भारत को 2030 तक 5 मिलियन टन ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन करने के लिए 125 गीगावाट अतिरिक्त अक्षय ऊर्जा क्षमता की जरूरत होगी।

सावधानी न बरती तो ग्रीन हाइड्रोजन प्रोजेक्ट से बढ़ेगा प्रदूषण: रिपोर्ट

एक ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि उचित सावधानियां नहीं बरती गईं तो भारत का ग्रीन हाइड्रोजन प्रोग्राम प्रदूषण की स्थिति को और बिगाड़ सकता है

क्लाइमेट रिस्क होरायज़न्स (सीआरएच) नामक थिंक-टैंक ने एक अध्ययन में कहा है कि भारत को 2030 तक 5 मिलियन टन ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन करने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए 125 गीगावाट अतिरिक्त अक्षय ऊर्जा क्षमता की जरूरत होगी। यह क्षमता उस 500 गीगावाट से अलग होगी जो भारत पेरिस समझौते के तहत 2030 तक स्थापित करने के लिए प्रतिबद्ध है।

साथ ही, ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन का लक्ष्य पूरा करने के लिए 250,000 गीगावाट-ऑवर यूनिट ऊर्जा के प्रयोग की जरूरत होगी, जो भारत के वर्तमान ऊर्जा उत्पादन का 13% है। इसका मतलब है कि ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन के लिए जितनी नवीकरणीय ऊर्जा की जरूरत है, उससे उपभोक्ताओं के लिए इसकी उपलब्धता कम होने का खतरा है।

अध्ययन के मुताबिक भारत को यह भी ध्यान रखना होगा कि जो फाइनेंस उसे पावर ग्रिड को डीकार्बनाइज़ करने के लिए मिल रहा है, उसका उपयोग ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन में न होने लगे। ऐसा करने से भारत अपने नेट जीरो लक्ष्य से पिछड़ जाएगा।

इस बात पर भी चिंता जताई गई है कि यदि पानी से हाइड्रोजन और ऑक्सीजन बनाने वाले इलेक्ट्रोलाइज़र्स 24 घंटे काम करेंगे, तो रात को उन्हें संचालित करने के लिए कहीं कोयला-जनित ऊर्जा का प्रयोग तो नहीं होगा? क्योंकि यदि ऐसा हुआ तो फिर ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन में कार्बन उत्सर्जन की मात्रा सरकार द्वारा तय की गई सीमा से अधिक हो सकती है।

साल में 25 गीगावाट की स्थापना का लक्ष्य, लेकिन 6 महीनों में जोड़े गए केवल 6.6 गीगावाट

वित्तीय वर्ष 2023-24 की पहली छमाही में देश में 6.6 गीगावाट नई अक्षय ऊर्जा क्षमता जोड़ी गई, जो पिछले वित्तीय वर्ष की पहली छमाही से कम है। यही नहीं, इस वित्तीय वर्ष में सरकार 25 गीगावाट क्षमता बढ़ाना चाहती है, लेकिन अबतक इसका एक चौथाई ही स्थापित हो पाया है।

हालांकि जानकारों का कहना है कि मार्च में सरकार ने जो हर साल 50 गीगावाट क्षमता की नीलामी करने की घोषणा की थी, उसके परिणाम जल्द ही देखने को मिलेंगे। क्योंकि नीलामी से लेकर क्षमता स्थापित किए जाने के बीच में थोड़ा समय लगता है। इस साल 13.1 गीगावाट की क्षमता नीलाम की जा चुकी है, जो पिछले वित्तीय वर्ष में नीलम की गई 9.9 गीगावाट की क्षमता से अधिक है।

इस वित्तीय वर्ष की पहली छमाही के दौरान जोड़ी गई 6.6 गीगावाट क्षमता में सौर ऊर्जा का योगदान 5 गीगावाट और पवन ऊर्जा का 1.55 गीगावाट है। पिछले वित्तीय वर्ष की पहली छमाही में 8.2 गीगावाट क्षमता जोड़ी गई थी, जो अब तक का सबसे बड़ा आकंड़ा है।

वित्तीय वर्ष 21, 22 और 23 में नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता में वृद्धि क्रमशः 7.4 गीगावाट, 15.5 गीगावाट और 15.3 गीगावाट रही है।

भारत का 29% भूभाग ही सौर उत्पादन के लिए उपयुक्त: स्टडी

भारत का केवल 29% भूभाग में ही अच्छी फोटो-वोल्टिक क्षमता, यानी सौर ऊर्जा का अच्छी तरह उपयोग करने की क्षमता है, आईआईटी दिल्ली के एक अध्ययन में यह बात सामने आई है। दिल्ली समेत उत्तर भारत के अधिकांश हिस्से सौर ऊर्जा स्थापना के लिए उपयुक्त नहीं हैं और इसकी मुख्य वजह वहां हवा में मौजूद प्रदूषक कण हैं।

अध्ययन में कहा गया है कि यह 29% भूभाग भी दिन-प्रतिदिन सिकुड़ता जा रहा है। साथ ही, देश का करीब 0.2 प्रतिशत भूभाग, जिसमें से अधिकांश उत्तर भारत में है, अपनी फोटो-वोल्टिक क्षमता खो रहा है, जिससे हर साल करीब 50 गीगावाट सौर ऊर्जा का उत्पादन किया जा सकता था।

‘इंडियाज़ फोटोवोल्टिक पोटेंशियल अमिड्स्ट एयर पॉल्यूशन एंड लैंड कंस्ट्रेंट्स’ नामक इस अध्ययन में कहा गया है कि केवल भूमि की उपलब्धता के आधार पर ही सौर पैनल स्थापित नहीं किए जा सकते। उस जगह की सौर ऊर्जा उत्पादन क्षमता को भी देखना होता है। सैटेलाइट डेटा का उपयोग करके पाया गया कि भारत में प्रभावी सौर उत्पादन के लिए केवल 29% भूभाग उपयुक्त है।

तमिलनाडु की सरकारी ऊर्जा कंपनी को नवीकरणीय स्रोतों से करना होगा 27% उत्पादन

तमिलनाडु इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी कमीशन (टीएनईआरसी) ने नवीकरणीय ऊर्जा खरीद के दायित्व (आरपीओ) को मौजूदा 21.8% से बढ़ाकर 27.08% कर दिया है। इसका अर्थ है कि सरकारी विद्युत् उत्पादक और वितरक कंपनी को कुल ऊर्जा का 27.08% नवीकरणीय स्रोतों से प्राप्त करना होगा।   

टीएनईआरसी ने सरकारी बिजली कंपनी तमिलनाडु जेनरेशन एंड डिस्ट्रीब्यूशन कारपोरेशन (टैंजेडको) को ऊर्जा भंडारण प्रणाली लागू करने का निर्देश दिया है। इस तरह का निर्देश पहली बार दिया गया है।

टैंजेडको के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “ऊर्जा मंत्रालय ने 2010 में इस मामले पर व्यापक दिशानिर्देश तैयार किए थे। वर्तमान में, आरपीओ का उद्देश्य 2030 तक नेट जीरो उत्सर्जन हासिल करना है।”

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