जलवायु परिवर्तन के आंकलन के लिए संयुक्त राष्ट्र के वैज्ञानिकों के विशेषज्ञ निकाय जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी समिति (आईपीसीसी) ने अपनी एक रिपोर्ट में गंभीर चेतावनी दी है. रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक तापवृद्धि को पूर्व औद्योगिक स्तर की तुलना में 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक पर ही सीमित करना तब तक संभव नहीं होगा जब तक जीवाश्म ईंधन के बुनियादी ढांचे को शीघ्रता से समाप्त नहीं किया जाता और ऊर्जा के स्वच्छ और नवीकरणीय स्रोतों के लिए वित्त उपलब्ध नहीं कराया जाता है.
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि सभी क्षेत्रों में उत्सर्जन में तत्काल और भारी कटौती के बिना, वैश्विक ऊष्मता को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर सीमित करना पहुंच से बाहर है.
उत्सर्जन के मौजूदा रुझानों का आंकलन करते हुए आईपीसीसी की रिपोर्ट में इस सदी के अंत तक वैश्विक ऊष्मता को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए कार्बन डाईऑक्साइड और ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन में कटौती करने के तरीके सुझाए गए हैं. साल 2015 में 190 से अधिक देशों ने पेरिस समझौते के अंतर्गत यह लक्ष्य निर्धारित किया था. फिर भी, वर्तमान स्थिति बहुत गंभीर है और धरती को बचाने के लिए व्यापक प्रयासों की आवश्यकता है.
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ग्लोबल CO2 इमीशन बढ़ने की रफ्तार कम हुई पर उत्सर्जन अब भी 54 प्रतिशत अधिक
आईपीसीसी की ताज़ा रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2019 में 1990 के मुकाबले 54 प्रतिशत अधिक कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन हुआ लेकिन उत्सर्जन के बढ़ने की दर पिछले एक दशक में घटी है। साल 2020 मानवता के इतिहास में सबसे अधिक गर्म वर्षों में एक रहा है। आईपीसीसी की रिपोर्ट एक ऐसे वक्त आई है जब इस साल मार्च के महीने में रिकॉर्ड गर्मी दर्ज की गई है और देश के कई हिस्सों में अप्रैल के पहले हफ्ते में लू के थपेड़े महसूस किये जा रहे हैं। आईपीसीसी ने चेतावनी दी है कि धरती की तापमान वृद्धि को डेढ़ डिग्री तक रोकने के लिये कार्बन इमीशन में 43% की कटौती करनी होगी।
अप्रैल के पहले हफ्ते में ही हीट वेव की चेतावनी
मार्च की रिकॉर्ड गर्मी के बाद अब अप्रैल के पहले हफ्ते में आग बरसने लगी। मौसम विभाग ने 5 अप्रैल को राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली के कई हिस्सों में लू की आशंका जताई। इसके अलावा अगले 5 दिनों में पश्चिमी यूपी, मध्य प्रदेश और गुजरात में भी हीटवेव की चेतावनी दी गई है। देश के कई राज्यों में इस असामान्य गर्मी से जल संकट की समस्या भी खड़ी हो सकती है। हालांकि मौसम विभाग ने उत्तर-पूर्व समेत देश के कुछ हिस्सों में बारिश की संभावना भी जताई है।
मॉनसून से पहले आने वाले चक्रवातों से बाढ़ की घटनायें कम
एक नये अध्ययन में यह पाया गया है कि चक्रवातों के कारण होने वाली बारिश से कितना पानी भरेगा या बाढ़ की स्थिति होगी यह इस बात पर निर्भर है कि वहां नदी बेसिन पर नमी की क्या स्थिति है। वैज्ञानिकों ने 1981 से 2019 के बीच पूर्वी भारत में चार नदी बेसिनों पर चक्रवाती तूफानों के असर का अध्ययन किया और पाया कि मॉनसून-पूर्व सीज़न में तट से टकराने वाले मॉनसून कम बाढ़ लाते हैं क्योंकि तब ज़मीन शुष्क स्थितियां होती हैं। नदी तट और बेसिन पर सूखी मिट्टी के कारण ज़्यादातर बारिश सोख ली जाती है। बाढ़ तब अधिक आती है जब पहले से नदी में पर्याप्त पानी हो और वहां की मिट्टी में नमी हो। विशेषज्ञों की सलाह है कि मिट्टी की स्थिति का लगातार अध्ययन होना चाहिये ताकि चक्रवाती तूफान के वक्त तट पर लोगों को यह जानकारी दी जा सके कि साइक्लोन से बाढ़ का कितना खतरा है।
जंगल की आग से उठे धुंयें से बदल रहा बेज़ुबान जानवरों का व्यवहार
क्या जंगल में लगने वाली आग से जानवरों के बच्चों का व्यवहार प्रभावित होता है? एक नये शोध में ऐसे ही दावे किये गये हैं। डाइन टु अर्थ में छपी ख़बर बताती है कि मादा बंदरों के गर्भ धारण के दौरान जंगल की आग के धुएं के संपर्क से उनके बच्चों के व्यवहार में अन्य जानवरों की तुलना में बदलाव देखा गया। यह अध्ययन कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, डेविस में कैलिफोर्निया नेशनल प्राइमेट रिसर्च सेंटर के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
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