फोटो: UN Climate Change/Habib Samadov/UNFCCC/Flickr

बाकू में ग्लोबल नॉर्थ के देशों ने किया ‘धोखा’, क्लाइमेट फाइनेंस पर नहीं बनी बात, वार्ता असफल

भारत ने वार्ता के दस्तावेज़ को नकारते हुए इसे एक ‘प्रकाशीय भ्रम’ बताया है।

अज़रबैजान में क्लाइमेट फाइनेंस को लेकर आखिरकार कोई ठोस नतीजा नहीं मिल पाया हालांकि कार्बन मार्केट से संबंधित आर्टिकल 6 को शामिल किए जाने को कुछ प्रगति माना जा रहा है। फाइनेंस के मामले में जहां विकासशील देश जलवायु संकट के प्रभावों से निपटने के लिए प्रतिवर्ष 1.3 ट्रिलयन डॉलर का वादा चाहते थे वहीं विकसित देशों की ओर से 2035 तक 300 बिलियन डॉलर जुटाने का वादा किया गया जिसे विकासशील देशों और क्लाइमेट कार्यकर्ताओं ने बेहद निराशाजनक और मज़ाक बताया है। 

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुट्रिस ने कहा कि 1.5°C ग्लोबल वार्मिंग की चुनौती से लड़ने के लिए #COP29 पर एक समझौते पर पहुंचना आवश्यक था।

हमारे सामने खड़ी बड़ी चुनौती को पूरा करने के लिए मुझे वित्त और मिटिगेशन दोनों पर अधिक महत्वाकांक्षी परिणाम की उम्मीद थी, लेकिन जो समझौता हुआ वह एक आधार प्रदान करता है जिस पर निर्माण किया जा सकता है। इसका पूर्ण एवं समय पर सम्मान किया जाना चाहिए। मैं सरकारों से शीघ्रता से ऐसा करने की अपील करता हूं।

भारत सरकार ने वार्ता के फाइनल दस्तावेज़ को स्वीकारने से इनकार कर दिया। समाचार एजेंसी रॉयटर के मुताबिक भारतीय प्रतिनिधिमंडल की प्रतिनिधि चांदनी रैना ने समझौते की घोषणा के बाद शिखर सम्मेलन के समापन सत्र में कहा, “मुझे यह कहते हुए दुख हो रहा है कि यह दस्तावेज़ एक ऑप्टिकल भ्रम से ज्यादा कुछ नहीं है।” 

“यह, हमारी राय में, यह समस्या की गंभीरता को संबोधित नहीं करेगा।” हम सभी जिस चुनौती का सामना कर रहे हैं, हम इस दस्तावेज़ को अपनाने का विरोध करते हैं।”

इससे पहले भारत ने वार्ता के दौरान क्लाइमेट फाइनेंस को केवल मिटिगेशन तक सीमित किये जाने पर निराशा जताई थी। भारत ने कहा कि वार्ता की शुरुआत फाइनेंस के लिए नई प्रणाली एनसीक्यूजी (न्यू कलेक्टिव क्वांटिटेटिव गोल) को तय करने के लिए  लिए हुई थी लेकिन वार्ता में केवल मिटिगेशन पर जोर दिया जा रहा है जबकि इसके साथ पर्याप्त फाइनेंस की बात होनी चाहिए।  भारत क्लाइमेट फाइनेंस के लिए 1.3 ट्रिलियन डॉलर के लक्ष्य का समर्थन कर रहा है जिसका 600 बिलियन डॉलर ग्रांट (अनुदान) और इस तरह के अन्य सहयोग से दिया जाना चाहिए। 

महत्वपूर्ण है कि डोनाल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने के बाद वह अमेरिका को एक बार फिर से क्लाइमेट संधि से बाहर निकालने की बात कर रहे है जिस कारण कई विकसित देशों ने क्लाइमेट फाइनेंस को लेकर रुख और कड़ा कर लिया है फिर भी कुछ यूरोपीय देशों ने आशावाद दिखाने की कोशिश की। 

जर्मनी की क्लाइमेट दूत जेनिफर मॉर्गन ने कहा कि दुनिया अंतरराष्ट्रीय क्लाइमेट फाइनेंस  के लिए एक नए दृष्टिकोण पर सहमत हुई जो एक आदर्श बदलाव है और यह विकासशील देशों के लिए जलवायु वित्त को बढ़ाएगा। मॉर्गन ने कहा, “अब हमें 2035 तक क्लाइमेट एक्शन के लिए विकासशील देशों को 1.3 ट्रिलियन तक फाइनेंस बढ़ाने के दृष्टिकोण के पीछे सभी को शामिल करने की आवश्यकता है। एक ऐसा दृष्टिकोण जो यथार्थवादी है यदि सभी वित्तीय पक्ष इसके पीछे जुट जाएं।”
क्लाइमेट कार्यकर्ताओं ने बाकू सम्मेलन के घोषणापत्र को एक “धोखा” करार दिया है। क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क (सीएएन) ने अपने बयान में कहा है कि संगठन इसे पूरी तरह से नकारता है। सीएएन के मुताबिक इस वार्ता को फाइनेंस समिट के रूप में क्रियान्वित होना था लेकिन ग्लोबल नॉर्थ के देशों ने ग्लोबल साउथ के साथ धोखा किया और उनके खिलाफ यह लड़ाई जारी रहेगी।

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