डच राजनेता वोपके होकेस्ट्रा को यूरोपीय संघ का जलवायु प्रमुख चुने गए हैं। होकेस्ट्रा ने विमान के ईंधन समेत जीवाश्म ईंधन पर वैश्विक टैक्स लगाने का प्रस्ताव रखा है। उन्होंने कहा है कि इस टैक्स से लॉस एंड डैमेज फंड के लिए आवश्यक वित्त पैदा किया जा सकता है।
होकेस्ट्रा ने कहा कि यह अजीब है कि वाहनों की रीफ्यूलिंग पर 50-60 प्रतिशत टैक्स लगता है जबकि विमानों की रीफ्यूलिंग पर कोई टैक्स नहीं लगता।
दिलचस्प है कि होकेस्ट्रा पहले तेल की बड़ी कंपनी शेल से जुड़े रहे हैं, लेकिन उन्होंने कहा कि जीवाश्म ईंधन का प्रयोग जितनी जल्दी बंद कर दिया जाए उतना अच्छा होगा।
हालांकि जानकारों का कहना है कि होकेस्ट्रा के प्रस्ताव को बड़े पैमाने पर देशों का समर्थन मिलना मुश्किल है।
पर्यावरण को क्षति पहुंचाने वाली सब्सिडी के खिलाफ बोले विश्व बैंक प्रमुख
विश्व बैंक के अध्यक्ष अजय बंगा ने कृषि, जीवाश्म ईंधन और मछली पालन समेत कई क्षेत्रों में दी जा रही सब्सिडी को घटाने की अपील की है। माराकेश (मोरक्को) में विश्व बैंक और आईएमएफ की एक प्रेस वार्ता में बंगा ने कहा कि पूरी दुनिया में सरकारें कुल 1.25 लाख करोड़ डॉलर मूल्य की सब्सिडी इन क्षेत्रों में दे रही है जिसके कारण कुल 5 से 6 लाख करोड़ डॉलर मूल्य के पर्यावरणीय प्रभाव होते हैं।
जलवायु परिवर्तन प्रभावों से लड़ने के लिए फंड की ज़रूरत है। बंगा ने कहा कि सभी सब्सिडी बंद नहीं की जा सकती क्योंकि सामाजिक सरोकारों के लिए कुछ सब्सिडी ‘मिशन-क्रिटिकल’ हैं लेकिन सरकारों द्वारा सवा लाख करोड़ डॉलर की सब्सिडी को जायज़ नहीं ठहराया जा सकता।
जलवायु परिवर्तन विशेषज्ञों का कहना है कि बंगा ने जो कहा वह दिशा तो ठीक है लेकिन किसकी सब्सिडी कितनी कम होनी चाहिए यह महत्वपूर्ण मुद्दा है जो समता और समानता (इक्विटी) के सिद्धांत से भी जुड़ा है।
क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क में ग्लोबल राजनीतिक रणनीति के प्रमुख हरजीत सिंह कहते हैं, “गरीबों और किसानों को मिल रही सब्सिडी को विकासशील देशों में नहीं हटाया जा सकता उनको कुछ ना कुछ सहयोग देना ही होगा और यह बात काफी हद तक अब विकसित देशों के लिए भी सही है क्योंकि बढ़ते एनर्जी प्राइस के कारण कॉस्ट ऑफ लिविंग काफी बढ़ गई है।”
सिंह ने कहा, “हमें यह देखना चाहिए कि जो बड़ी कॉरपोरेशन्स हैं, विशेष रूप से तेल और गैस कंपनियां, वे इन सब्सिडीज से भरपूर मुनाफा कमा रही हैं और क्लाइमेट एक्शन के लिए तैयार नहीं है। समस्या को हल करने के लिए उसे पहचानना और तह तक जाना ज़रूरी है।”
जलवायु परिवर्तन: 15 सालों बाद भी तैयार नहीं हैं कई राज्यों के एक्शन प्लान
केंद्र सरकार द्वारा जलवायु परिवर्तन पर विशेषज्ञ समिति (ईसीसीसी) की स्थापना के 15 साल बाद भी कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने अनुकूलन और शमन के लिए कोई रोडमैप तैयार नहीं किया है, सूचना के अधिकार (आरटीआई) से प्राप्त जानकारी में यह पता चला है।
साल 2007 में तत्कालीन केंद्र सरकार ने ईसीसीसी का गठन किया था और उसके अगले साल एक राष्ट्रीय एक्शन प्लान जारी किया था। 2009 में केंद्र ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से राज्य-स्तरीय एक्शन प्लान (एसएपीसीसी) बनाने के लिए कहा था। तबसे लेकर ईसीसीसी की 12 बैठकें हो चुकीं हैं, और पिछली आठ बैठकों के विवरण से पता चलता है कि ज्यादातर राज्यों में इन नीतियों लेकर स्पष्टता नहीं है, और जिन्होंने ऐसी नीतियां बनाई भी हैं उनके मसौदे अभी तक लंबित हैं। कर्नाटक का एक्शन प्लान पिछले दो साल से समिति के पास लंबित है। वहीं गुजरात, तमिलनाडु, गोवा, ओडिशा, हिमाचल प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्य 2014 में जारी दिशानिर्देश अभीतक नहीं अपनाए हैं।
पिछले महीने 21 सितंबर को हुई बैठक में समिति ने राज्यों को फिर से इन दिशानिर्देशों की याद दिलाई।
भारत के सेमीकंडक्टर हब बनने की योजना पर जलवायु आपदा का खतरा: मूडीज़
दुनिया में बढ़ते राजनैतिक तनाव के कारण पश्चिमी देश चीन से दूरी बना रहे हैं। ऐसे में भारत अपने आप को इलेक्ट्रॉनिक मैन्युफैक्चरिंग के एक “भरोसेमंद” विकल्प के रूप में पेश किया है। इसी दिशा में भारत ने घरेलू सेमीकंडक्टर निर्माण उद्योग को बढ़ावा देने की योजना बनाई है। लेकिन रेटिंग एजेंसी मूडीज़ के रिस्क मैनेजमेंट सोल्युशन ने कहा है कि जलवायु परिवर्तन से भारत की योजनाएं खटाई में पड़ सकती हैं।
मूडीज़ ने एक ब्लॉग में कहा है कि भारत सेमीकंडक्टर निर्माण में आत्मनिर्भरता लाने की नीतियों पर काम कर रहा है, लेकिन 2050 तक देश में बाढ़ का खतरा दोगुना बढ़ जाएगा। सेमीकंडक्टर इस समय वैश्विक बाजार में सबसे महत्वपूर्ण वस्तुओं में से एक हैं। यदि इनकी आपूर्ति ठप होती है कारों से लेकर कम्प्यूटरों तक की प्रोडक्शन लाइनें रुक जाएंगीं।
अमेरिकी चिप निर्माता माइक्रोन ने 23 सितंबर को गुजरात के साणंद औद्योगिक क्षेत्र में 2.75 अरब डॉलर के सेमीकंडक्टर परीक्षण और पैकेजिंग संयंत्र के पहले चरण का निर्माण शुरू किया है।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
कार्बनकॉपी हिंदी में आपका स्वागत है।
आपको यह भी पसंद आ सकता हैं
-
बाकू सम्मेलन: राजनीतिक उठापटक के बावजूद क्लाइमेट-एक्शन की उम्मीद कायम
-
क्लाइमेट फाइनेंस पर रिपोर्ट को जी-20 देशों ने किया कमज़ोर
-
महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में खनन के लिए काटे जाएंगे 1.23 लाख पेड़
-
अगले साल वितरित की जाएगी लॉस एंड डैमेज फंड की पहली किस्त
-
बाकू वार्ता में नए क्लाइमेट फाइनेंस लक्ष्य पर नहीं बन पाई सहमति