भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) अहमदाबाद की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि कोयला अगले 20 साल तक भारत के ऊर्जा क्षेत्र की रीढ़ बना रहेगा और इसका प्रयोग घटाने के लिये क्रिटिकल मिनरल्स को लेकर एक सक्रिय नीति चाहिये। रिपोर्ट में कहा गया है कि न्यूक्लियर और नवीनीकरणीय ऊर्जा में व्यापक बढ़ोतरी किये बिना 2070 तक नेट ज़ीरो का लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सकता।
इसी महीने जारी हुई रिपोर्ट के मुताबिक: नेट ज़ीरो को हासिल करने के लिये कोई अलादीन का चिराग नहीं है। इस ट्रांजिशन के लिए हमारी एनर्ज़ी बास्केट में बहुत सारी प्रौद्योगिकियों के ज़रिये कई तरीकों को अपनाने की आवश्यकता है। अनुमान है कि कोयला अगले दो दशकों तक भारतीय ऊर्जा प्रणाली की रीढ़ बना रहेगा।”
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 2070 में भारत के उत्सर्जन 0.56 से 1.0 बिलियन टन कार्बन डाइ ऑक्साइड के बीच होंगे।
“यह उम्मीद है कि उत्सर्जन में शेष अंतर को वानिकी और वृक्ष आवरण के माध्यम से पाटा जायेगा जैसा कि हमारे राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) में परिकल्पना की गई है।
उधर ऊर्जा मंत्रालय ने कहा है कि इस साल गर्मियों में अनुमानित 260 गीगावॉट की पीक पावर डिमांड को पूरा करने के लिये कोयला पर भारी निर्भरता रहेगी। हालांकि नवीनीकरणीय ऊर्जा संयंत्रों की क्षमता लगातार बढ़ रही है लेकिन अधिकारी गर्मियों में इस उच्चतम मांग को पूरा करने के लिये ताप बिजलीघरों में कोयले का भंडार सुनिश्चित करने में लगे हैं। मौसम विभाग ने पूर्वानुमान जताया है कि अप्रैल और जून के बीच अत्यधिक गर्मी होगी जिस दौरान मध्य और प्रायद्वीपीय हिस्सों में हीटवेव सबसे बुरा असर दिखेगा।
विश्व के बड़े देश गरीब देशों में लगा रहे करोड़ों डॉलर के प्रोजेक्ट
जी-20 देशों ने जीवाश्म ईंधन का विस्तार रोकने के वादों के बावजूद पिछले 3 साल में इसी कारोबार में 142 बिलियन डॉलर खर्च किये हैं। ये आर्थिक शक्तियां गरीब देशों में ऐसे प्रोजेक्ट्स को बढ़ा रही हैं। पर्यावरण और क्लाइमेट पर काम करने वाले समूह ऑइल चेंज इंटरनेशनल और फ्रेंड्स ऑफ अर्थ यूएस की रिपोर्ट में यह बात कही गई है कि जी-20 समूह के विकसित और विकासशील देश जीवाश्म ईंधन प्रोजेक्ट को बढ़ा रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक 2020 से 2022 के बीच कनाडा, जापान और साउथ कोरिया देश के बाहर इस तरह के फाइनेंस में सबसे आगे रहे और कोयले और तेल के मुकाबले गैस के प्रयोग पर अधिक पैसा लगाया जा रहा है।
महत्वपूर्ण है कि जापान और कनाडा जी-7 समूह का हिस्सा हैं और इन देशों ने 2022 में संधि की थी कि देश के बाहर जीवाश्म ईंधन पर फंडिंग में रोक लगायेंगे। कोयले पर निवेश घटा है लेकिन तेल और गैस पर निवेश की रफ्तार बनी हुई है। इन देशों ने 2022 के अंत तक सभी प्रकार के जीवाश्म ईंधन के फेज डाउन यानी प्रयोग को कम करने की बात कही थी लेकिन यह पाया गया कि मार्च 2024 के मध्य तक जापान ऐसे प्रोजेक्ट्स पर पैसा लगा रहा है।
अमेरिका, जर्मनी और इटली ने भी साल 2022-23 के अंत तक देश के बाहर जीवाश्म ईंधन प्रोजेक्ट्स पर सैकड़ों करोड़ डॉलर का निवेश किया। विश्व बैंक ने इस दौरान प्रतिवर्ष 120 करोड़ अमेरिकी डॉलर के बराबर निवेश किया जिसका दो-तिहाई पैसा गैस प्रोजेक्ट्स में गया।
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