साल 2021 में दुनियाभर में साफ ऊर्जा क्षेत्रों में उपलब्ध नौकरियों की संख्या 3.5 करोड़ हो गई, जो पहली बार पारंपरिक जीवाश्म ईंधन क्षेत्र में उपलब्ध नौकरियों की संख्या (3.2 करोड़) से अधिक रही, अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी की एक वैश्विक रिपोर्ट में बताया गया है। विश्व ऊर्जा रोजगार 2023 रिपोर्ट से पता चलता है कि स्वच्छ ऊर्जा में नौकरियां लगातार बढ़त बनाए हुए हैं और जीवाश्म ईंधन नौकरियों से 3.6 गुना अधिक की दर से बढ़ रही हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्रों में वैश्विक स्तर पर 47 लाख नौकरियां बढ़ीं, जबकि जीवाश्म ईंधन क्षेत्र में 2020 की छंटनी के बाद बढ़ोत्तरी धीमी हुई और नौकरियों की संख्या महामारी के पहले के स्तर से लगभग 13 लाख कम रही। हालांकि, साफ़ ऊर्जा में मिलने वाले नए अवसर जीवाश्म ईंधन में जाने वाली नौकरियों से अधिक हैं।
भारत में, जीवाश्म ईंधन क्षेत्र में रोजगार की संख्या 2019 के स्तर से ऊपर चली गई। दूसरी ओर, नई स्वच्छ ऊर्जा नौकरियों के मामले में देश चौथे नंबर पर रहा।
कॉप28: फेजआउट डील की मांग ने अक्षय ऊर्जा निवेश की ओर खींचा ध्यान
इस महीने के अंत में शुरू होनेवाले जलवायु महासम्मेलन (कॉप28) के पहले लगभग 100 कैंपेन समूहों ने आयोजकों को एक खुली चिट्ठी लिखकर मांग की है कि वार्ता के दौरान जीवाश्म ईंधन फेजआउट और साफ ऊर्जा ट्रांजिशन पर एक औपचारिक समझौता होना चाहिए। इन कार्यकर्ता समूहों ने चिंता जताई है कि इस बाबत एक कमजोर समझौते को अपनाने की तैयारी चल रही है।
उनकी मांग ने एक बार फिर इस ओर ध्यान खींचा है कि 2030 तक वैश्विक ऊर्जा क्षमता तीन गुनी बढ़ाकर 11,000 गीगावाट करने के लिए ग्लोबल साउथ को फाइनेंस की जरूरत है।
इस साल भारत में हुए सम्मलेन में जी20 देशों ने 2030 तक अक्षय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना बढ़ाने के साथ-साथ, 4 ट्रिलियन डॉलर के सालाना निवेश पर भी सहमति जताई थी। लेकिन आंकड़ों पर नज़र डालें तो पेरिस समझौते के बाद से, चीन के बाहर ग्लोबल साउथ के देशों में अक्षय ऊर्जा में निवेश में कोई खास वृद्धि नहीं हुई है। यदि विश्व को 4 ट्रिलियन डॉलर के लक्ष्य तक पहुंचना है, तो ग्लोबल साउथ के देशों में अक्षय ऊर्जा में निवेश को दोगुने से भी अधिक बढ़ाना होगा।
अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी का अनुमान है कि 2030 तक चीन के इतर ग्लोबल साउथ के साउथ के देशों में लगभग 1.9 ट्रिलियन डॉलर के वार्षिक निवेश की जरूरत होगी।
युद्ध के बीच गाजा निवासियों को रूफटॉप सोलर से मिल रही बिजली
हमास के हमले के बाद इज़रायल की जवाबी कार्रवाई के दौरान फिलिस्तीन के गाजा क्षेत्र में ईंधन और बिजली की आपूर्ति लगभग ठप हो चुकी है। ऐसे में बीस लाख की घनी आबादी वाले इस क्षेत्र के कई निवासियों को रूफटॉप सोलर जीवनरेखा प्रदान कर रहे हैं। कई वर्षों से इस क्षेत्र को अक्सर ब्लैकआउट का सामना करना पड़ता है, जो इज़रायली हमलों के दौरान और भी बदतर हो जाते हैं। इसलिए, जो गाजा निवासी रूफटॉप सोलर पैनल लगवा सकते थे, उन्होंने बिजली की आपूर्ति सुनिश्चित करने ने लिए ऐसा किया है।
गाजा के निवासियों ने बताया कि हालांकि ये सौर पैनल भी इजरायली बमबारी में नष्ट हो सकते हैं, बिजली आपूर्ति जारी रखने में इनसे बहुत मदद मिली है।
वहीं दूसरी ओर कॉउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर नामक थिंकटैंक ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि भारत में एनर्जी ट्रांजिशन में रूफटॉप सोलर का योगदान महत्वपूर्ण हो सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में 25 करोड़ से अधिक घरों में छतों पर 637 गीगावॉट सौर ऊर्जा क्षमता के पैनल लगाए जा सकते हैं।
भारत में पवन ऊर्जा स्थापना में 64% की गिरावट
मेरकॉम इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार इस साल की तीसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) के बीच भारत में 412 मेगावाट पवन ऊर्जा क्षमता जोड़ी गई। यह पिछली तिमाही (अप्रैल-जून) के मुकाबले 64% कम है। वहीं पिछले साल की तीसरी तिमाही में जोड़ी गई क्षमता के मुकाबले यह 53% कम है।
बताया जा रहा है कि इस गिरावट की वजह है कि इस तिमाही में कर्नाटक और राजस्थान जैसे पवन ऊर्जा में अग्रणी राज्यों ने अपनी क्षमता में कोई वृद्धि नहीं की। सूत्रों की मानें तो कर्नाटक में डेवलपर्स को सबस्टेशनों की कमी से जूझना पड़ा, जिसके कारण अधिकांश पूरी हो चुकी परियोजनाएं भी कमीशन नहीं की जा सकीं। वहीं राजस्थान में इस तिमाही में कोई परियोजना कमीशन नहीं की जानी थी, इसलिए इसकी क्षमता में भी कोई वृद्धि नहीं हुई।
आईएसए को अगले कुछ महीनों में 50 मिलियन डॉलर जुटाने की उम्मीद
इंटरनेशनल सोलर अलायंस (आईएसए) के प्रमुख अजय माथुर ने कहा है कि उन्हें अगले कुछ महीनों में सौर ऊर्जा के लिए 50 मिलियन डॉलर का निवेश मिलने की उम्मीद है। कार्बनकॉपी से बातचीत में माथुर ने कहा कि उन्होंने एक खाका तैयार किया है, जिसमें फिलहाल अफ्रीका, फिर एशिया और फिर लैटिन अमेरिका के देशों पर ध्यान दिया जाएगा।
उन्होंने कहा कि इन तीनों चरणों के लिए उन्हें एक पैरेंट कंपनी की तलाश है जो आईएसए द्वारा प्रबंधित होगी। उन्होंने कहा कि भारत ने सैद्धांतिक तौर पर इसमें अहम योगदान देने का फैसला किया है। “दो अन्य संस्थाएं हैं जो इसके लिए स्रोत उपलब्ध कराने के लिए प्रतिबद्ध हैं। तीन देश ऐसे हैं जिनके साथ चर्चा अंतिम चरणों में है और छह अन्य देशों के साथ भी चर्चा की जा रही है,” माथुर ने कहा।
“हमने अपने लिए 50 मिलियन डॉलर का मानक तय किया है। हमें उम्मीद है कि उसके बाद हम जून 2024 तक पेमेंट गारंटी सुविधा के लिए $100 मिलियन, बीमा निधि सुविधा के लिए $20 मिलियन और प्रारंभिक पूंजी के लिए $50 मिलियन जुटाने में सफल होंगे,” उन्होंने कहा।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
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