फोटो: Shailendra Kotian/Pixabay

दक्षिण-पश्चिन मॉनसून इस साल जल्दी पहुंच रहा है, खरीफ की बंपर फ़सल की उम्मीद बढ़ी

दक्षिण-पश्चिम मॉनसून अपने निर्धारित समय (21 मई) से एक सप्ताह पहले अंडमान सागर, दक्षिणी बंगाल की खाड़ी और अंडमान और निकोबार द्वीप के कुछ हिस्सों में प्रवेश कर गया। निकोबार द्वीप समूह के कुछ स्थानों पर मध्यम से भारी वर्षा दर्ज की गई, साथ ही पिछले दो दिनों में बंगाल की खाड़ी के दक्षिणी भाग, निकोबार द्वीप समूह और अंडमान सागर में पश्चिमी हवाओं की तीव्रता बढ़ गई। 

मौसम विभाग ने कहा कि मानसून 27 मई को केरल के तट पर पहुंचेगा। मॉनसून का यह आगमन सामान्य से 5 दिन जल्दी है और यह पिछले 5 वर्षों में मॉनसून का सबसे शीघ्र आगमन है। इससे  चावल, मक्का और सोयाबीन जैसी फसलों की बंपर पैदावार की उम्मीद बढ़ गई है। 

मॉनसून भारत की 4 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था की जीवनरेखा है मॉनसून, खेतों को पानी देने और जलभृतों और जलाशयों को रिचार्ज करने के लिए आवश्यक लगभग 70% बारिश प्रदान करता है। भारत की लगभग आधी कृषि भूमि, बिना किसी सिंचाई कवर के, कई फसलों को उगाने के लिए वार्षिक जून-सितंबर की बारिश पर निर्भर करती है।

मानसून के आगमन का पूर्वानुमान छह प्रमुख पूर्वानुमानों पर निर्भर करता है: उत्तर-पश्चिम भारत में उच्च न्यूनतम तापमान, दक्षिणी प्रायद्वीप में मानसून-पूर्व वर्षा का चरम, सबट्रॉपिकल  उत्तर-पश्चिमी प्रशांत महासागर में समुद्र तल का औसत दबाव, दक्षिण चीन सागर में बाहर जाने वाली दीर्घ-तरंग विकिरण ( यह विकिरण वायुमंडल द्वारा अंतरिक्ष में जाने वाला कुल विकिरण या बादलों की सीमा है), तथा उत्तर-पूर्वी हिंद महासागर और इंडोनेशिया क्षेत्र में हवा का पैटर्न।

इस सीज़न में दक्षिण-पश्चिम मानसून सामान्य से अधिक रहने की उम्मीद है, मात्रात्मक रूप से दीर्घ अवधि औसत (880 मिमी) का 105 प्रतिशत। मौसम विभाग ने अप्रैल में कहा था कि कुल मिलाकर, मानसून की बारिश पूर्वोत्तर और तमिलनाडु को छोड़कर देश के बड़े हिस्सों में सामान्य या सामान्य से अधिक रहने की उम्मीद है।

गुजरात में भारी बारिश के कारण कम से कम 14 लोगों की मौत

मई के पहले हफ्ते 4 और 5 तारीख को पश्चिमी राज्य गुजरात में भारी प्री-मानसून बारिश के कारण कम से कम 14 लोगों की मौत हो गई और 16 अन्य घायल हो गए। समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने राज्य के अधिकारियों के हवाले से यह जानकारी दी। मौसम विभाग के अनुसार, राज्य के अधिकांश हिस्सों में बेमौसम बारिश पड़ोसी पाकिस्तान और भारत के राजस्थान में चक्रवाती परिसंचरण के कारण हुई।

बीते 12 महीनों में वैश्विक तापमान 1.58 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचा 

नए आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले 22 महीनों में से 21 महीनों में मासिक औसत वैश्विक तापमान “1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि स्तर” से ऊपर रहा। लंदन के अखबार FT के मुताबिक यूरोपीय ग्रहीय डेटा सेवा कोपरनिकस ने पाया है कि अप्रैल 2025 में औसत तापमान 14.96 डिग्री सेल्सियस रहा जो 1850-1900  के औसत तापमान से 1.51 डिग्री सेल्सियस अधिक था जो दूसरा सबसे गर्म महीना था। इस प्रकार, यह अप्रैल वर्ष 2024 में बने रिकॉर्ड से केवल 0.7 डिग्री सेल्सियस ठंडा था क्योंकि पिछले वर्ष का तापमान वैश्विक औसत तापमान (पूर्व-औद्योगिक स्तर से) 1.58 डिग्री सेल्सियस अधिक था। तापमान वृद्धि रोकने के लिए सरकारों पर बनाये जा रहे दबावों के बावजूद यह बढ़ोतरी इन कोशिशों के लिए एक झटका है। 

कांगो में बाढ़ से 100 से अधिक लोगों की जान गई 

अचानक आई बाढ़ के कारण कांगो में 100 से अधिक लोगों की जान चली गई। बीबीसी के मुताबिक “दक्षिण किवु में रात भर मूसलाधार बारिश के कारण बाढ़ आ गई, जिससे घर नष्ट हो गए और परिवार विस्थापित हो गए। यह क्षेत्र अपने वर्षा ऋतु के अंत की ओर बढ़ रहा है, लेकिन आने वाले दिनों में और भारी बारिश का पूर्वानुमान है, जिससे और अधिक बाढ़ की आशंका बढ़ गई है।”

एएफपी की रिपोर्ट के अनुसार, बाढ़ ने दक्षिण किवु प्रांत में “कई गांवों को बहा दिया है”, जिसमें “बच्चे और बुजुर्ग लोग” बड़ी संख्या में  मारे गए हैं। इसने एक क्षेत्रीय अधिकारी बर्नार्ड अकिली के हवाले से कहा कि मूसलाधार बारिश के कारण कसाबा नदी रातों-रात अपने किनारों को तोड़कर बह गई, और पानी ने “अपने रास्ते में आने वाली हर चीज, बड़े पत्थर, बड़े पेड़ और कीचड़ को बहाकर ले गया, और फिर झील के किनारे के घरों को तहस-नहस कर दिया।”

इससे पहले वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन के वैज्ञानिकों द्वारा अप्रैल में आई बाढ़ के आकलन में पाया गया था कि पूर्वी डीआरसी में चरम संघर्ष के कारण उत्पन्न अत्यधिक संवेदनशीलता, इस आपदा के इतने घातक होने का एक प्रमुख कारण थी।

आर्कटिक समुद्री बर्फ में तेजी से कमी आने के कारण दक्षिण एशिया में बारिश की घटनाएं बढ़ेंगी: अध्ययन

आईओपी साइंस में प्रकाशित एक नए अध्ययन में कहा गया है कि आर्कटिक समुद्री बर्फ तेजी से कम होने की महत्वपूर्ण घटना देखी गई है। इस कमी आने से दक्षिण एशिया में इंटेन्स प्रिसिपिटेशन इवेन्ट्स यानी तीव्र वर्षा की घटनाओं (आईपीई) में वृद्धि होगी, जिससे लोगों को अत्यधिक बारिश से जुड़ी आपदाओं का सामना करना पड़ सकता है। 

हिन्दुस्तान टाइम्स में प्रकाशित ख़बर में 6 मई को प्रकाशित शोध पत्र का हवाला देते हुए कहा है कि जलवायु परिवर्तन के साथ आर्कटिक समुद्री बर्फ में गिरावट तेज हो रही है। रिपोर्ट में कहा गया है कि केरल में 2018 की बाढ़ या उत्तराखंड में 2013 की बाढ़ के दौरान दर्ज की गई तीव्र बारिश की घटनाओं की आवृत्ति में वृद्धि होगी। ये दोनों घटनाएँ तीव्र वर्षा की घटनाएँ थीं। 150 मिमी दिन-1 (ग्रिड पॉइंट में) की सीमा से अधिक वर्षा की घटनाओं को अत्यधिक वर्षा की घटनाओं के रूप में गिना जाता है।

पश्चिमी घाट में पेड़ों की पत्तियाँ गर्मी की महत्वपूर्ण सीमा को पार कर रही हैं: अध्ययन

वैज्ञानिकों ने पाया है कि पश्चिमी घाट में कई उष्णकटिबंधीय वन और कृषि वानिकी प्रजातियों की पत्तियाँ के लिए तापमान इतना अधिक हो गया है कि इससे उन्हें अपरिवर्तनीय क्षति हो सकती है। कर्नाटक में सिरसी के पास होसागड्डे गांव में एक अध्ययन किया गया जिसमें  कुल 13 एग्रोफॉरेस्ट्री प्रजातियों और 4 नेटिव जंगली प्रजातियों की वर्ष 2023 में कुल 4.5 महीने तक मॉनिटरिंग की गई जहां पर इन प्रजातियों को बहुधा 40 डिग्री से अधिक के तापमान का सामना करना पड़ा। 

इसमें पाया गया कि कई पौधों की पत्तियों का तापमान उनके सहन करने की सीमाओं से अधिक था, जिससे यह चिंता उत्पन्न हो गई कि उष्णकटिबंधीय प्रजातियां पर वैश्विक तापमान का क्या असर होगा।

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