भारत का ग्रीन कवर बढ़कर 25% हुआ, लेकिन चिंताएं बरकरार: रिपोर्ट

भारत का कुल वन और ट्री कवर देश के भूमि क्षेत्र का 25.17 प्रतिशत हो गया है। यह वृद्धि विभिन्न सरकारी कार्यक्रमों और ग्रीन एरिया का विस्तार करने के प्रयासों के कारण हुई है। हालांकि, पर्यावरण मंत्रालय के आंकड़ों का ज़िक्र करते हुए हिंदुस्तान टाइम्स ने एक रिपोर्ट में बताया कि अभी भी चिंताएं गंभीर हैं। एचटी ने पहले रिपोर्ट किया था कि भले ही कुल ग्रीन कवर बढ़ रहा हो, 2023 की इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट (आईएसएफआर) गंभीर मुद्दों की ओर इशारा करती है।

इन मुद्दों में प्राकृतिक जंगलों के बड़े हिस्से का नुकसान, मानव निर्मित बागानों में वृद्धि, और “अवर्गीकृत जंगलों” पर स्पष्टता की कमी शामिल हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि ये बदलाव कई तरह से पर्यावरण को नुकसान पहुंचा सकते हैं। वे जैव विविधता को कम कर सकते हैं, उन समुदायों को प्रभावित कर सकते हैं जो आहार और आजीविका के लिए जंगलों पर निर्भर हैं, और पुराने प्राकृतिक जंगलों से होने वाले लाभों जैसे स्वच्छ हवा, जल विनियमन और जलवायु सुरक्षा को कमजोर करते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना सरकार को लगाई फटकार, पेड़ों की कटाई को बताया “पूर्व-नियोजित”

सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना सरकार को कड़ी फटकार लगते हुए कहा है कि हैदराबाद विश्वविद्यालय के आसपास पेड़ों की कटाई “पूर्व-नियोजित” प्रतीत होती है, और यदि जंगलों को बहाल नहीं किया गया तो अधिकारियों को जेल हो सकती है। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने सवाल किया कि लॉन्ग वीकेंड, जब अदालतों की छुट्टी थी, तो इस बात का फायदा उठाते हुए पेड़ क्यों काटे गए।

कार्रवाई को “पूर्व-नियोजित” बताते हुए अदालत ने चेतावनी दी कि यदि जंगल बहाल नहीं किया जाता है तो मुख्य सचिव सहित राज्य के शीर्ष अधिकारियों को जेल की हवा खानी पड़ सकती है। अदालत ने कहा कि पेड़ों की कटाई दर्जनों बुलडोजर का उपयोग करके उचित अनुमतियों के बिना की गई थी। हालांकि राज्य सरकार ने दावा किया कि उसने अदालत के आदेशों के अनुपालन करते हुए ही यह कदम उठाया था। सरकार ने वन बहाली की कोई स्पष्ट योजना की भी पेशकश नहीं की। शीर्ष अदालत में 23 जुलाई को फिर से मामले की सुनवाई होगी।

क्लाइमेट चेंज के कारण जरूरी है सिंधु  जल समझौते की समीक्षा: विशेषज्ञ

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकवादी हमले के बाद भारत ने 1960 में हुआ सिंधु जल समझौता स्थगित कर दिया है। लेकिन हालिया अध्ययनों और जानकारों की राय है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के कारण संधि की समीक्षा करने की जरूरत है।

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, ग्लेशियोलॉजिस्ट अनिल वी कुलकर्णी का कहना है कि भारत की पूर्वी नदियां — रावी, ब्यास और सतलुज — जिन ग्लेशियरों से निकलती हैं वह अधिक तेजी से पिघल रहे हैं। इसकी तुलना में पाकिस्तान में बहने वाली पश्चिमी नदियों का पानी जिन ग्लेशियरों से आता है वह काराकोरम रेंज में अधिक ऊंचाई पर स्थित हैं और इसलिए उनके पिघलने की रफ़्तार कम है। इस कारण से पूर्वी नदियों में अस्थाई रूप से पानी की मात्रा बढ़ सकती है, जिसके बाद तेजी से पानी की उपलब्धता में गिरावट होगी।

कुलकर्णी ने कहा कि तापमान, रनऑफ पैटर्न (बारिश, बर्फ या ग्लेशियर के पिघलने से पानी का बहना और नदियों, झीलों या समुद्र में पहुंचना) और ग्लेशियर स्टोरेज में बदलाव से पानी की उपलब्धता प्रभावित होगी। इससे संधि में दोनों देशों को मूल रूप से आवंटित पानी की हिस्सेदारी में भी परिवर्तन होगा, जो नदियों के स्थिर प्रवाह और पुराने आकलनों पर आधारित था।

इस कारण से सिंधु समझौते के अंतर्गत मुख्य रूप से भारत को आवंटित पूरी नदियां 2030 तक अपने बहाव के उच्चतम स्तर तक पहुंच जाएंगी, जिसके बाद यह घटने लगेंगी। वहीं मुख्य रूप से पाकिस्तान को आवंटित पश्चिमी नदियां 2070 तक अपने बहाव के उच्चतम पर पहुंचेंगी। इस स्थिति में पानी के न्यायसंगत बंटवारे के लिए संधि की समीक्षा जरूरी है।

क्लाइमेट चेंज के लिए कंपनियों पर कार्रवाई रोकने के लिए ट्रंप प्रशासन ने राज्यों पर किया मुकदमा

अमेरिका के जस्टिस डिपार्टमेंट ने जीवाश्म ईंधन कंपनियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई को अवरुद्ध करने के लिए अपने ही देश के दो राज्यों पर मुकदमे दायर किए हैंद गार्डियन की रिपोर्ट के अनुसार, हवाई और मिशिगन ने जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान के लिए बड़ी तेल और गैस कंपनियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने की योजना बनाई थी। ट्रंप प्रशासन का दावा है कि क्लीन एयर एक्ट के मुताबिक केवल संघीय संस्था एनवायरमेंटल प्रोटेक्शन एजेंसी (ईपीए) के पास यह अधिकार है कि वह ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को विनियमित करे, और राज्य अपनी ओर से मुकदमे दायर नहीं कर सकते। कानूनी जानकार इन मुकदमों को अभूतपूर्व बताते हुए कहते हैं कि यह पर्यावरणीय जवाबदेही तय करने के प्रयासों के खिलाफ ट्रंप प्रशासन के आक्रामक रुख का एक और संकेत है।

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