भारत सरकार की नई नीति से 28 गीगावॉट क्षमता के निर्माणाधीन कोयला संयंत्रों पर रोक नहीं लगेगी।

नए कोयला संयंत्रों का निर्माण बंद कर सकता है भारत

भारत अपनी राष्ट्रीय विद्युत नीति (एनईपी) के अंतिम मसौदे से एक महत्वपूर्ण खंड को हटाकर नए कोयला बिजली संयंत्रों का निर्माण बंद करने की योजना बना रहा है।

रॉयटर्स ने सरकारी सूत्रों के हवाले से बताया कि यदि इस मसौदे को कैबिनेट की मंजूरी मिल जाती है, तो चीन एकमात्र बड़ा देश रह जाएगा जहां नए कोयला बिजली संयंत्र बनाने की संभावनाएं खुली रहेंगीं।

हालांकि, नई नीति से 28 गीगावॉट क्षमता के निर्माणाधीन कोयला संयंत्रों पर रोक नहीं लगेगी।

वहीं एक अन्य रिपोर्ट में रॉयटर्स ने बताया कि चीन के साथ मिलकर भारत जी20 समूह के भीतर एक आम सहमति बनाने की कोशिश कर रहा है ताकि देशों को जीवाश्म ईंधन का उपयोग समाप्त करने की समय सीमा तय करने के बजाय, उत्सर्जन में कटौती का रोडमैप चुनने का विकल्प मिल सके।

रिपोर्ट के अनुसार दोनों देशों ने कॉप26 के दौरान कोयले से ट्रांजिशन करने के प्रस्ताव की भाषा को कमजोर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

जी20 की अध्यक्षता कर रहे भारत की कोशिश है कि सितंबर में होनेवाले शिखर सम्मेलन की विज्ञप्ति में ‘मल्टीपल एनर्जी पाथवे’ वाक्यांश शामिल कर दिया जाए, और इस कोशिश में चीन और दक्षिण अफ्रीका सहित कुछ देश भारत के साथ हैं।

विश्व की लगभग 80% सक्रिय कोयला परियोजनाएं भारत और चीन में हैं।

9 सालों के प्रतिबंध के बाद मेघालय में शुरू हो सकता है कोयला खनन

मेघालय में अप्रैल 2014 से प्रतिबंधित कोयला खनन जुलाई से फिर शुरू हो सकता है

मुख्यमंत्री कोनराड के संगमा ने 1 मई को एक रैली को संबोधित करते हुए कहा कि केंद्र सरकार ने चार खनन पट्टों को मंजूरी दे दी है और राज्य में साइंटिफिक माइनिंग का मार्ग प्रशस्त किया है।

मेघालय के खनन और भूविज्ञान विभाग के सचिव को कोयला मंत्रालय की ओर से 24 अप्रैल को भेजे गए एक पत्र में कहा गया कि खलीहरियात, कलागाव, बिंदीहाटी और नोंगस्टोइन कोयला ब्लॉकों में खनन पट्टों को मंजूरी दे दी गई है।

रैट-होल कोयला खनन पर प्रतिबंध के बावजूद, मेघालय में वर्षों से कोयले का अवैध खनन और ट्रांसपोर्ट चलता रहा है

पिछले महीने मेघालय उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को अवैध रूप से निकाला गया कोयला बांग्लादेश को निर्यात करने में मिलीभगत के आरोप से बरी करने से इंकार कर दिया था

संयुक्त राष्ट्र समर्थित क्लाइमेट इनिशिएटिव से अडानी समूह की 3 कंपनियां बाहर

प्राकृतिक गैस खनन और जीवाश्म ईंधन के उपयोग का विस्तार करने के लिए अडानी समूह की तीन कंपनियों को संयुक्त राष्ट्र समर्थित साइंस बेस्ड टार्गेट्स इनिशिएटिव (एसबीटीआई) से  हटा दिया गया है

अडानी ग्रीन एनर्जी लिमिटेड, अडानी ट्रांसमिशन और अडानी पोर्ट्स एंड स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन के खिलाफ यह कार्रवाई तब की गई जब कैंपेन ग्रुप मार्केट फोर्सेस के सहयोग से एक गैर-लाभकारी संस्था ईको ने वैश्विक जलवायु परिवर्तन अभियान ‘यूएन रेस टू जीरो’ को एक पत्र भेजा।

पत्र में दोनों संस्थाओं ने अडानी समूह की कंपनियों के निष्कासन की कई वजहें बताईं। उन्होंने कहा कि ऑस्ट्रेलिया की कारमाइकल जैसी कोयला खनन परियोजनाओं में निवेश करके समूह जीवाश्म ईंधन के प्रयोग के विस्तार का समर्थन कर रहा है और यह गुजरात के मुंद्रा में भारत के सबसे बड़े कोयला आयात टर्मिनल का संचालक भी है।

उन्होंने यह भी कहा कि अडानी समूह गैस आयात का विस्तार करने और पूरे भारत के 56 जिलों में नए इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास करने की योजना भी बना रहा है।

जलवायु संकट कम करने में विफल रहा पेरिस समझौता: रिपोर्ट

विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने अपनी हालिया रिपोर्ट में कहा है कि जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौता अपने एजेंडे को पूरा करने में अप्रभावी रहा है

स्टेट ऑफ द ग्लोबल क्लाइमेट 2022 रिपोर्ट के अनुसार समझौते के बाद के आठ साल — 2015-2022 — वैश्विक स्तर पर लगातार सबसे गर्म साल रहे हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले तीन सालों में यदि ला नीना नहीं हुआ होता, तो स्थिति और भी खराब हो सकती थी।

रिपोर्ट का कहना है कि जलवायु संकट के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार जीवाश्म ईंधन के उपयोग को पेरिस समझौता पूरी तरह से समाप्त करने की प्रतिबद्धता में सफल नहीं रहा है।

क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क इंटरनेशनल की ग्लोबल पॉलिटिकल स्ट्रेटेजी प्रमुख हरजीत सिंह ने कहा, “यह साफ है कि पेरिस समझौता जलवायु संकट के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार जीवाश्म ईंधन को समान रूप से समाप्त करने में सफल नहीं रहा है।”

उन्होंने कहा कि हमें पेरिस समझौते के पूरक के रूप में जीवाश्म ईंधन संधि जैसे एक नए वैश्विक ढांचे की जरूरत है।

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