प्रदूषण बरकरार: नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम की पिछले 3 साल की रिपोर्ट अप्रभावी दिखती है। फोटो: newsweek

नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम के 3 साल बाद भी हालात में खास फर्क नहीं

नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (एनसीएपी) को शुरु हुये 3 साल पूरे हो गये हैं। यह प्रोग्राम देश के 132 शहरों में हवा को साफ करने के मकसद से शुरू किया गया। तीन साल बाद ज़मीन पर नहीं के बराबर बदलाव दिख रहा है। सरकार ने 10 जनवरी 2019 को इस प्रोग्राम की घोषणा की थी। सरकार के एयर क्वॉलिटी डाटा का विश्लेषण बताता है कि शहरों में PM 2.5 और PM 10 के स्तर में मामूली कमी है। कहीं कहीं तो यह बढ़ा भी है।

क्लीन एयर प्रोग्राम का लक्ष्य साल 2024 तक इन शहरों में PM 2.5 और PM 10 के स्तर को 20 से 30 प्रतिशत (2017 के प्रदूषण को आधार मानते हुये) कम करना है। पर्यावरण मंत्रालय के साथ केंद्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड पर इस कार्यक्रम को लागू करने का ज़िम्मा है। राज्य प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड का काम है कि वो अपने राज्यों में सिटी एक्शन प्लान बनायें।

निरंतर मॉनीटरिंग के लिये लगाये गये CAAQMS से उपलब्ध डाटा का  वेबसाइट NCAP Tracker ने विश्लेषण किया और पाया कि 132 में से केवल 36 शहर लक्ष्य में खरे उतरे। वाराणसी के प्रदूषण में सबसे अधिक गिरावट दर्ज की गई।

सालाना PM 2.5 प्रदूषण के सालाना औसत के हिसाब से 2019 में भी गाज़ियाबाद सबसे प्रदूषित (नंबर 1) और 2021 में भी रहा। हालांकि 2020 में लॉकडाउन के कारण पैदा स्थितियों से लखनऊ के बाद वह दूसरे नंबर पर प्रदूषित रहा। गाज़ियाबाद PM 10 के स्तर के हिसाब से भी नंबर एक पर है।

PM 2.5 के हिसाब से 2019 में विजयवाड़ा सबसे कम प्रदूषित शहरों में था लेकिन पर्याप्त डाटा उपलब्ध न होवे के कारण उसने कितनी तरक्की की यह पता नहीं लग सका है। मुंबई समेत महाराष्ट्र के कई शहरों में पिछले 3 साल में  प्रदूषण बढ़ा है। 

गाज़ियाबाद, नोयडा, मुरादाबाद, वाराणसी, जोधपुर, मंडी, गोविदगढ़ और हावड़ा जैसे शहर PM 2.5 औऱ PM 10 दोनों ही मामलों में 10 सबसे प्रदूषित शहरों में हैं। मुंबई समेत महाराष्ट्र के कई शहरों में पिछले 3 साल में प्रदूषण बढ़ा है। ज़्यादातर राज्यों ने इस कार्यक्रम  के तहत उपलब्ध कराये गये पैसे का बहुत छोटा अंश खर्च किया है। उत्तर प्रदेश जहां प्रदूषित शहरों की संख्या सबसे अधिक है वहां उपलब्ध 60 करोड़ का केवल 16 प्रतिशत ही खर्च हुआ। उधर महाराष्ट्र जहां एनसीएपी के तहत शामिल शहरों की संख्या सबसे अधिक है वहां भी उपलब्ध 51 करोड़ का केवल 8 प्रतिशत ही खर्च हुआ है।

सिर्फ 79 कोयला संयंत्रों को उत्सर्जन घटाने की तकनीक अपनाने के निर्देश, 517 को मिली राहत

केंद्र ने 79 कोयला बिजली संयंत्रों को दिसंबर 2021 के अंत तक सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में कटौती करने के लिए उपकरण लगाने को लिए कहा है, लेकिन 517 कोयला संयंत्रों को समय सीमा में विस्तार की अनुमति दी गई है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा ताप विद्युत संयंत्रों (थर्मल पावर प्लांट्स) के संशोधित वर्गीकरण के अनुसार यह 79 कोयला बिजली संयंत्र 10 लाख से अधिक आबादी वाले उन  शहरों में आते हैं जो पहले से ही प्रदूषित हैं। इन शहरों में दिल्ली, चेन्नई, कोटा, ग्रेटर मुंबई, नागपुर, विशाखापत्तनम और विजयवाड़ा शामिल हैं। इन शहरों को सीपीसीबी द्वारा ताप विद्युत संयंत्रों के संशोधित वर्गीकरण की श्रेणी ए में रखा गया है।

अप्रैल 2021 में पर्यावरण मंत्रालय द्वारा जारी किए गए नए नियमों के अनुसार नियमों को न मानने पर इन 79 कोयला संयंत्रों को जुर्माना देना होगा जो इस प्रकार है: 180 दिनों तक प्रति यूनिट बिजली उत्पादन पर 10 पैसे, 181 दिनों से 365 दिनों के बीच 15 पैसे और 366 दिनों के बाद प्रति यूनिट उत्पादन पर 20 पैसे। पहले के मानदंडों में नियमों को न मानने पर कोयला संयंत्रों को बंद करना आवश्यकता होता था। श्रेणी ए में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के 10 किलोमीटर के दायरे में आने वाले वह शहर हैं जिनकी आबादी दस लाख से अधिक हैं; श्रेणी बी के संयंत्र गंभीर रूप से प्रदूषित क्षेत्रों या नॉन-एटेनमेंट शहरों के 10 किलोमीटर के दायरे में हैं; शेष बिजली संयंत्र श्रेणी सी में हैं।

बिहार, पश्चिम बंगाल और ओडिशा में फिर बढ़ रहा प्रदूषण: सीएसई

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) के एक विश्लेषण के अनुसार पूर्वी भारतीय राज्यों बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडिशा में वायु प्रदूषण फिर से बढ़ रहा है। पश्चिम बंगाल के एक बड़े औद्योगिक केंद्र दुर्गापुर की हवा 2021 में इस क्षेत्र में सबसे प्रदूषित थी, जिसका वार्षिक औसत PM2.5 स्तर 80 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर (μg/m3) था, इसके बाद मुजफ्फरपुर और पटना का नंबर रहा जिनका PM 2.5 का स्तर वार्षिक औसत क्रमश: 78 माइक्रोग्राम/घनमीटर और 73 माइक्रोग्राम/घन मीटर था।

सीएसई की रिपोर्ट में कहा गया है कि वार्षिक पीएम2.5 मापदंडों पर खरा उतरने के लिए दुर्गापुर को वार्षिक पीएम2.5 को 50% तक कम करने की जरूरत है। इसी प्रकार हावड़ा को 34%, आसनसोल को 32%, सिलीगुड़ी को 32% और कोलकाता को 28% कम करना होगा। अध्ययन में कहा गया है कि हल्दिया ने 2021 में सभी मानकों को  पूरा किया। बिहार में, मुजफ्फरपुर को मानक को पूरा करने के लिए वार्षिक औसत PM2.5 के स्तर में लगभग 50%, पटना को 45%, हाजीपुर को 33% और गया को 18% की कटौती करने की आवश्यकता है।

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