कोयला आयात 7.9% गिरा, उत्पादन में 5% की वृद्धि

भारत का कोयला आयात वित्तीय वर्ष 2024-25 में 7.9 प्रतिशत घटकर 243.62 मिलियन टन (एमटी) रह गया, जो पिछले वर्ष 264.53 एमटी था। इससे लगभग $7.93 बिलियन (60,681.67 करोड़ रुपए) की बचत हुई, ईटी ने कोयला मंत्रालय के आंकड़ों के हवाले से बताया।

नॉन-रेगुलेटेड सेक्टर में आयात में पिछले साल की अपेक्षा 8.95% की गिरावट दर्ज की गई। इस सेक्टर में बिजली उत्पादन के लिए प्रयोग में आनेवाला कोयला शामिल नहीं होता।

वहीं, कोयला आधारित बिजली उत्पादन में वित्तीय वर्ष 2023-24 की तुलना में वित्तीय वर्ष 2024-25 में 3.04% की वृद्धि हुई। हालांकि, थर्मल पॉवर संयंत्रों द्वारा मिश्रण  के लिए किया गया कोयला आयात 41.4% तक घट गया।

सरकार ने कोयला आयात में इस गिरावट का श्रेय “कमर्शियल कोल माइनिंग” और “मिशन कोकिंग कोल” जैसी पहलों को दिया है, जिनका उद्देश्य घरेलू उत्पादन बढ़ाना और आयातित कोयले पर निर्भरता कम करना है। बीते वित्तीय वर्ष में कोयला उत्पादन पिछले साल की तुलना में 5% बढ़ा।

कोयला अब भी भारत के बिजली, इस्पात और सीमेंट क्षेत्रों के लिए प्रमुख ऊर्जा स्रोत बना हुआ है। हालांकि घरेलू उत्पादन में वृद्धि हुई है, फिर भी भारत उच्च गुणवत्ता वाले थर्मल कोल और कोकिंग कोल के लिए आयात पर निर्भर है, जो देश में सीमित मात्रा में उपलब्ध हैं।

रूसी तेल की मांग बढ़ी; भारत का आयात 10 महीनों के उच्चतम स्तर पर

भारत का रूसी कच्चे तेल का आयात मई में लगभग 1.8 मिलियन बैरल प्रति दिन तक पहुंच जाएगा, जो 10 महीनों का उच्चतम स्तर है। रायटर्स ने केप्लर के शिप ट्रैकिंग डेटा के हवाले से रिपोर्ट किया कि रिफाइनरियों ने ईएसपीओ ब्लेंड जैसे हल्के ग्रेड्स की जमकर खरीदारी की है। व्यापारियों के अनुसार, इन हल्के रूसी ग्रेड्स की मजबूत मांग जुलाई तक बनी रहने की संभावना है, क्योंकि भारतीय रिफाइनरियों ने पिछले सप्ताह में ईएसपीओ क्रूड के 10 से अधिक शिपमेंट के आदेश दिए हैं, जो जून में लोड होने वाले हैं।

ये खरीदारी यूरोपीय संघ और ब्रिटेन द्वारा रूस के “शैडो फ्लीट” और वित्तीय कंपनियों पर लगाए गए नए प्रतिबंधों से पहले की गई थी।

वैश्विक ब्लास्ट फर्नेस विस्तार में भारत की हिस्सेदारी 57%

दुनिया में स्टील उत्पादन को हरित (ग्रीन) बनाने में भारत की अहम भूमिका होगी। नए कोल-आधारित ब्लास्ट फर्नेस की जो क्षमता बन रही है, उसमें 57% हिस्सा भारत का है, हालांकि इलेक्ट्रिक आर्क फर्नेस तकनीक का इस्तेमाल बढ़ने की भी उम्मीद है। 

ज्यादा प्रदूषण करने वाले ब्लास्ट फर्नेस 2030 तक स्टील उत्पादन में अग्रणी रहेंगे। ब्लास्ट फर्नेस क्षमता में 7% की वृद्धि के साथ यह कुल वैश्विक उत्पादन का 64% हिस्सा बनाए रखेगी।

भारत और चीन मिलकर 303 मिलियन टन नई ब्लास्ट फर्नेस क्षमता बना रहे हैं। स्टील उत्पादन से दुनियाभर का लगभग 11% ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन होता है। 2030 तक स्टील की मांग 2 अरब टन से ज़्यादा होगी। विशेषज्ञों का कहना है कि भारत के फैसले स्टील उद्योग का हरित भविष्य तय करेंगे। एक विशेषज्ञ ने भारत को “ग्लोबल स्टील डीकार्बोनाइजेशन का संकेतक” कहा है।

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