछले साल के मुकाबले अधिक दर्ज किया गया। पिछले साल जहां दिवाली के बाद शहर का वायु गुणवत्ता इंडेक्स (एक्यूआई) 303 था वहीं इस साल नवंबर 13 को यह 358 दर्ज किया गया। शनिवार को थोड़ी राहत के पहले इसमें लगातार वृद्धि होती रही और वायु गुणवत्ता ‘गंभीर’ बनी रही। शनिवार की सुबह दिल्ली का एक्यूआई 399 था, जबकि शुक्रवार की शाम यह 405 दर्ज किया गया था। गुरुवार को यह 419, बुधवार को 401, मंगलवार को 397 और सोमवार को 358 था।
यही नहीं, एनसीएपी ट्रैकर ने एक विश्लेषण में पाया कि पार्टिकुलेट मैटर पीएम2.5 का स्तर दिल्ली में सबसे तेजी से बढ़ा। दिवाली के दिन, यानी नवंबर 12 को यह स्तर 143.8 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर (µg/m3) था, नवंबर 13 को यह 395.9 µg/m3 पाया गया। एनसीएपी ट्रैकर ने देश के 11 राज्यों की राजधानियों का विश्लेषण करके यह पाया कि उनमें से नौ शहरों में दिवाली के बाद प्रदूषण का स्तर पिछले साल से अधिक था। दिवाली के दिन पीएम2.5 का औसत स्तर सबसे अधिक पटना में पाया गया।
दिवाली की रात में सभी शहरों में पीएम2.5 का स्तर अपने चरम पर था। दिल्ली में इस साल दिवाली के बाद वायु गुणवत्ता में गिरावट 2015 के बाद से सबसे तेज़ थी, जहां पीएम2.5 और पीएम10 का स्तर क्रमशः 45% और 33% बढ़ गया।
पिछले हफ्ते हुई बारिश और पश्चिमी विक्षोभ के कारण हवा की बढ़ी हुई गति ने दिल्ली में वायु प्रदूषण को कम करने में मदद की थी। लेकिन पटाखों के धुएं से कई स्थानों पर पीएम2.5 की सांद्रता बढ़ गई।
मानव उत्सर्जन के कारण वातावरण में पारे का स्तर सात गुना बढ़ा: अध्ययन
एक हालिया शोध के अनुसार, लगभग 1500 ईस्वी से आधुनिक युग की शुरुआत के बाद से, मनुष्यों ने वातावरण में जहरीले पारे की सांद्रता को सात गुना तक बढ़ा दिया है।
हार्वर्ड जॉन ए पॉलसन स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग एंड एप्लाइड साइंसेज (एसईएएस) के शोधकर्ताओं ने ज्वालामुखी से वार्षिक पारा उत्सर्जन की सटीक गणना करने के लिए एक नई तकनीक बनाई। ज्वालामुखी प्राकृतिक स्रोतों से पारा उत्सर्जन का सबसे बड़ा स्रोत है। उस अनुमान और एक कंप्यूटर मॉडल का उपयोग टीम द्वारा पूर्व-मानवजनित वायुमंडलीय पारा स्तरों के पुनर्निर्माण के लिए किया गया था। अध्ययन के अनुसार, मनुष्यों द्वारा पर्यावरण में पारा उत्सर्जित करने से पहले, वातावरण में पारे की औसत मात्रा 580 मेगाग्राम थी।
हालांकि, 2015 में, सभी उपलब्ध वायुमंडलीय मापों को देखने वाले स्वतंत्र शोध ने अनुमान लगाया कि वायुमंडलीय पारा भंडार लगभग 4,000 मेगाग्राम था — जो इस अध्ययन में बताई गई प्राकृतिक स्थिति से लगभग सात गुना अधिक है। यह बढ़ोत्तरी मानवों द्वारा खनन, उद्योग, अपशिष्ट जलाने और कोयले से चलने वाले बिजली स्टेशनों से पारे के उत्सर्जन से हुई है।
दुनिया में 21 मिलियन टन प्लास्टिक वातावरण में पहुंचा: ओईसीडी
आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) की अंतरिम रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2022 में पूरी दुनिया में 21 मिलियन टन प्लास्टिक वातावरण में घुल गया। यह रिपोर्ट प्लास्टिक संधि पर बनी अंतरसरकारी समिति की बैठक के दो दिन पहले जारी हुई। प्लास्टिक नियंत्रण के लिए एक संधि (जो सभी देशों पर बाध्यकारी होगी) के लिए 13 से 19 नवंबर तक कीनिया में बैठक हो रही है।
ओईसीडी की रिपोर्ट में प्लास्टिक संकट और इसके खिलाफ किसी भी एक्शन में देरी और कमज़ोरी के ख़तरों की समीक्षा भी की गई है। रिपोर्ट बताती है कि अगर यूं ही चलता रहा तो 2020 की तुलना में 2040 तक वातावरण में प्लास्टिक का रिसाव 50 प्रतिशत बढ़ जाएगा। इस अंतरिम रिपोर्ट के बाद अगले साल की पहली छमाही में अधिक गहन और विस्तृत रिपोर्ट जारी की जाएगी।
वायु प्रदूषण से बढ़ता है टाइप-2 डायबिटीज का खतरा: शोध
एक नए अध्ययन में पाया गया है कि प्रदूषित हवा के संपर्क में आने से टाइप-2 मधुमेह का खतरा बढ़ जाता है। अध्ययन में पाया गया कि उच्च मात्रा में महीन प्रदूषण कणों (पीएम2.5) — जो बालों के एक कतरे से भी 30 गुना पतले होते हैं — के साथ हवा में सांस लेने से ब्लड शुगर के स्तर में वृद्धि हुई और टाइप-2 डायबिटीज के मामलों में वृद्धि हुई। यह अध्ययन दिल्ली और चेन्नई में किया गया था।
अध्ययन में 2010 से 2017 तक 1,200 से अधिक पुरुषों और महिलाओं के एक समूह का मूल्यांकन किया गया और समय-समय पर उनके ब्लड शुगर के स्तर को मापा गया। उन्होंने उस दौरान प्रत्येक प्रतिभागी के इलाके में वायु प्रदूषण का निर्धारण करने के लिए उपग्रह डेटा और वायु प्रदूषण एक्सपोज़र मॉडल का भी उपयोग किया। अध्ययन से पता चला कि एक महीने तक पीएम2.5 के संपर्क में रहने से ब्लड शुगर का स्तर बढ़ा और एक वर्ष या उससे अधिक समय तक इसके संपर्क में रहने से मधुमेह का खतरा भी। इसमें यह भी पाया गया कि दोनों शहरों में वार्षिक औसत पीएम2.5 स्तर में प्रत्येक 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की वृद्धि से मधुमेह का खतरा 22 प्रतिशत बढ़ गया।
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