क्लाइमेट फाइनेंस पर जी20 का ठंडा रुख

जो बात अटपटी लगती है वह यह है कि घोषणापत्र में स्पष्ट रूप से जीवाश्म ईंधन से दूर जाने का समर्थन नहीं किया गया है, जो दर्शाता है कि जी20 देश वैश्विक जलवायु लक्ष्यों के लिए आवश्यक ऊर्जा बदलाव को पूरी तरह से अपनाने में झिझक रहे हैं।

ब्राज़ील में दुनिया की शीर्ष 20 अर्थव्यवस्थाओं के नेता जब अपनी प्राथमिकताएं तय करने के लिए मिले तो, कॉप29 के अध्यक्ष मुख्तार बाबायेव ने उनसे एक ‘सकारात्मक संदेश’ मांगा था। उन्हें एक संदेश मिला तो, लेकिन आधे-अधूरे मन से।

जी20 नेताओं द्वारा जारी संयुक्त घोषणा में कहा गया, ‘हम आशा करते हैं कि बाकू में एक न्यू कलेक्टिव क्वांटिफाइड गोल (एनसीक्यूजी) तय करने में सफलता मिलेगी। हम कॉप29 प्रेसीडेंसी को अपना समर्थन देने की प्रतिज्ञा करते हैं और बाकू में सफल वार्ता के लिए प्रतिबद्ध हैं।’

कॉप29 के अध्यक्ष ने बाकू में चल रही बातचीत को निर्देशित करने के लिए जिन स्पष्ट प्रतिबद्धताओं या संख्याओं की आशा की होगी, वह इस घोषणा से नदारद रहीं। पिछले साल नई दिल्ली में की गई घोषणा के विपरीत, दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं क्लाइमेट फाइनेंस पर विस्तृत वित्तीय प्रतिबद्धताओं या समयसीमा से खुद को दूर रखा।

इस घोषणा से जलवायु कार्यकर्ताओं के बीच चिंता बढ़ी है, लेकिन इसका कारण यह भी हो सकता कि जी20 देश पेरिस समझौते के तहत एक नया वार्षिक फाइनेंस लक्ष्य निर्धारित करने के लिए चल रही बातचीत में हस्तक्षेप करने से बचना चाहते हों।

पिछले साल नई दिल्ली की जी20 घोषणा इसके बिल्कुल विपरीत थी, जिसमें निजी क्षेत्र के निवेश को बढ़ाने के तरीकों के साथ क्लाइमेट फाइनेंस पर अधिक विस्तृत और मापने योग्य प्रतिबद्धताएं की गईं थीं।

फंडिंग पर अधिक स्पष्ट रुख से निश्चित रूप से साबित होता कि जी20 देश इस बारे में साहसिक कदम उठाने के पक्ष में हैं।

लेकिन यह भी अहम है कि इस साल का जी20 सम्मलेन बहुत अलग परिस्थितियों में आयोजित किया जा रहा है। सबका ध्यान यूक्रेन और फिलिस्तीन की ओर है, और फंडिंग भी उधर मोड़ दी गई है, साथ ही देशों के बीच आपसी विश्वास कम हुआ है और वैश्विक अर्थव्यवस्था 2008 के बाद से सबसे कमजोर स्थिति में है।

दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था (अमेरिका) के शीर्ष पद पर दो महीनों के भीतर एक ऐसा शख्स बैठेगा जो जलवायु परिवर्तन को हौव्वा कहता है और निवर्तमान नेतृत्व कोई मजबूत प्रतिज्ञा करने की स्थिति में नहीं है। इसके अलावा इस वर्ष लगभग 60 देशों में राष्ट्रीय चुनाव होने हैं जिनके कारण नेतृत्व परिवर्तन हो सकता है।

इस प्रकार में देखा जाए तो रियो डी जनेरियो में इस वर्ष की घोषणा में ठोस आंकड़े या समय-सीमाओं की अनुपस्थिति बेमानी नहीं लगती।

जी20 ने कमजोर देशों और हाशिए पर रहने वाले समुदायों के लिए समावेशी समर्थन सुनिश्चित करने के लिए ऐतिहासिक असमानताओं को संबोधित करते हुए सामाजिक न्याय की दृष्टि से क्लाइमेट फाइनेंस देने पर जोर दिया है।

और रियायती फाइनेंस पर ध्यान केंद्रित किया है, सबसे कम विकसित और जलवायु-संवेदनशील देशों में जलवायु परियोजनाओं के लिए अनुदान और रियायती ऋणों पर जोर देकर उन्हें कभी न ख़त्म होने वाले कर्ज के बोझ से बचाने का प्रयास किया है।

लेकिन जो बात अटपटी लगती है वह यह है कि घोषणापत्र में स्पष्ट रूप से जीवाश्म ईंधन से दूर जाने का समर्थन नहीं किया गया है, जो दर्शाता है कि जी20 देश वैश्विक जलवायु लक्ष्यों के लिए आवश्यक ऊर्जा बदलाव को पूरी तरह से अपनाने में झिझक रहे हैं। ऐसा प्रतीत होता है गरीबी कम करने और वैश्विक असमानता जैसे व्यापक आर्थिक और सामाजिक मुद्दों ने पर जी20 के सामने खड़ी विशिष्ट जलवायु प्रतिबद्धताओं पर ग्रहण लगा दिया है।

Archana Chaudhary
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