जीवाश्म ईंधन के लिए दी जा रही खरबों डॉलर की सब्सिडी पर्यावरण के विनाश का कारण बन रही है, तथा लोगों और धरती को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा रही है, विश्व बैंक ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है।
डिटॉक्स डेवलपमेंट के नाम से जारी की गई इस रिपोर्ट में कहा गया है कि कई देश इस हानिकारक सब्सिडी पर स्वास्थ्य, शिक्षा या गरीबी उन्मूलन की तुलना में अधिक खर्च करते हैं। चूंकि इस सब्सिडी सबसे बड़े लाभार्थी अमीर और शक्तिशाली लोग हैं, इसमें सुधार करना भी कठिन है।
रिपोर्ट ने कहा कि सब्सिडी में सुधार से जलवायु संकट से लड़ने के लिए महत्वपूर्ण वित्त उपलब्ध होगा।
रिपोर्ट के अनुसार, प्रति वर्ष कम से कम 7.25 ट्रिलियन डॉलर इस तरह की सब्सिडी पर खर्च किए जाते हैं। इनमें सरकारों द्वारा दी गई सब्सिडी 1.25 ट्रिलियन डॉलर प्रति वर्ष है। इसमें टैक्स माफी और ग्लोबल वार्मिंग और वायु प्रदूषण से होने वाले नुकसान की लागत भी जोड़ी जाए तो इस सब्सिडी का आंकड़ा 23 मिलियन डॉलर प्रति मिनट तक पहुंच जाता है। विश्व बैंक के हिसाब से यह अनुमान भी कम है।
तेल और गैस के इस बढ़ते प्रयोग के विरुद्ध संघर्ष करने वाली संस्था जस्ट स्टॉप ऑयल के प्रदर्शनकारियों ने पिछले दिनों ईस्ट ससेक्स के ग्लाइंडबॉर्न ओपेरा उत्सव के दौरान शो को बाधित कर विरोध जताया। जस्ट स्टॉप ऑयल ने अपने बयान में कहा कि तीन प्रदर्शनकारियों ने कार्यक्रम को बाधित बताया कि तेल और गैस हमारे अस्तित्व के लिए खतरा हैं, फिर भी हमारी सरकारें इन्हें बढ़ावा देना चाहती हैं।
कोयले की ढुलाई से रेलवे को हुआ रिकॉर्ड मुनाफा
भारतीय रेलवे ने पिछले वित्तीय वर्ष (2022-23) में अपनी माल ढुलाई सेवाओं से रिकॉर्ड कमाई दर्ज की, जिसमें से अधिकांश राजस्व कोयले की ढुलाई से आया। ऐसे में सवाल उठता है कि रेलवे की कमाई का यह जरिया कितना स्थिर है, क्योंकि भारत जलवायु परिवर्तन से निबटने के लिए कार्रवाई कर रहा है, और 2070 तक देश को नेट जीरो उत्सर्जन हासिल करना है। जिसका अर्थ होगा कोयले में भारी कटौती।
लेकिन 2012-13 से 2021-22 तक 10 साल की अवधि में, रेलवे के राजस्व में कोयले का योगदान 43 प्रतिशत से बढ़कर 47 प्रतिशत से अधिक हो गया है। आंकड़ों से पता चलता है कि कोयला एकमात्र प्रमुख वस्तु है जिसकी ढुलाई से राजस्व में महत्वपूर्ण वृद्धि देखी गई है।
ऐसे में विशेषज्ञों का कहना है कि स्वच्छ ऊर्जा पर बढ़ते जोर के बावजूद, कोयला न केवल रेलवे, बल्कि पूरे लॉजिस्टिक्स क्षेत्र के कार्गो में प्रमुखता से मौजूद रहेगा।
केवल उत्सर्जन ही नहीं, जीवाश्म ईंधन को भी करें फेजआउट: गुटेरेश
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेश ने कहा है कि देशों को केवल उत्सर्जन ही नहीं बल्कि तेल, कोयला और गैस को ही चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना शुरू करना चाहिए। उन्होंने जीवाश्म ईंधन कंपनियों से कहा कि जलवायु परिवर्तन से लड़ने के प्रयासों की प्रगति में बाधा डालना बंद करें।
गुटेरेस ने कहा, “समस्या केवल उत्सर्जन नहीं है, बल्कि जीवाश्म ईंधन ही समस्या है। इस समस्या का समाधान स्पष्ट है: दुनिया को जीवाश्म ईंधन को उचित और न्यायसंगत तरीके से समाप्त करना चाहिए।”
गुटेरेश का बयान कॉप28 के मेजबान संयुक्त अरब अमीरात के प्रस्ताव के जवाब में आया जिसमें कहा गया था कि इस साल के अंत में होने वाली इस शिखर वार्ता में उत्सर्जन को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए, न कि जीवाश्म ईंधन को समाप्त करने पर। 30 नवंबर से शुरू होने वाले कॉप28 के एजेंडे पर एकमत होने के लिए वार्ताकार अभी भी संघर्ष कर रहे हैं, जिससे बातचीत खतरे में पड़ सकती है।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव इससे पहले भी विकसित देशों को 2030 और विकासशील देशों को 2050 तक नेट जीरो तक पहुंचने का प्रयास करने का अनुरोध कर चुके हैं।
नए कोयला संयंत्र लगाने की बजाए अधिग्रहण का रास्ता अपनाए एनटीपीसी: रिपोर्ट
इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस की एक रिपोर्ट के अनुसार, एनटीपीसी को नए कोयला आधारित थर्मल पावर प्लांट बनाने के बजाय वित्तीय संकट से जूझ रहे थर्मल प्लांटों का अधिग्रहण करना चाहिए। इससे देश की अल्पकालिक ऊर्जा सुरक्षा जरूरतें भी पूरी होंगी और ऋणदाताओं, मुख्य रूप से सरकारी बैंकों, की बैलेंस शीट में सुधार होगा।
2022 में जारी सरकारी निर्देशों के आधार पर, भारत की सबसे बड़ी बिजली उत्पादक एनटीपीसी ने देश की बढ़ती ऊर्जा आवश्यकता को पूरा करने के लिए अपनी थर्मल पावर क्षमता को 7 गीगावॉट तक बढ़ाने की योजना बनाई है।
हालांकि, आईईईएफए का सुझाव है कि नए थर्मल पावर प्लांट बनाने की बजाय, एनटीपीसी को वित्तीय संकट से जूझ रहे बिजली संयंत्रों का अधिग्रहण करना चाहिए। विश्लेषण में ऐसे छह संयंत्रों की सूची भी है। इन छह संयंत्रों की संयुक्त क्षमता 6.1 गीगावाट है, जो कई उद्देश्यों को पूरा करेगी — देश की अल्पकालिक ऊर्जा जरूरतें पूरी होंगी, एनटीपीसी नए इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण से बचेगी और हरित क्षेत्र में कंपनी की ब्रांड वैल्यू मजबूत होगी।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
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