यूरोपियन क्लाइमेट एजेंसी के मुताबिक पहली बार ऐसा हुआ है कि पूरे एक साल वैश्विक औसत तापमान वृद्धि 1.5 डिग्री से ऊपर रही।
हालांकि इसका मतलब पेरिस संधि के तहत बताई गई 1.5 डिग्री तापमान सीमा को स्थाई रूप से पार होना नहीं माना जाएगा क्योंकि इसका अर्थ कई सालों तक दीर्घकालिक (long term) वॉर्मिंग से है।
यूरोपीय यूनियन के कॉपरनिक्स क्लाइमेट चेंज सर्विस ने भी कहा है कि जनवरी का तापमान धरती पर अब तक का सबसे अधिक रहा।
असल में पिछले साल जून के बाद हर महीना इसी तरह रिकॉर्ड गर्मी वाला रहा है। वैज्ञानिक अल नीनो — जो मध्य प्रशांत महासागर में असामान्य रूप से गर्म होने को दर्शाता है — और मानव जनित जलवायु परिवर्तन को इसकी वजह मानते हैं।
साल 2023 अब तक का सबसे गर्म साल रहा जिसमें प्री इंडस्ट्रियल स्तर की तुलना में औसत वैश्विक तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस के करीब वृद्धि हुई थी।
विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने दिसंबर में कहा था कि 2024 में हालात और भी बदतर हो सकते हैं क्योंकि ‘अल निनो आमतौर पर वैश्विक तापमान पर असर चरम पर पहुंचने के बाद डालता है’।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
कार्बनकॉपी हिंदी में आपका स्वागत है।
आपको यह भी पसंद आ सकता हैं
-
दिल्ली में बिगड़ी हवा: पटाखों पर प्रतिबंध, लागू हुआ जीआरएपी का पहला चरण
-
कॉप29: क्या बाकू के ‘एक्शन एजेंडा’ पर बनेगी आम सहमति?
-
भारत के 85% जिलों पर एक्सट्रीम क्लाइमेट का खतरा, उपयुक्त बुनियादी ढांचे की कमी
-
भारत के ‘चमत्कारिक वृक्षों’ की कहानी बताती पुस्तक
-
किसान आत्महत्याओं से घिरे मराठवाड़ा में जलवायु संकट की मार