भारत ने पिछले वित्तीय वर्ष में सौर ऊर्जा के कारण ग्रिड की वार्षिक क्षमता में अब तक की सबसे अधिक वृद्धि दर्ज की। इस वृद्धि में सौर ऊर्जा का योगदान 81 प्रतिशत रहा। वित्त वर्ष 2024 के दौरान जोड़ी गई कुल नई क्षमता 18,485 मेगावाट थी, जबकि उसके पिछले वित्त वर्ष में 15,274 मेगावाट क्षमता जोड़ी गई थी। औसतन, पिछले तीन वर्षों में नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र ने प्रति वर्ष लगभग 15,950 मेगावाट की क्षमता जोड़ी।
केंद्रीय नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2024 में जोड़ी गई क्षमता में 15,033 मेगावाट सोलर क्षेत्र (सभी श्रेणियों सहित जैसे ग्राउंड-माउंटेड, रूफटॉप, हाइब्रिड सोलर और ऑफ-ग्रिड आदि) से आया, जबकि वित्त वर्ष 2023 में यह योगदान 12,784 मेगावाट और वित्त वर्ष 2022 में 12,761 मेगावाट था।
वित्त वर्ष 2024 में यूटिलिटी-स्केल सोलर सेगमेंट में लगभग 11.5 गीगावाट जोड़ा गया, जो वित्त वर्ष 2023 के इंस्टॉलेशन की तुलना में 18% अधिक है। रूफटॉप सोलर सेगमेंट में वित्त वर्ष 2024 के दौरान लगभग 2,992 मेगावाट जोड़ा गया, जो वित्त वर्ष 23 की तुलना में 34% अधिक है।
लंबे समय के बाद, पवन ऊर्जा क्षेत्र ने 3,000 मेगावाट से अधिक की वार्षिक क्षमता जोड़ी, और यह वित्त वर्ष 24 में 3,253 मेगावाट (वित्त वर्ष 2023 में 2,276 मेगावाट और वित्त वर्ष 22 में 1,111 मेगावाट) रही।
एएलएमएम सूची फिर लागू, डेवलपर्स को मॉड्यूल की कीमतें बढ़ने की चिंता
सरकार ने सौर मॉड्यूल निर्माताओं के लिए मॉडल और निर्माताओं की स्वीकृत सूची (एएलएमएम) को पहली अप्रैल से फिर से लागू कर दिया है। लेकिन ओपन एक्सेस और गैर-सब्सिडी प्राप्त परियोजनाओं को मिलने वाली छूट वापस ले ली गई है। इस कारण से ओपन एक्सेस डेवलपर्स शंकित हैं कि मॉड्यूल की कीमतें बढ़ेंगी और परियोजना की लागत में वृद्धि होगी।
इससे पहले सरकार ने सूची में शामिल निर्माताओं से सौर मॉड्यूल की खरीद को अनिवार्य करने के आदेश को वित्त वर्ष 2024 तक स्थगित कर दिया था, क्योंकि इससे मॉड्यूल आपूर्ति बाधित होने की संभावना थी जिसका प्रभाव सौर क्षमता वृद्धि पर होता।
एएलएमएम रेगुलेशन को अब अक्टूबर 2022 से अपने मूल रूप में फिर से लागू किया जा रहा है, जिसके दायरे में ओपन एक्सेस और रूफटॉप सोलर सहित सभी श्रेणियों की परियोजनाएं आएंगी।
सौर उपकरण निर्माताओं के लिए देश के भीतर व्यवसाय करने के लिए इस सूची में शामिल होना आवश्यक है। सूची में अभी भी किसी अंतर्राष्ट्रीय निर्माता या मॉड्यूल को शामिल नहीं किया गया है। डेवलपर्स को डर है कि प्रतिस्पर्धा के अभाव में बाजार में कीमतें बढ़ सकती हैं।
नीतिगत चिंताओं के कारण नवीकरणीय सेक्टर में घट रहा निवेश
इस साल वैश्विक निवेशक तेजी से नवीकरणीय ऊर्जा सेक्टर के फंड्स से दूर हो रहे हैं। रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, 2024 की पहली तिमाही में निवेशकों ने रिकॉर्ड रूप से नवीकरणीय ऊर्जा इक्विटी फंड्स से पैसे निकाले हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक निवेशक सेक्टर के विकास और नीतियों को लेकर अनिश्चित हैं, क्योंकि इस साल अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव होने हैं।
गौरतलब है कि पिछले कुछ वर्षों में नवीकरणीय ऊर्जा सेक्टर के फंड्स में लगातार निवेश देखा गया है, क्योंकि उपभोक्ता पर्यावरणीय रूप से टिकाऊ उत्पादों और सेवाओं को अधिक दामों पर भी उपयोग करने को तैयार थे, और अमेरिका और यूरोप जैसे देशों में नीतियां इनके अनुरूप थीं।
हालांकि, अब निवेश पर बढ़ती ब्याज दरों और भविष्य की ऊर्जा नीतियों पर अनिश्चितता के कारण निवेशक चिंतित हैं। दुनिया के लिए यह अच्छा संकेत नहीं है क्योंकि वैश्विक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता में पहले से ही उतना विकास नहीं हो रहा जितना कॉप28 में निर्धारित लक्ष्यों को पूरा करने के लिए आवश्यक है। ऐसे में यदि निवेशकों की रुचि घटती रही तो क्लाइमेट लक्ष्यों को प्राप्त करने में समस्या आ सकती है।
ग्रीन हाइड्रोजन रिसर्च और डेवलपमेंट प्रस्ताव पेश करने की समय सीमा बढ़ी
अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में इनोवेशन को बढ़ावा देने के लिए नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन के तहत अनुसंधान और विकास प्रस्ताव पेश करने की अवधि बढ़ा दी है।
निर्धारित समय सीमा को अब 27 अप्रैल, 2024 तक बढ़ा दिया गया है, जिससे भारत के हरित हाइड्रोजन विकास में योगदान देने की इच्छा रखने वाले शोधकर्ताओं और संस्थानों को अतिरिक्त तैयारी का समय मिल गया है।
विभिन्न हितधारकों ने समयसीमा बढ़ाने का अनुरोध किया था ताकि उन्हें अपने प्रस्तावों को विकसित करने के लिए अधिक समय मिल सके, और उच्च गुणवत्ता वाली, नवीन परियोजनाएं पूरी तरह से तैयार करके प्रस्तुत की जा सकें।
यह पहल हरित हाइड्रोजन के उपयोग को बढ़ावा देने की सरकार की व्यापक रणनीति का हिस्सा है।
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