विश्व अभी भी अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए जीवाश्म ईंधन (कोयला, गैस और तेल) पर बहुत अधिक निर्भर है, जो कार्बन उत्सर्जन का प्रमुख कारण है.
जलवायु परिवर्तन के आकलन के लिए संयुक्त राष्ट्र के वैज्ञानिकों के विशेषज्ञ निकाय जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी समिति (आईपीसीसी) ने अपनी एक रिपोर्ट में गंभीर चेतावनी दी है. रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक तापवृद्धि को पूर्व औद्योगिक स्तर की तुलना में 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक पर ही सीमित करना तब तक संभव नहीं होगा जब तक जीवाश्म ईंधन के बुनियादी ढांचे को शीघ्रता से समाप्त नहीं किया जाता और ऊर्जा के स्वच्छ और नवीकरणीय स्रोतों के लिए वित्त उपलब्ध नहीं कराया जाता है.
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि सभी क्षेत्रों में उत्सर्जन में तत्काल और भारी कटौती के बिना, वैश्विक ऊष्मता को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर सीमित करना पहुंच से बाहर है.
उत्सर्जन के मौजूदा रुझानों का आकलन करते हुए आईपीसीसी की रिपोर्ट में इस सदी के अंत तक वैश्विक ऊष्मता को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए कार्बन डाइऑक्साइड और ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन में कटौती करने के तरीके सुझाए गए हैं. साल 2015 में 190 से अधिक देशों ने पेरिस समझौते के अंतर्गत यह लक्ष्य निर्धारित किया था. फिर भी, वर्तमान स्थिति बहुत गंभीर है और धरती को बचाने के लिए व्यापक प्रयासों की आवश्यकता है.
आईपीसीसी वर्किंग ग्रुप III की रिपोर्ट ‘क्लाइमेट चेंज 2022: मिटिगेशन ऑफ क्लाइमेट चेंज’ की ‘समरी फॉर पॉलिसीमेकर्स’ को आईपीसीसी की 195 सदस्य सरकारों द्वारा, 21 मार्च को शुरू हुए वर्चुअल अनुमोदन सत्र के माध्यम से, 4 अप्रैल 2022 को अनुमोदित किया गया.
‘टूटे वादों की लंबी फेहरिस्त’
जलवायु परिवर्तन और इसके प्रभावों पर अपनी छठी आकलन रिपोर्ट (एआर-6) तैयार करने की प्रक्रिया में आईपीसीसी ने पिछले आठ महीनों में तीन वर्किंग ग्रुप रिपोर्ट्स जारी की हैं.
हजारों पृष्ठों की यह रिपोर्ट्स समस्या के विभिन्न पहलुओं से संबंधित हैं. पिछले साल अगस्त में पहली वर्किंग ग्रुप रिपोर्ट (WG-I) जारी की गई थी जिसमें वैश्विक ऊष्मता के भौतिक विज्ञान के आधार पर चर्चा की गई थी. दूसरी वर्किंग ग्रुप रिपोर्ट (WG-II) प्रभावों, अनुकूलन और अरक्षितता के बारे में थी और यह इस साल फरवरी में आई थी. यह तीसरी और अंतिम वर्किंग ग्रुप रिपोर्ट (WG-III) जलवायु परिवर्तन के शमन पर है.
पिछले दो दशकों में वैश्विक ऊष्मता का बढ़ता प्रभाव पूरी दुनिया में देखा जा रहा है और यह मानवता के लिए बड़ा खतरा है. यह प्रभाव पिघलते हिमनद, समुद्र का बढ़ता स्तर, लंबे समय तक सूखा, चरम मौसम की घटनाएं जैसे असामान्य और बेमौसम बारिश और बार-बार आने वाले उष्णकटिबंधीय चक्रवातों में देखा जा सकता है. आईपीसीसी की यह रिपोर्ट इस बात पर ध्यान केंद्रित करती है कि विश्व को निम्न कार्बन पथ पर कैसे ले जाया जाए. यह एक ऐसा वादा है जिसे दुनिया भर के नेता निभाने में विफल रहे हैं.
“निर्णायक समिति एक फैसले पर पहुंची है, जो अपराध सिद्ध करता है. जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल की यह रिपोर्ट टूटे हुए वादों की एक लंबी फेहरिस्त है,” संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा. उन्होंने कहा, “यह फाइल शर्मनाक है, जो उन खोखले दावों को सूचीबद्ध करती है जिन्होंने हमें न रह पाने योग्य दुनिया की ओर धकेल दिया है.”
“तत्काल कार्रवाई की जरूरत”
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) के अनुसार पिछला दशक धरती पर सबसे गर्म दशक था और वर्ष 2020 इतिहास के तीन सबसे गर्म वर्षों में से एक था. आईपीसीसी का कहना है कि 2010-2019 का औसत वार्षिक वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन मानव इतिहास में अपने उच्चतम स्तर पर था, हालांकि इसकी दर अब धीमी हो गई है.
“हम एक दोराहे पर हैं. अभी हम जो निर्णय लेते हैं उससे एक जीवंत भविष्य सुरक्षित कर सकते हैं. ऊष्मता को सीमित करने के लिए हमारे पास आवश्यक उपकरण और जानकारी उपलब्ध है,” आईपीसीसी के अध्यक्ष होसुंग ली ने कहा.
आर्थिक विकास को बनाए रखने के साथ-साथ पर्यावरण की रक्षा करने की चुनौती का सामना कर रहे भारत जैसे विकासशील देशों के लिए यह बेहद जरूरी है वह साफ ऊर्जा के पथ पर तेजी से आगे बढ़ें. आईपीसीसी के आकलन के अनुसार, ऊष्मता को लगभग 1.5 डिग्री सेल्सियस (2.7 डिग्री फारेनहाइट) तक सीमित करने के लिए यह आवश्यक है कि वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन 2025 से पहले चरम पर पहुंच जाए, और 2030 तक इसमें 43 प्रतिशत तक की कटौती हो. साथ ही, मीथेन को भी लगभग एक तिहाई कम करने की आवश्यकता है.
आईपीसीसी ने प्रेस वक्तव्य में कहा है, “अगर हम ऐसा कर भी लेते हैं, तो भी यह लगभग निश्चित है कि हम अस्थायी रूप से इस तापमान सीमा को पार कर लेंगे, लेकिन सदी के अंत तक इसके नीचे वापस आ सकते हैं.”
“इस वास्तविकता से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता है कि पिछले एक दशक में मानव उत्सर्जन इतिहास में सबसे अधिक रहा है. नेट-जीरो उत्सर्जन तक पहुंचने के दीर्घकालिक प्रयासों के अलावा, 2030 तक तत्काल और पर्याप्त अल्पकालिक उपायों के बिना ऊष्मता को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित कर पाना संभव नहीं है,” सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के प्रो नवरोज दुबाश ने कहा, जो आईपीसीसी रिपोर्ट के समन्वयक प्रमुख लेखकों में से एक हैं.
जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से खत्म करने और साफ ऊर्जा की और बढ़ने की की जरूरत है
विश्व अभी भी अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए जीवाश्म ईंधन (कोयला, गैस और तेल) पर बहुत अधिक निर्भर है, जो कार्बन उत्सर्जन का प्रमुख कारण है. आईपीसीसी के अनुसार, वैश्विक ऊष्मता को सीमित करने के लिए ऊर्जा क्षेत्र में बड़े बदलाव की आवश्यकता होगी, जैसे जीवाश्म ईंधन के उपयोग में भारी कमी, व्यापक विद्युतीकरण, बेहतर ऊर्जा दक्षता और वैकल्पिक ईंधन (जैसे हाइड्रोजन) का उपयोग.
“हमारी जीवनशैली और व्यवहार में बदलाव लाने के लिए सही नीतियां, बुनियादी ढांचा और तकनीक अपनाने से 2050 तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 40-70 प्रतिशत की कमी की जा सकती है. यह महत्वपूर्ण अप्रयुक्त क्षमता प्रदान करता है.” आईपीसीसी वर्किंग ग्रुप III की को-चेयर प्रियदर्शिनी शुक्ला ने कहा.
आईपीसीसी के अनुसार, 2010 के बाद से सौर और पवन ऊर्जा, और बैटरी की लागत में 85 प्रतिशत तक की निरंतर कमी आई है. इसमें कहा गया है कि उद्योग में उत्सर्जन को कम करने में सामग्रियों का अधिक कुशलता से उपयोग करना होगा, उत्पादों का पुन: उपयोग और पुनर्चक्रण करना होगा और कचरे को कम करना होगा. आईपीसीसी की रिपोर्ट जारी होने के बाद कार्यकर्ताओं और नीति सलाहकारों ने चेतावनी दी है कि साफ ऊर्जा की ओर जाने में थोड़ी भी देरी विनाशकारी सिद्ध होगी.
“यह रिपोर्ट स्पष्ट करती है कि हम अब जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन और फंसी हुई संपत्तियों के साथ एक खतरनाक स्थिति का सामना कर रहे हैं जो हमारी अर्थव्यवस्था और समाज को और अस्थिर कर देगा. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि सरकारों और कंपनियों ने तेल, गैस और कोयला परियोजनाओं का लापरवाही से विस्तार करना जारी रखा. एक नई वैश्विक जीवाश्म ईंधन संधि देशों को इस जोखिम का प्रबंधन करने में मदद कर सकती है और उत्पादन को इस तरह से नियंत्रित कर सकती है जो इस वैश्विक संकट से निपटने के लिए आवश्यक पैमाने पर तेज और निष्पक्ष हो. आप गैस से आग नहीं बुझा सकते और हमारे ग्रह पर सचमुच आग लगी हुई है,” जीवाश्म ईंधन अप्रसार संधि पहल के अध्यक्ष और स्टैंड.अर्थ अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रम के निदेशक त्ज़ेपोरा बर्मन ने कहा.
वित्त कहां है?
विश्व को साफ ऊर्जा पथ पर ले जाने में जलवायु वित्त सबसे बड़ी समस्याओं में से एक सिद्ध हुआ है. अंतरिक्ष में अधिकांश कार्बन जमा करने के लिए जिम्मेदार अमीर देशों ने 2015 में हरित जलवायु कोष स्थापित करने का वादा किया था, लेकिन यह भी अधूरा ही रह गया. अधिकांश कमजोर राष्ट्र अभी भी अनुकूलन और शमन आवश्यकताओं के लिए फंड का उपयोग करने में असमर्थ हैं.
आईपीसीसी की रिपोर्ट के अनुसार, “जबकि वित्तीय प्रवाह 2030 तक तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस (3.6 डिग्री फारेनहाइट) से नीचे रखने के लिए आवश्यक स्तरों की तुलना में तीन से छह गुना कम है, इस कमी को पूरा करने के लिए पर्याप्त वैश्विक पूंजी और धन उपलब्ध है.” यह आवश्यक है की ‘सरकारें और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय इस ओर स्पष्ट संकेत’ दें और ‘पब्लिक सेक्टर फाइनेंस और नीति’ में एक बेहतर तारतम्य हो.
स्थिरता कुंजी है
संयुक्त राष्ट्र द्वारा स्थापित 17 सतत विकास लक्ष्य हैं जिनमें ‘सस्ती और साफ ऊर्जा‘ और ‘जलवायु कार्रवाई’ शामिल हैं. यह लक्ष्य देशों को उच्च आर्थिक विकास के पथ पर ले जाते हुए समान अवसरों के साथ एक समान विश्व की आवश्यकता पर बल देते हैं. आईपीसीसी के अनुसार जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने और अनुकूल बनाने में त्वरित और न्यायसंगत जलवायु कार्रवाई सतत विकास के लिए महत्वपूर्ण है.
आईपीसीसी ने कहा है, “उद्योग में शमन पर्यावरणीय प्रभावों को कम कर सकता है और रोजगार और व्यापार के अवसरों को बढ़ा सकता है. नवीकरणीय ऊर्जा के साथ विद्युतीकरण और सार्वजनिक परिवहन में बदलाव से स्वास्थ्य, रोजगार और समानता में वृद्धि हो सकती है.”
यह बहस का विषय रहा है कि साफ ऊर्जा में परिवर्तन से गरीबों का रोजगार नहीं छिनना चाहिए- जैसे वह लोग जो कोयला खदानों या ताप विद्युत संयंत्रों में कार्यरत हैं.
आईपीसीसी वर्किंग ग्रुप III के सह-अध्यक्ष जिम स्केआ ने कहा, “जलवायु परिवर्तन एक सदी से अधिक की अनवीकरणीय ऊर्जा और भूमि उपयोग, जीवन शैली और खपत और उत्पादन के पैटर्न का परिणाम है. यह रिपोर्ट दर्शाती है कि अभी किए गए उपायों से हम किस तरह एक निष्पक्ष, अधिक सतत विश्व की ओर बढ़ सकते हैं.”
यह रिपोर्ट न्यूज़लॉन्ड्री से साभार ली गई है।