भारतीय मौसम विभाग ने कहा है कि भारत में 2024 के मानसून सीजन में सामान्य से अधिक वर्षा होने की संभावना है। आईएमडी के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्रा ने कहा कि अगस्त-सितंबर तक ला नीना की स्थिति बनने की उम्मीद है, और जून से सितंबर के बीच वर्षा के लांग पीरियड एवरेज (एलपीए, 87 सेमी) का 106 प्रतिशत संचयी वर्षा होने की संभावना है।
निजी मौसम पूर्वानुमान एजेंसी स्काईमेट ने भी कहा है कि इस साल भारत में मानसून सामान्य रहने की संभावना है और मानसून के दूसरे भाग में बारिश ज्यादा होगी। आईएमडी के वैज्ञानिकों को ऐसे शुरुआती संकेत मिले हैं जो बताते हैं कि इस साल मानसून अच्छा होगा, क्योंकि अल नीनो की स्थिति कम हो रही है और यूरेशिया में बर्फ का आवरण घट रहा है।
महापात्रा ने कहा कि बड़े पैमाने पर जलवायु संबंधी घटनाएं दक्षिण पश्चिम मानसून के लिए अनुकूल हैं। “जून के आरंभ तक अल नीनो लगभग निष्प्रभावी हो जाएगा। जुलाई-सितंबर के बीच ला नीना स्थितियां बनेंगी जिससे मानसून अच्छा होगा,” उन्होंने कहा।
हालांकि अच्छे मानसून का मतलब यह नहीं कि पूरे मौसम के दौरान और देश में सभी जगह एक जैसी बारिश होगी। वैज्ञानिकों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण बारिश के दिनों की संख्या घट रही है जबकि भारी बारिश की घटनाएं बढ़ रही हैं, जिससे बार-बार सूखा और बाढ़ स्थितियां उत्पन्न हो रही हैं।
स्काईमेट को दक्षिण, पश्चिम और उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में पर्याप्त बारिश की उम्मीद है। महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के मुख्य मानसून वर्षा आधारित क्षेत्रों में भी पर्याप्त वर्षा होगी। हालांकि, बिहार, झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल के पूर्वी राज्यों में जुलाई और अगस्त के महीनों के दौरान कम वर्षा हो सकती है। पूर्वोत्तर भारत में मानसून के पहले भाग के दौरान सामान्य से कम बारिश होने की संभावना है।
मार्च 2024 रहा सबसे गर्म, 12 महीने के औसत तापमान ने बनाया नया रिकॉर्ड
अल नीनो स्थिति और मानव-जनित जलवायु परिवर्तन के संयुक्त प्रभाव के कारण मार्च 2024 अब तक का सबसे गर्म मार्च का महीना रहा। यूरोपीय संघ की जलवायु एजेंसी कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विसेज (सी3एस) ने बताया कि पिछले साल जून के बाद से तापमान का रिकॉर्ड बनाने वाला यह लगातार 10वां महीना था।
मार्च 2024 में औसत तापमान 14.14 डिग्री सेल्सियस था, जो 1850-1900 के औसत से 1.68 डिग्री सेल्सियस अधिक था। 1991-2020 की अवधि के दौरान मार्च के औसत तापमान से यह 0.73 डिग्री सेल्सियस अधिक था और 2016 के पिछले सबसे गर्म मार्च से 0.10 डिग्री सेल्सियस अधिक था।
सी3एस ने कहा कि “पिछले 12 महीनों (अप्रैल 2023-मार्च 2024) में वैश्विक औसत तापमान सबसे अधिक रहा है, जो 1991-2020 के औसत से 0.70 डिग्री सेल्सियस और 1850-1900 के औसत से 1.58 डिग्री सेल्सियस अधिक है।” एजेंसी ने यह भी कहा कि वैश्विक औसत तापमान जनवरी में पहली बार पूरे वर्ष के लिए 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर गया।
वैश्विक स्तर पर 2023 अबतक का सबसे गर्म साल था। ग्लोबल वार्मिंग 2024 में एक नया रिकॉर्ड बना सकती है क्योंकि वैज्ञानिकों का कहना है कि अल नीनो आमतौर पर अपने दूसरे वर्ष में वैश्विक जलवायु पर सबसे अधिक प्रभाव डालता है।
हीटवेव की मार महिलाओं पर अधिक : शोध
अत्यधिक गर्मी झेलने के बात हो तो महिलाओं पर हीटवेव की मार पुरुषों के मुकाबले अधिक होती है। सिग्निफिकेंस पत्रिका में प्रकाशित एक विश्लेषण में यह बात सामने आई है। द रॉयल स्टेटेस्टिकल सोसायटी के जर्नल में प्रकाशित हुए इस विश्लेषण में शोधकर्ताओं ने करीब 30 साल के आंकड़ों का अध्ययन किया और पाया कि 2005 से हीटवेव के कारण हुई मौतों में जहां पुरुषों की संख्या में कुछ गिरावट है वहीं महिलाओं का ग्राफ बढ़ रहा है।
कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर और अकादमिक निदेशक रामित देबनाथ ने डाउन टु अर्थ मैग्जीन को बताया, “हमने वर्णनात्मक सांख्यिकीय विश्लेषण के माध्यम से पाया कि भारत में उपलब्ध डेटा से पता चलता है कि महिलाएं पुरुषों की तुलना में अत्यधिक तापमान की स्थिति (विशेष रूप से गर्मी) के प्रति अधिक संवेदनशील हैं।”
इन शोधकर्ताओं यह जानने के लिए विश्लेषण शुरू किया कि क्या भारत में महिलाओं को अत्यधिक तापमान से मृत्यु दर का अधिक जोखिम का सामना करना पड़ता है। लेकिन भारत में तापमान संबंधी हेल्थ और हेल्थ केयर को लेकर बारीक और और उच्च गुणवत्ता वाले राष्ट्रीय डाटा का अभाव है। इसलिये इस रिसर्च को प्राथमिक रुझान ही समझा जाना चाहिये।
इससे पहले मार्च में वन अर्थ नाम की विज्ञान पत्रिका में प्रकाशित एक अन्य शोध में कहा गया कि बाहर काम करने वाले श्रमिकों पर हीटवेव के बड़े दुष्प्रभाव होते हैं और इस कारण जागरूकता बढ़ाने और इस मौसम में काम के घंटे कम करने की ज़रूरत है। अमेरिका स्थित पॉल जी एलन फैमली फाउंडेशन के सहयोग से किये गये शोध में बताया गया कि बढ़ती उमस भरी गर्मी से अफ्रीका और एशिया में बाहर काम करने वाले श्रमिकों पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ने की संभावना है, क्योंकि आने वाले दशकों में यहां के देशों में कामकाजी आबादी की उम्र अधिक होगी और यहां कृषि, वानिकी और मत्स्य पालन पर उच्च निर्भरता भी है।
बेहतर पूर्वानुमान के लिए एआई का प्रयोग कर रहा मौसम विभाग
भारत के मौसम विज्ञानी बेहतर पूर्वानुमान के लिए एआई (आर्टिफिशयल इंटैलिजेंस) का प्रयोग कर रहे हैं। आईएमडी के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्र ने समाचार एजेंसी पीटीआई के साथ वार्ता में यह भी कहा कि आने वाले दिनों में नई टेक्नोलॉजी ऐसे संख्यात्मक मौसम पूर्वानुमान मॉडल तैयार करने में भी मदद करेंगी जिनका वर्तमान में मौसम की भविष्यवाणी करने के लिए व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।
मौसम निभाग ने 39 डॉप्लर वेदर रडार लगाए हैं जो देश के 85 प्रतिशत क्षेत्रफल में मौसमी गतिविधि कवर करते हैं। इससे सभी बड़े शहरों का हर घंटे का पूर्वानुमान उपलब्ध हो जाता है। महापात्र ने कहा, “हमने सीमित रूप में एआई का प्रयोग शुरू किया है लेकिन आने वाले 5 सालों में एआई व्यापक रूप से मॉडल और तकनीकी में सहायक होगा।”
उनके मुताबिक आईएमडी ने 1901 से अब तक के मौसम के रिकॉर्ड डिजिटल रूप में संरक्षित किए हैं और एआई के प्रयोग द्वारा सूचना के इस भंडार का वेदर पैटर्न के बारे में पता लगाने में इस्तेमाल हो सकता है।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
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