आपदायें और चेतावनी: साल 2021 ने दिखा दिया कि आपदायें प्राकृतिक से अधिक मानव जनित हैं। फोटो: Mongabay India

बाढ़, चक्रवाती तूफान और जंगलों की आग, एक्सट्रीम वेदर की मार छाई रही 2021

साल 2021 की शुरुआत स्पेन में रिकॉर्ड शीतलहर के साथ हुई। स्पेन में कई दशकों में ऐसा हिमपात हुआ। कई सालों बाद जम्मू-कश्मीर में ऐसी कड़ाके की ठंड देखने को मिली। साल की शुरुआत में जापान स्थित  रिसर्च इंस्टिट्यूट फॉर ह्यूमेनिटी एंड नेचर ने एक अध्ययन में बताया कि देश के सबसे अमीर 20% लोगों का कार्बन फुट प्रिंट गरीबों (₹140 प्रतिदिन से कम कमाने वाले) की तुलना में सात गुना अधिक है। काफी कम है। 

फरवरी में उत्तराखंड के चमोली में अचानक बाढ़ आ गई। पहले लगा कि यह बाढ़ एक ग्लेशियल झील के टूटने से आई लेकिन बाद में जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (जीएसआई) की एक स्टडी से पता चला कि  पता चला कि रोंठीगाड़ से एक चट्टान और बर्फ का एक विशाल टुकड़ा टूटकर ऋषिगंगा में गिरने से ये आपदा हुई। मौसमविज्ञानियों का कहना है कि  4 से 6 फरवरी के बीच पहले भारी बर्फबारी और फिर तेज़ धूप इस एवलांच का कारण हो सकता है। 

इस साल एक बार फिर उत्तरी गोलार्ध में भी दक्षिणी गोलार्ध की तरह ही जलवायु परिवर्तन का असर दिखा। फरवरी के अंत में एक बर्फीले तूफान ने दक्षिणी और मध्य अमेरिका के कई हिस्सों को जमा दिया। टैक्सस में विशेष रूप से बहुत ठंड (एक्सट्रीम कोल्ड) की स्थिति रही। यहां तापमान -2 डिग्री से -22 डिग्री के बीच रहा। बिजली सप्लाई पर असर पड़ा और नागरिकों से घरों में रहने को कहा गया। फिर जून जुलाई में पैसेफिक उत्तर-पश्चिम में ज़बरदस्त लू चली जिसका असर 5 करोड़ लोगों पर पड़ा। साल्ट लेक सिटी में तापमान 42 डिग्री सेंटीग्रेट तक पहुंच गया। ऐसा पिछले 147 सालों में केवल दूसरी बार हुआ। पश्चिम जर्मनी में रिकॉर्ड बारिश से आई बाढ़ के कारण कम से कम 220 लोगों की जान चली गई। इसके बाद हुये एक अध्ययन में कहा गया है कि यहां बाढ़ की संभावना अब करीब 9 गुना बढ़ गई है। 

जंगलों की आग का कहर 2021 में जारी रहा। खासतौर से साइबेरिया, अमेरिका और टर्की में।एक स्टडी में पाया गया कि इन आग की घटनाओं से कुल 176 करोड़ टन कार्बन इमीशन हुआ जो कि जर्मनी के सालाना उत्सर्जन का दो गुना है और पूरे यूरोपियन यूनियन के उत्सर्जन  के 50% के बराबर है।  

इन्हीं महीनों में के दौरान भारत में हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र और गोवा में भूस्खलन होने, बाढ़ आने और बादल फटने जैसी घटनाओं से 164 लोगों की मौत हो गई। पश्चिमी तट पर – खासतौर से महाराष्ट्र और गुजरात में –  ताउते चक्रवात के कारण भारी तबाही हुई। करीब 160 किलोमीटर प्रतिघंटा के रफ्तार से हवायें चलीं और 50 से अधिक लोग इसके कारण मारे गये। वैज्ञानिकों ने चक्रवात की इस तीव्रता के पीछ जलवायु परिवर्तन को एक वजह बताया है। पूर्वी समुद्र तट पर चक्रवात यास के कारण उड़ीसा, पश्चिम बंगाल और झारखंड में 14 लोगों की जान गई। जानकार कहते हैं कि भारत के आसपास समुद्र में हाल के समय में सामान्य से अधिक तापमान रिकॉर्ड किया गया है। 

अगस्त में इंटरगवर्मेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज यानी आईपीसीसी की रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि अब धरती की तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री की सीमा में नहीं रोका जा सकता। रिपोर्ट कहती है कि इतनी तापमान वृद्धि अगले दो दशकों में हो जायेगी। भारत में साल का अन्त खूब बारिश से हुआ। एक से 25 नवंबर के बीच दक्षिण पश्चिम मॉनसून के कारण सामान्य से 143.4% अधिक बारिश रिकॉर्ड की गई।

+ posts

दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
कार्बनकॉपी हिंदी में आपका स्वागत है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.